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13-07-2025 Vol 19

प्रादेशिक पार्टियों का बेहतर संगठन

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भाजपा को न सिर्फ वंशवादी पार्टियों से लड़ने में मुश्किल होती है, बल्कि प्रादेशिक पार्टियों से भी लड़ना उसके लिए आसान नहीं होता है। भले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वंशवादी और प्रादेशिक पार्टियों की कितनी भी आलोचना करें और उनको लोकतंत्र के लिए खतरा बताएं लेकिन उनसे वे उस तरह से नहीं लड़ पाते हैं, जैसे कांग्रेस से लड़ते हैं। ज्यादातर वंशवादी और प्रादेशिक पार्टियों ने अलग अलग राज्यों में भाजपा को हराया है या भाजपा ने उनके हराने के लिए किसी दूसरी वंशवादी या प्रादेशिक पार्टी का सहारा लिया है। सोचें, यह कैसी हिप्पोक्रेसी है कि आप बिहार में लालू प्रसाद की पार्टी राजद की आलोचना करते हैं लेकिन रामविलास पासवान के बेटे के साथ तालमेल करते हैं! यह हकीकत है कि अकेले भाजपा या नरेंद्र मोदी और अमित शाह बिहार की वंशवादी और प्रादेशिक पार्टियों को नहीं हरा पाते हैं। उनको डीएमके से लड़ने के लिए अन्नाडीएमके की जरुरत है। उनको महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे और अजित पवार की जरुरत है तो आंध्र प्रदेश में चंद्रबाबू नायडू की जरुरत है। पंजाब में प्रकाश सिंह बादल के परिवार की जरुरत होती तो तो झारखंड में भी सुदेश महतो के आजसू की जरुरत है। पश्चिम बंगाल में सारी कोशिश के बावजूद ममता बनर्जी को नहीं हरा पाई है भाजपा तो केरल में विधानसभा में खाता नहीं खुल पाया था। लोकसभा में जरूर एक सीट मिली है।

प्रादेशिक पार्टियों से मुकाबले में भाजपा को इसलिए भी मुश्किल आती है क्योंकि प्रादेशिक पार्टियां सिर्फ निष्ठा या स्वामीभक्ति के आधार पर नेताओं का चुनाव नहीं करती हैं। अगर सिर्फ नीतीश की राजनीति देखें तो उससे भी समझ में आता है। नीतीश बिहार में सिर्फ ढाई फीसदी आबादी वाली जाति के नेता हैं फिर भी कभी भी किसी बड़े नेता से आशंकित नहीं रहे। उन्होंने जॉर्ज फर्नांडीज और शरद यादव जैसे दिग्गज नेताओं के बीच अपनी जगह बनाई और अंत तक दोनों के राज्यसभा भेजते रहे। एक समय बिहार के सबसे बड़े नेता रहे जगन्नाथ मिश्र को अपनी पार्टी में ले आए और सम्मान दिया। वे उनसे भी आशंकित नहीं थे। उन्होंने कांग्रेस के दिग्गज रामाश्रय सिंह को पार्टी में रखा और अपने साथ मंत्री बनाया। केसी त्यागी हों या हरिवंश हों या अनिल हेगड़े हों, नीतीश ने निजी निष्ठा की बजाय वैचारिक निष्ठा या योग्यता के आधार पर इनको राज्यसभा भेजा। बिहार के अनेक बेहद ताकतवर और जमीनी आधार वाले नेता नीतीश की पार्टी में रहे और नीतीश कभी भी उनसे आशंकित नहीं रहे। यही स्थिति लालू प्रसाद की रही है। लालू प्रसाद ने रघुवंश प्रसाद सिंह से लेकर जगदानंद सिंह और प्रभुनाथ सिंह से लेकर रघुनाथ झा तक और सैयद शहाबुद्दीन से लेकर तस्लीमुद्दीन तक मजबूत आधार वाले नेताओं को साथ लेकर राजनीति की। मुलायम सिंह यादव के आसपास के चेहरों को याद करें तो पता चलेगा कि कितने बड़े नेता उनके साथ थे।

इसी तरह ममता बनर्जी ने कांग्रेस के तमाम दिग्गज नेताओं को साधा। वे तीन बार से लगातार चुनाव जीत रही हैं और हर चुनाव में उनके विधायकों की संख्या बढ़ती गई है। लेकिन कभी ऐसा नहीं हुआ कि उन्होंने ताकतवर होने के बाद पार्टी के बड़े नेताओं को निपटाना शुरू कर दिया और उनकी जगह गमले में रोपे गए नेताओं को आगे बढ़ाया। यह काम सिर्फ भाजपा के मौजूदा नेतृत्व ने किया है। ममता बनर्जी ने तो इतने मजबूत नेताओं को आगे बढ़ाया कि भाजपा को उनसे उधार लेकर अपना नेता बनाना पड़ा। पश्चिम बंगाल में भाजपा के सबसे बड़े नेता सुवेंदु अधिकारी तृणमूल कांग्रेस से ही आए हैं। कांग्रेस के सारे दिग्गज ममता बनर्जी के साथ रहे और उनका नेतृत्व स्वीकार किया। हेमंत सोरेन अपेक्षाकृत कम उम्र के नेता हैं। जब उन्होंने नेतृत्व संभाला तो कहा जा रहा था कि पुराने नेता नाराज हैं। कई लोग पार्टी छोड़ कर चले गए। लेकिन बाद में सब हेमंत के साथ आए। हेमलाल मुर्मू से लेकर स्टीफन मरांडी तक झारखंड की राजनीति के दिग्गज नेता हेमंत के नेतृत्व में काम कर रहे हैं और हेमंत को उनसे कोई आशंका नहीं होती है।

हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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