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गपशप

बिहार में भाजपा कितनी सुरक्षित?

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नीतीश कुमार के भाजपा गठबंधन में वापस लौटने के बाद आमतौर पर माना जाता है कि भाजपा के लिए बिहार में2019 रीपिट होगा। ऐसा सोचना इसलिए है क्योंकि पिछले दो लोकसभा चुनावों से भाजपा ज्यादातर सीटों पर बड़े अंतर से जीत रही है। वह 2014 में बिना नीतीश कुमार के लड़ी थी तब23 सीटों पर जीती थी और 2019 में नीतीश के साथ 17 सीटों पर लड़ी तो सभी 17 सीटें जीती। इनमें से भी ज्यादातर सीटों पर जीत का अंतर 10प्रतिशत से ऊपर रहा।

भाजपा की जीती हुई 17 सीटों में से सिर्फ दो ही सीट ऐसी है, जिन्हे वह 10प्रतिशत से कम अंतर से जीती है। 10 सीटोंपर तो वह 20प्रतिशत से ज्यादा वोट के अंतर से जीती है। मधुबनी में47प्रतिशत, मुजफ्फरपुर में 38प्रतिशत शिवहर में 34प्रतिशत को अंतर से जीती है। इसलिए बिहार घूम रहे पत्रकार और विश्लेषक मान रहे हैं कि यदि नुकसान होना है तो वह नीतीश कुमार की जनता दल यू को होगा।

लेकिन असलियत यह भी है कि कम अंतर वाली चार सीटों पर भाजपा बहुत मुश्किल में है। इसके अलावा कम से कम पांच अन्य सीटों पर भी कांटे की टक्कर है। वही भाजपा की सहयोगी पार्टियों की ज्यादा सीटें मुश्किल में फंसी दिख रही हैं।

तभी 17 सीटों का प्रदर्शन दोहरा पाना मुश्किल दिख रहा है। सबसे पहले भाजपा की कम मार्जिन से जीती सीटों की बात करें।भाजपा ने पाटलिपुत्र की सीट सबसे कम 3.6प्रतिशत के अंतर से जीती थी। भाजपा के रामकृपाल यादव ने राजद की मीसा भारती को 39,321 वोट से हराया था। इस बार फिर मीसा भारती चुनाव लड़ रही हैं। उनके लिए सहानुभूति का एक फैक्टर है तो वही लालू प्रसाद ने रीतलाल यादव और भाई वीरेंद्र जैसे राजद विधायकों और अपने करीबियों को भरोसे में लिया है। मीसा के नाम की घोषणा से पहले लालू प्रसाद रीतलाल यादव के घर गए थे। उनको मीसा का समर्थन करने के लिए मनाया था।

जमीन पर राजद का मुस्लिम और यादव वोट पूरी तरह से एकजुट दिख रहा है।इनकी संख्या करीब साढ़े पांच लाख है। पाटलिपुत्र लोकसभा के तहत छह विधानसभा सीटें आती हैं, जिनमें से पिछली बार सभी छह सीटें राजद गठबंधन से जीती थी। लोकसभा चुनाव के बाद 2020 में हुए विधानसभा चुनाव में पाटलिपुत्र की छह में से तीन सीटों पर राजद जीती, जबकि दो सीटों पर सीपीआई एमएल और एक सीट पर कांग्रेस जीती। भाजपा को एक भी सीट नहीं मिली थी। जीतने वालों में यादव, कुशवाहा, दलित और भूमिहार थे। इस सीट पर कुशवाहा आबादी भी डेढ़ लाख के करीब है। ऐसे में भाजपा के लिए यह सीट क्या 2019 की तरह सेफ है?

कम अंतर से जीती हुई भाजपा की दूसरी सीट औरंगाबाद है। यहामतदान हो चुका है। सीट पर लगातार चौथी बार जीतने के लिए भाजपा के सुशील कुमार सिंह हैं। वे पिछली बार 72 हजार वोट से जीते थे। पिछली बार राजद के सहयोगी रहे जीतन राम मांझी की पार्टी को यह सीट मिली थी और मांझी ने कुशवाहा समाज के उपेंद्र कुमार को लड़ाया था। इस बार लालू प्रसाद ने जनता दल यू से लाकर अभय कुशवाहा को अपनी पार्टी से चुनाव लड़ाया। पिछली बार से उलट इस बार कुशवाहा वोट का पूरा रूझान अपनी जाति के उम्मीदवार की ओर दिखा है। औरंगाबाद लोकसभा की छह विधानसभा सीटों में से चार सीटें राजद और कांग्रेस के पास हैं। जीतने वाले मुस्लिम, कुशवाहा, दलित और यादव हैं। दो सीटें भाजपा की सहयोगी हिंदुस्तान अवाम मोर्चा के पास हैं। यानी यहां भी भाजपा का कोई विधायक नहीं है। लालू प्रसाद के मुस्लिम और यादव वोट के साथ दलित और कुशवाहा के जाने से सुशील सिंह की मुश्किल बढ़ गई है।

भाजपा के लिए कांटे की लड़ाई वाली एक और सीट बक्सर है, जहां उसने केंद्रीय मंत्री अश्विनी चौबे की टिकट काटी है। पिछली बार अश्विनी चौबे एक लाख 17 हजार वोट से जीते थे। अश्विनी चौबे की जगह भाजपा ने मिथिलेश तिवारी को टिकट दिया है, जो उत्तर पश्चिम बिहार की गोपालगंज सीट से विधायक रहे हैं। वे पिछली बार विधानसभा का चुनाव नहीं जीत सके थे। उनको टिकट देने के बाद से यहा उनके बाहरी होने का विवाद है। ऊपर से भाजपा ने पहले आईपीएस अधिकारी आनंद मिश्रा को टिकट देने का संकेत दिया था, जिसके बाद उन्होंने वीआरएस ले लिया था। उनको टिकट नहीं मिली तो वे निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं।

अश्विनी चौबे के नाराज समर्थक उनके साथ जुड़े हैं। राजद ने अपने पुराने नेता जगदानंद सिंह के विधायक बेटे सुधाकर सिंह को उतारा है, जिनके पास राजपूत वोट का पूरा समर्थन है। बक्सर लोकसभा की छह विधानसभा सीटों में से एक भी सीट भाजपा के पास नहीं है। छह में से तीन सीट राजद की, दो कांग्रेस की और एक सीपीआई एमएल की है। जीतने वाले यादव, कुशवाहा, राजपूत, ब्राह्मण और दलित हैं। सो अगर ब्राह्मण और कुशवाहा वोट बंटता है और यादव, मुस्लिम व राजपूतों का एकमुश्त वोट राजद को मिलता है तो भाजपा के लिए बहुत मुश्किल होगी।

बक्सर से मिलती जुलती सीट आरा की है, जहां से लगातार तीसरी बार केंद्रीय मंत्री आरके सिंहचुनाव लड़ रहे हैं। पिछली बार वे एक लाख 47 हजार वोट के अंतर से जीते थे। उनके खिलाफ इस सीट पर विपक्षी गठबंधन ने सीपीआई एमएल के तरारी से विधायक सुदामा प्रसाद को उतारा है। वे पिछड़ी जाति से आते हैं। आरा में विधानसभा की सात सीटें हैं, जिनमें से दो सीटों पर सीपीआई एमएल की जीत हुई थी। दो सीटों पर राजद और तीन सीटों पर भाजपा जीती थी। यानी इस क्षेत्र में भी चार विधानसभा सीटों पर विपक्ष का कब्जा है। विपक्ष से जीतने वाले चार विधायकों राजपूत, ब्राह्मण और पिछड़ी जाति के हैं। इस सीट पर भी मुस्लिम व यादव के समीकरण के वोट के साथ सीपीआई माले का कुशवाहा वोट जुड़ने की संभावना है।

इन चार सीटों के अलावा भाजपा के लिए कम से कम पांच और सीटों पर कठिन लड़ाई दिख रही है। सारण की सीट पर राजीव प्रताप रूड़ी पिछली बार एक लाख 38 हजार वोट से जीते थे लेकिन इस बार लालू प्रसाद की बेटी रोहिणी आचार्य लड़ रही हैं। रोहिणी ने लालू प्रसाद को अपनी किडनी दी है। इसे लेकर उनके प्रति एक सहानुभूति है। तभी रूड़ी प्रचार में रोहिणी पर कुछ नहीं बोल पा रहे हैं। उनका कहना है कि रोहिणी से उनकी लड़ाई नहीं, लालू प्रसाद से है।

सारण की छह में से चार सीटों पर राजद के विधायक जीते हैं, जिनमें से तीन यादव हैं। सारण के बगल की महाराजगंज सीट पर लालू प्रसाद ने रणनीति के तहत कांग्रेस से भूमिहार को टिकट दिलाई है। बिहार के प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अखिलेश सिंह के बेटे आकाश को कांग्रेस ने टिकट दी है। ध्यान रहे इन दोनों सीटों पर भाजपा के राजपूत सांसद हैं। सारण से रूड़ी और महाराजगंज से जनार्दन सिंह सिग्रीवाल। लालू की रणनीति दोनों सीटों पर भूमिहार वोट राजद और कांग्रेस को दिलाने की है। अगर ऐसा होता है तो भाजपा की दोनों सीटें मुश्किल में आएंगी। महाराजगंज की छह में से चार सीटें विपक्ष के पास हैं। राजद की दो और कांग्रेस व सीपीएम की एक एक सीट है। भाजपा के सिर्फ दो विधायक हैं।

इनके अलावा अलग अलग कारणों से सासाराम और मुजफ्फरपुर की सीट पर भी टक्कर बन गई है। मुजफ्फरपुर में भाजपा ने मौजूदा सांसद अजय निषाद को टिकट नहीं दी तो वे कांग्रेस की टिकट से लड़ रहे हैं। वे बिहार में मल्लाहों की राजनीति शुरू करने वाले जयनारायण निषाद के बेटे हैं। सो, भले भाजपा ने पिछली बार अजय निषाद से बारे राजभूषण निषाद को टिकट दिया है लेकिन निषाद वोट का समर्थन अजय निषाद के साथ दिख रहा है।

सासाराम में मौजूदा सांसद छेदी पासवान की टिकट कटने के बाद समीकरण बदला है। कांग्रेस ने पिछले दो बार से हार रहीं पूर्व स्पीकर मीरा कुमार के बेटे को पटनासाहिब सीट से टिकट दिया है। ध्यान रहे मीरा कुमार खुद अनुसूचित जाति की हैं लेकिन उनके पति कुशवाहा जाति के हैं और इसी वजह से पटनासाहिब में उनके बेटे अंशुल अविजीत को उतारा गया है। सो, सासाराम की सुरक्षित सीट पर कुशवाहा विपक्षी गठबंधन का समर्थन कर रहे हैं। नवादा सीट पर चुनाव हो चुका है। वहां भी बहुत कांटे की टक्कर रही है। राजद के उम्मीदवार श्रवण कुशवाहा को उनकी जाति का वोट खूब मिला है। तभी भाजपा की उम्मीद इस बात पर टिकी है कि राजद के बागी उम्मीदवार विनोद यादव कितना वोट काटते हैं। अगर वे ज्यादा वोट नहीं काट पाते हैं, जिसकी खबर है तो भाजपा के लिए मुश्किल स्थिति है। कुल मिलाकर बिहार में इस बार लालू प्रसाद ने रणनीति के तहत अपने गठबंधन से आठ कोईरी, कुर्मी उम्मीदवार उतारे हैं। यह भाजपा और जदयू का कोर वोट काट रहा है और अपनी जाति के उम्मीदवारों को वोट कर रहा है। महागठबंधन ने पांच सवर्ण उम्मीदवार भी उतारे हैं और उनको भी जाति का वोट मिलने की खबर है।

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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