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29-04-2025 Vol 19

हर शाख पर बाबा बैठे हैं

हाथरस में एक बाबा के सत्संग की भगदड़ में करीब सवा सौ लोग मरे तब देश में ज्यादातर लोगों को सूरजपाल जाटव उर्फ भोले बाबा के बारे में मालूम हुआ। लोग इन बाबा को नहीं जानते थे लेकिन अब पूरी कुंडली सब लोग जान गए हैं। सूरजपाल पहले खेती किसानी करता था, फिर उत्तर प्रदेश पुलिस में भर्ती हो हुआ। वहां से निकल कर नारायण हरि उर्फ भोले बाबा बना। सोचें, नारायण भी और भोले भी यानी विष्णु भी और शिव भी एक ही व्यक्ति बन गया! अब सबको पता है कि इस बाबा के खिलाफ कई मुकदमे थे, जिसमें एक लड़की छेड़ने का भी मुकदमा था। इस बाबा के पश्चिमी उत्तर प्रदेश, हरियाणा और राजस्थान में लाखों भक्त हैं। बाबा के आठ आश्रम बताए जा रहे हैं और करोड़ों की संपत्ति बताई जा रही है। 

भगदड़ की वजह से बाबा की खोज हुई है। लोगों ने इस बाबा को जाना है। मगर ऐसे कितने ही बाबा देश के अलग अलग हिस्सों में और अलग अलग जातीय समूहों की भीड़ को भक्त बना कर आश्रम और मठ चला रहे हैं, जिनके बारे में लोगों को पता नहीं है। बाबा सूरजपाल मुर्दों में जान फूंक देने का दावा करता था, जिसे लेकर एक मुकदमा हुआ था। 

भक्तों की भीड़ बाबा के चमत्कार में विश्वास करती हैं। भक्तकहते हैं कि बाबा ने दुनिया बनाई है और वे ब्रह्मांड के स्वामी हैं लेकिन भगदड़ में हुई मौतों के लिए उसको जिम्मेदार नहीं ठहराते हैं और न उसको कहा कि वह इन मुर्दों में जान फूंक दे। बहरहाल, पिछले 25 साल में यानी 21वीं सदी की पहली चौथाई में यह कमाल की अविश्वसनीय परिघटना है लेकिन भारत में हर 50 किलोमीटर की दूरी पर कोई न कोई बाबा आश्रम बनाए हुए है और भक्त चमत्कार की उम्मीद में उसकी चरण धूलि लेने के लिए जान की बाजी लगा रहे हैं। जो बाबा आश्रम बना कर नहीं बैठा है वह इंटरनेट की दुनिया में है। वह सोशल मीडिया पर भक्तों को चमत्कारिक सुझाव दे रहे है।

हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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