ईरान को तबाह करने के लिए इजराइल ने सचमुच युद्ध छेड़ दिया है। उसने नतांज, इस्फहान और अराक में ईरान के परमाणु ठिकानों पर हमला किया है। सिर्फ फोर्डो को लेकर अभी संदेह है क्योंकि वहां ईरान का परमाणु ठिकाना जमीन से कोई तीन सौ फीट नीचे है। वहां तक मार करने की क्षमता इजराइल के पास नहीं है। अमेरिका ही वहां तक हमला कर सकता है। लेकिन अमेरिका अभी सीधे युद्ध में कूदने से बच रहा है क्योंकि उसको अंदाजा है कि उसके बाद क्या होगा।
राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप जी-7 की बैठक छोड़ कर अमेरिका लौटे थे तो लगा था कि जल्दी ही अमेरिका इस युद्ध में शामिल होगा। इसके बाद उन्होंने ईरान को बिना शर्त सरेंडर करने को कहा, जिसे उसने खारिज कर दिया। उसके बाद ट्रंप ने बहुत देर हो गई का जुमला बोला। लेकिन अब खबर है कि ट्रंप दो हफ्ते में फैसला करेंगे कि क्या करना है। इसका मतलब है कि अभी इजराइल को अकेले लड़ाई लड़नी है। एक तरफ रूस और चीन ने ईरान का साथ दिया है तो दूसरी ओर यूरोपीय संघ भी इस पक्ष में नहीं दिख रहे हैं कि अमेरिका इस युद्ध में प्रत्यक्ष रूप से शामिल हो। उसे उम्मीद है कि ईरान के अयातुल्ला खामेनेई के शासन से नाराज आम लोग अंततः बगावत करेंगे और उस बगावत के बाद ईरान बदला हुआ होगा।
अमेरिका अभी ईरान के खिलाफ माहौल बनाने, उसके परमाणु शक्ति संपन्न होने का खतरा दिखाने, खामेनेई को हिटलर की तरह तानाशाह बताने और ईरान के मौजूदा शासन को कमजोर करने के उपायों पर काम कर रहा है। ध्यान रहे इस क्षेत्र में सीरिया में पहले ही तख्ता पलट हो चुका है। वहां बशर अल असद का राज समाप्त है और असद को भाग कर रूस में शरण लेनी पड़ी है। ऐसे ही लेबनान में हिजबुल्ला, यमन में हूती और गाजा में हमास को इजराइल ने पिछले दो साल में काफी कमजोर किया है। उनकी क्षमता घटी है। इसलिए वे अभी ईरान की मदद नहीं कर पा रहे हैं। ईरान अगर कमजोर होता है और वहां सत्ता बदल हो जाए तो यह स्थिति अमेरिका के ज्यादा अनुकूल होगी।
लेकिन खामेनेई शासन भी इतनी आसानी से ऐसा नहीं होने देगा। उसने इजराइल के खिलाफ लड़ाई तेज कर दी है। सामरिक जानकारों का मानना है कि ईरान कोई एक्स्ट्रीम कदम भी उठा सकता है। यह आशंका जताई जा रही है कि अगर होरमुज की खाड़ी में उसने तेल के कुछ टैंकर डूबा दिए तो पूरी दुनिया में तेल की किल्लत होगी, कीमतें बढ़ेंगी, जिससे यूरोप भी प्रभावित होगा। इसके अलावा ईरान ने अमेरिका को यह चेतावनी भी दी है कि इस इलाके में 50 हजार अमेरिकी सैनिक तैनात हैं, जिनको वह निशाना बना सकता है। ईरान ने कहा है कि इजराइल पर हमला करने से ज्यादा आसान अमेरिकी सैनिकों को निशाना बनाना है। ध्यान रहे इस क्षेत्र में अमेरिका के कई सैनिक ठिकाने हैं और उसके सैनिक तैनात हैं। ईरान उन पर हमला कर सकता है।
ईरान को चीन की प्रत्यक्ष मदद मिल रही है और रूस भी उसका हमदर्द है। उनको पता है कि अगर ईरान का किला ढह गया तो पूरा अरब जगत अमेरिका के हाथ में चला जाएगा। अमेरिका ने सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात और बहरीन को अब्राहम अकॉर्ड के जरिए बांधा है तो सीरिया में सत्ता बदल करा दिया है। पूरा इराक उसके हाथ में है, जहां कई जगह उसके सैनिक ठिकाने हैं। कतर और जॉर्डन भी अमेरिका के पाले में हैं। यमन और लेबनान में लड़ने वाले आतंकी संगठनों को इजराइल ने कमजोर कर दिया है। सो, इस इलाके में अमेरिका का संपूर्ण वर्चस्व बने और राष्ट्रपति ट्रंप अपने एजेंडे को लागू करना शुरू करें यह चीन और रूस को कबूल नहीं होगा। ध्यान रहे ट्रंप ने गाजा को खाली करा कर वहां एक अलग टाउनशिप विकसित करने का ऐलान किया था। पता नहीं यह कितना व्यावहारिक है लेकिन इस आशंका में भी चीन और रूस चाहेंगे कि ईरान के मसले पर इजराइल और अमेरिका को रोका जाए।
हालांकि ऐसा नहीं है कि चीन और रूस के दबाव में ट्रंप युद्ध रूकवा रहे हैं। उन्होंने अपने कदम पीछे खींचे हैं लेकिन तैयारियां जारी हैं। पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर को ट्रंप ने इतना भाव इसलिए दिया है क्योंकि ईरान के खिलाफ लड़ाई में अमेरिका पाकिस्तान की जमीन का इस्तेमाल करना चाहता है। अमेरिका को इसकी जरुरत पड़ेगी। पाकिस्तान के एयरबेस से अमेरिकी लड़ाकू विमान उड़ान भरेंगे। खबर है कि ट्रंप ने व्हाइट हाउस में जनरल मुनीर को लंच कराया तो उनसे इजराइल और ईरान की लड़ाई के बारे में चर्चा हुई। अगर पाकिस्तान इस युद्ध में अमेरिका का साथ देता है तो एक अलग ही स्थिति बनेगी।?