nayaindia Lok Sabha election बिहार में भाजपा की सीटें ही फंसी

बिहार में भाजपा की सीटें ही फंसी

Lok Sabha election Bihar politics

लोकसभा चुनाव 2024 शुरू होने के बाद आमतौर पर माना जा रहा था कि बिहार में नीतीश कुमार की पार्टी की स्थिति डावांडोल है, जबकि भाजपा बहुत अच्छी स्थिति में है। इस आधार पर अनुमान लगाया जा रहा था कि नीतीश की पार्टी जिन 16 सीटों पर लड़ रही है वहां उनको नुकसान होगा, जबकि भाजपा की 17 सीटें सुरक्षित हैं। एक चुनाव पूर्व सर्वेक्षण ने भाजपा के साथ साथ चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी की सीटें भी सुरक्षित बता दी थीं। यानी उनकी पांच सीटों पर भी कोई खतरा नहीं बताया गया था। लेकिन लोकसभा चुनाव के पहले तीन चरण के मतदान के बाद स्थिति उलटी दिख रही है।

पहले तीन चरण में नीतीश कुमार की आधी सीटें निपट गई हैं। यानी उनके कोटे की 16 में से आठ सीटें  पर मतदान हो चुका है, जबकि भाजपा के कोटे की 17 में से सिर्फ तीन सीटों पर अभी वोट पड़ें। इसी तरह भाजपा की सहयोगी लोक जनशक्ति पार्टी रामविलास की पांच में से दो सीटों पर वोट पड़ गए हैं और पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी को मिली इकलौती सीट पर भी मतदान हो गया है। तीन चरण के मतदान के बाद स्थिति ऐसी दिख रही है कि भाजपा की तीनों सीटें कड़े मुकाबले में फंसी हैं। उधर नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यू की आठ में से एक सीट हारी हुई दिख रही है और एक सीट पर कड़ा मुकाबला है। बाकी छह सीटों पर स्थिति ठीक दिख रही है।

नीतीश कुमार ने जब किशनगंज सीट ली थी तभी यह साफ हो गया था कि यह जीतने वाली सीट नहीं है। पिछली बार भी एनडीए ने 40 में से 39 सीट जीती थी तब यह इकलौती सीट जदयू हारी थी। 70 फीसदी से ज्यादा मुस्लिम आबादी वाली इस सीट पर इस बार भी कांग्रेस के जीतने की संभावना है। इसके अलावा पूर्णिया सीट पर निर्दलीय पप्पू यादव के साथ नीतीश के मौजूदा सांसद संतोष कुमार का कड़ा मुकाबला है। इसके अलावा बाकी सीटें जैसे बांका, भागलपुर, कटिहार, मधेपुरा, सुपौल और झंझारपुर में अत्यंत पिछड़ा और महादलित वोट की वजह से जनता दल यू की स्थिति ठीक दिखी है।

इसके उलट भाजपा की तीन सीटों- औरंगाबाद, नवादा और अररिया में पार्टी के उम्मीदवार मुश्किल में फंसे दिखे। देश में अब तक 283 सीटों पर मतदान हुआ है, जिसमें सबसे कम 43 फीसदी मतदान नवादा में हुआ है, जहां से भाजपा के राज्यसभा सांसद विवेक ठाकुर उम्मीदवार हैं। इस सीट को लेकर भाजपा के नेता खुद ही मान रहे हैं कि अगर राजद के बागी निर्दलीय उम्मीदवार विनोद यादव ज्यादा वोट नहीं काटे होंगे तो मुश्किल होगी क्योंकि कुशवाहा मतदाताओं ने राजद से खड़े अपनी जाति के श्रवण कुशवाहा का साथ दिया है। यही स्थिति औरंगाबाद में दिखी, जहां भाजपा के ठाकुर सांसद सुशील सिंह लड़े हैं। वहा भी कुशवाहा मतदाताओं ने राजद के उम्मीदवार अभय कुशवाहा को समर्थन दिया है। इस सीट से कांग्रेस के पूर्व सांसद निखिल कुमार तैयारी कर रहे थे लेकिन टिकट नहीं मिली तो उनके समर्थक निराश होकर बैठे हैं। भाजपा की तीसरी सीट अररिया है, जहां 43 फीसदी मुस्लिम हैं। इस सीट पर भाजपा की जीत तभी होती है, जब करीब 12 फीसदी यादव मतदाताओं का बड़ा हिस्सा मतदान के दिन राष्ट्रवादी हो जाए और भाजपा को वोट दे दे। इस बार लालू प्रसाद और तेजस्वी यादव के असर में यादव मतदाताओं का एक बड़ा वर्ग आंख बंद करके गठबंधन के उम्मीदवारों को वोट कर रहा है। अररिया में ऐसा होने की खबर है, जिससे वहां कांटे का मुकाबला हो गया है।

इतना ही नहीं आगे के चरण में भी भाजपा की कई सीटें बुरी तरह से फंसी हुई दिख रही हैं। सारण में लालू प्रसाद को किडनी देने वाली उनकी बेटी रोहिणी आचार्य चुनाव लड़ रही हैं, जिनके प्रति सभी वर्ग के मतदाताओं की सहानुभूति है। इससे वहां भाजपा के राजीव प्रताप रूड़ी की लड़ाई मुश्किल हो गई। पाटलिपुत्र में मीसा भारती के लिए इस बात की सहानुभूति है कि वे दो बार से बहुत कम अंतर से हार रही हैं। दूसरे, पाटलिपुत्र की सभी छह विधानसभा सीटें राजद गठबंधन ने जीती हुई हैं। दो सीटों पर तो सीपीआई माले की जीत हुई है। सो, माले और कांग्रेस के समर्थन से इस बार राजद की मीसा भारती भाजपा के रामकृपाल यादव को कड़ी टक्कर दे रही हैं। भाजपा की एक और सीट मुजफ्फरपुर की है, जो इस वजह से कांटे की लड़ाई में फंसी है क्योंकि वहां से भाजपा ने मौजूदा सांसद अजय निषाद की टिकट काट दी और उसके दे दी, जिसको पिछली बार अजय निषाद ने हराया था। सो, अब अजय निषाद बागी होकर कांग्रेस की टिकट पर लड़ रहे हैं। एक अन्य सीट बक्सर की है, जहां टिकट कटने से नाराज केंद्रीय मंत्री अश्विनी चौबे के समर्थक पूर्व आईपीएस और निर्दलीय चुनाव लड़ रहे आनंद मिश्रा का समर्थन कर रहे हैं। इससे भाजपा उम्मीदवार मिथिलेश तिवारी की मुश्किल बढ़ी है।

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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