डोनाल्ड ट्रंप ने फिर व्हाइट हाउस में आठवीं (या नौवीं?) बार दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति की मौजूदगी में विश्व मीडिया से कहा, मैंने कराया भारत और पाकिस्तान के बीच सीजफायर। तो भारत ने भी फिर दोहराया कि भारत और पाकिस्तान दोनों की सीधी बातचीत से लड़ाई रूकी। नीदरलैंड के एक अखबार को इंटरव्यू देते हुए विदेश मंत्री जयशंकर ने कहा, ‘हमारे पास एक हॉटलाइन है, जिससे हम सीधे बात कर सकते हैं। 10 मई को पाकिस्तान की सेना ने संदेश भेजा कि वे गोलीबारी रोकने के लिए तैयार हैं।
इसके बाद पाकिस्तान और भारत के सैन्य अधिकारी एक दूसरे से बात करके गोलीबारी रोकने पर सहमत हुए’। उन्होंने कहा ‘बाकी देशों ने चिंता जाहिर की। अमेरिका ने भी की। उसने दोनों तरफ फोन किए लेकिन सीजफायर तो इस्लामाबाद और नई दिल्ली की सीधी बातचीत में तय हुआ’। अमेरिका के रोल पर जब पत्रकार ने सवाल किया तो विदेश मंत्री का टका सा जवाब था, यूएस, यूनाइटेड स्टेट्स में ही था! (“The US was in the United States”.)
सवाल है ट्रंप का भला क्यों बार-बार, लगातार बोलना? इसलिए कि यही विश्व राजनीति में एक ताजा भिडंत थी जो पलक झपकते रूक गई। और वही ट्रंप की उपलब्धि है। उन्होंने हॉटलाइन पर कथित पाकिस्तान और भारत के सैन्य अधिकारी के एक दूसरे को फोन करके सीजफायर का फैसला करने से काफी पहले लिखित में एक लंबे टिवट् से, ब्योरा देते हुए लड़ाई रूकवाने का वैश्विक ऐलान कर दिया था!
इसलिए ट्रंप ने भौकाल बनाया है। ट्रंप की धुन थी रूस और यूक्रेन की लड़ाई रूकवाना। पर न पुतिन ने सुना और न जेलेंस्की आज्ञाकारी हुए। उल्टे ट्रंप के सामने, मीडिया के आगे जेलेंस्की ने ट्रंप और उनके उप राष्ट्रपति जेडी वेंस को सुनाया। जगजाहिर वैश्विक सत्य है कि जंग या बदले की भावना के असली दांत पश्चिम एशिया में नेतन्याहू बनाम हमास के दिखे हैं या यूरोप में पुतिन और जेलेंस्की के हैं।
डोनाल्ड ट्रंप का सीजफायर बयान
ट्रंप अपने फोन कॉल से नेतन्याहू, हमास या पुतिन व जेलेंस्की की नसों में दौड़ते गर्म खून को थाम नहीं पाए। वे कहीं भी सीजफायर नहीं करा पाए। लेकिन ठीक विपरीत ट्रंप ने अपने उप राष्ट्रपति या विदेश मंत्री से नरेंद्र मोदी और पाकिस्तानी सेना प्रमुख आसिम मुनीर को एक फोन कॉल करवा कर यदि सीजफायर करवाया है तो वे क्यों न दुनिया के आगे अपना ढिंढ़ोरा पीटें?
सबसे बड़ा सवाल कि ट्रंप के कहे को दुनिया में कौन नहीं मान रहा? केवल भारत! ध्यान रहे पाकिस्तान ने डोनाल्ड ट्रंप का धन्यवाद किया है। वह इंतजार कर रहा है कि अमेरिका सीजफायर के कुछ दिनों बाद तीसरे स्थान पर दोनों देशों की बातचीत का अपना वादा पूरा करे। भारत के अलावा बीच बचाव में आगे आए (कतर, सऊदी अरब, ब्रिटेन आदि) किसी देश ने भारत के इस स्टैंड के पक्ष में नहीं बोला है कि सीजफायर हॉटलाइन पर दोनों देशों के सैन्य अधिकारियों की बात होने से हुआ।
सवाल है यह सब क्यों सोचना? इसलिए क्योंकि भारत चाहे जो बोले, असल बात सीजफायर के साथ कश्मीर का वापिस अंतरराष्ट्रीय मसले के रूप में फोकस में लौटना है। पाकिस्तान की कूटनीति, सैन्य ताकत, उसके पैरोकारों की संख्या में इजाफा हुआ है। कहने को प्रधानमंत्री मोदी ने गुरूवार को फिर हुंकारा मारा कि ‘मोदी का लहू गर्म है और अब उनकी नसों में लहू नहीं, गर्म सिंदूर बह रहा है’।
तथा कतरे कतरे का हिसाब चुकाना पड़ेगा। मगर इससे भी तगड़ी भाषा तो उनकी 24 अप्रैल की बिहार की सभा में थी। तब उनकी ‘आतंकियों और उनके आकाओं’ को चेतावनी थी कि उन्हें मिट्टी में मिलाने का समय आ गया है। हम उनका पीछा धरती के आखिरी छोर तक करेंगे। उन्हें उनकी कल्पना से भी बड़ी सजा मिलेगी!
उफ! कैसी रौद्र भाषा। इस तरह की भाषा सचमुच में बदले की भावना में भभके हुए इजराइल और नेतन्याहू या जंगखोर पुतिन की भी नहीं थी। मगर भारत ने दुनिया को ऐसी भाषा सुनाई। बावजूद इसके दुनिया ने देखा और समझा क्या?
इससे विश्व राजनीति में भारत अपने हाथों अपना मकड़जाल, अपना मखौल बनाए हुए है। मैंने दुनिया के किसी अखबार, वैश्विक हेडिंग में यह नहीं देखा कि भारत ने ट्रंप के दावे की पोल खोली। देखो, ट्रंप कितना झूठा! ध्यान रहे भारत ने जब बदले में पाकिस्तान के खिलाफ सैन्य कार्रवाई की तब वह दुनिया के आगे बार-बार अपनी कार्रवाई को ‘नपी तुली, जिम्मेदार और गैर उकसाऊ’ बताता हुआ था।
हालांकि पाकिस्तान ने जवाब दिया। उसने आकाश में ड्रोन और मिसाइलें दागने के खौफनाक वीडियो बनवाए। उसी के साथ उसका यह घोषित अब सिद्धांत है कि भारत यदि ‘नपी तुली, जिम्मेदार और गैर उकसाऊ’ कार्रवाई भी करेगा तब भी वह अनिवार्यतः जवाब देगा। और उसकी इस नीति को अमेरिका याकि वैश्विक ताकते हुए है। एक इजराइल को छोड़ शायद ही कोई यह बात कहेगा कि आतंकी घटना के बदले भारत का पाकिस्तान को निशाना बनाना जायज है।
इससे भी खतरनाक चिंता यह है कि डोनाल्ड ट्रंप सनकी हैं और वे तथा उनका प्रशासन जान रहा है कि वे जितनी बार सीजफायर कराने का श्रेय लेते हैं उतनी ही बार उन्हें झूठा बताने के लिए भारत बिना लागलपेट के उन्हें और अमेरिका के रोल को खारिज करता है। भारत कोई बीच बचाव, मध्यस्थता नहीं चाहता है। नतीजतन यदि ट्रंप ने अपने सौदों में पाकिस्तान को पटाया (जो तैयार है) तो कल्पना करें कि आतंकियों और उनके आकाओं को कल्पना से बड़ी सजा देने या उन्हें मिट्टी में मिलाने के लक्ष्य में भारत का तब हौसला बढ़ाने वाली शक्तियां कौन होंगी?
Also Read: इंग्लैंड दौरे के लिए टीम इंडिया का ऐलान, शुभमन गिल कप्तान और उपकप्तान ऋषभ पंत
Pic Credit: ANI