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मोदी राज में इंडिगो की मोनोपोली!

प्रधानमंत्री मोदी का जुमला था कि उनके राज में हवाई चप्पल पहनने वाले हवाईजहाज़ से यात्रा करेंगे। और हुआ क्या? वही जो भारत की आर्थिकी के बाक़ी क्षेत्रों जैसे स्टील, सीमेंट, संचार, ईंधन, इंफ्रास्ट्रक्चर आदि क्षेत्रों में हुआ है। भारत के 140 करोड़ ग्राहकों को उन्होंने अडानी, अंबानी, जिंदल, टाटा जैसे 25–30 कारोबारियों की कंपनियों का बंधक बनवा दिया। इन कंपनियों ने एकाधिकारी यानी मोनोपोली ढर्रे में मनचाहे चीजों-सेवाओं के दाम बढ़ाए तो लोगों को भीड़ में बदलकर उन्हें घटिया सेवा देकर मनमाना मुनाफ़ा भी कमाया। इस हक़ीक़त की एक अतुलनीय कहानी है एयरलाइंस क्षेत्र।

मोदी सरकार से पहले कई एयरलाइंस थीं। प्रतिस्पर्धा थी। टिकट भाड़े से लेकर हवाईजहाज़ में सुविधा, अच्छे खाने–नाश्ते से तब लगता था कि भारत में एयरलाइंस कंपनियां सिंगापुर एयरलाइंस जैसी तो नहीं हैं, पर फिर भी जेट एयरवेज, किंगफिशर, विस्तारा, इंडियन एयरलाइंस भी सुधरती हुई थी, इंडिगो, स्पाइसजेट आदि से भारत की साख बन रही थी। उसी कंपीटीशन के दौर में इंडिगो ने सस्ती, समयबद्ध हवाई यात्रा के फ़ॉर्मूले में अपनी दुकान जमाई।

मगर पिछले ग्यारह वर्षों में क्या हुआ? जैसे मोदी सरकार ने सीमेंट, संचार, स्टील, बिजली आदि में अपने चहेतों की कंपनियों को सिर पर बैठाया, वही एयरलाइंस क्षेत्र में भी हुआ। अडानी को एयरपोर्ट बेचे (प्रति यात्री टिकट में एयरपोर्ट के भाड़े का हिस्सा ग्यारह वर्षों में बेइंतहां बढ़ा है), तो इंडियन एयरलाइंस टाटा को बेची, और नरेश गोयल, विजय माल्या को जेल में डाला या भगोड़ा बनाया। मोदीजी ने इंडिगो पर हाथ रखा तथा 140 करोड़ चप्पल पहनने वाली भीड़ की उड़ान में इंडिगो व टाटा की एयरलाइंस की मोनोपोली पर अमल हुआ। परिणाम सामने है?

वैसे ही दशा जो सीमेंट, बिजली, ईंधन, स्टील आदि क्षेत्रों में है। जियो-एयरटेल (संचार), अडानी–बिड़ला (सीमेंट), टाटा–जिंदल (स्टील) जैसी हर क्षेत्र की एकाधिकारी कंपनियों ने 2014 से अब तक न केवल बेइंतहां रेट बढ़ाए हैं, बल्कि ग्राहक को एक तरह से भीड़ मान कर वैसे ही घटिया सेवा–सामान बेचा है, जैसे नरेंद्र मोदी ने भीड़ को भक्त बनाकर शासन के नाम पर उसे जुमले बेचे हैं।

तभी हर हवाई यात्री को सोचना चाहिए कि इन ग्यारह वर्षों में टिकट के कितने दाम बढ़े? सर्विस कितनी घटिया हुई? भारत सरकार के नागरिक उड्डयन मंत्रालय के डायरेक्टरेट जनरल ऑफ सिविल एविएशन (डीजीसीए) ने उद्योग के वैश्विक मानकों में इतना भी ध्यान नहीं रखा जो रिकॉर्ड रखे कि पायलट दिन में कितने घंटे हवाई जहाज उड़ाते है? वह कितना थका-परेशान- हताश मनोदशा में हवाईजहाज उडाता है? कैसे एयरलाइंस कंपनियां रिटायर, बूढ़े पायलटों से विमान उड़वा रही हैं? हवाईजहाज़ उड़ाने से लेकर रखरखाव के कर्मचारियों को वैसे ही कैसे अनुबंधों, ठेके पर रखा जा रहा हैं जैसे मानो सुलभ शौचालय की ठेकेदारी हो!

सोचें, भारत सरकार के डीजीसीए ने यात्रियों की जान को जोखिम में डालकर कितने वर्षों से इंडिगो आदि कंपनियों को पायलट के शोषण की मनमानी करने दी? ओवरटाइम यानी दिन में दो-तीन उड़ानों की बजाय पांच-छह उड़ानें, या रिटायर पायलटों से काम चलाना! एक रिपोर्ट के अनुसार इंडिगो का सालाना कोई सात हज़ार करोड़ रू का मुनाफ़ा है। बावजूद इसके न पायलट पर्याप्त संख्या में हैं और न अपनी तरफ़ से नए पायलटों की ट्रेनिंग के पर्याप्त प्रबंध।

और नोट रखें, अब जो हाहाकार मचा है उससे सरकार और डीजीसीए एयरलाइंस कंपनियों को फिर पुराने ढर्रे पर काम करने की छूट देंगे। ताकि भारत में वापस भीड़, भेड़–बकरियों की तरह जान को असुरक्षित बनाकर चप्पल छाप हवाई सफ़र करती रहे।

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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