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मोदी सुनामी क्षत्रपों से फुस्स!

विपक्षी पार्टियों का चुनाव

गुजरे सप्ताह महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे की क्षत्रपता स्थापित हुई। पिछले सप्ताह भी मैंने लिखा था कि राहुल गांधी और शरद पवार ठीक कर रहे हैं, जो उद्धव ठाकरे को बड़ा भाई बना रहे हैं। अब सीटों के बंटवारे (ठाकरे पार्टी को 21, कांग्रेस 17, शरद पवार पार्टी 10 सीट) ने भी महाराष्ट्र की जनता की निगाह में उद्धव ठाकरे बनाम नरेंद्र मोदी की सीधी प्रतिद्वंद्विता बना दी है।

इसका अर्थ है लोगों में, समर्थकों में एकनाथ शिंदे और अजित पवार की वोट दुकान खत्म। इनकी वही दशा होनी है जो बिहार में भाजपा के पार्टनर नीतीश, मांझी, पासवान आदि की होनी है। इन दिनों अपने वेंकटेश केसरी औरंगाबाद, मराठवाड़ा में घूम रहे हैं। उनकी मानें तो उद्धव ठाकरे मेहनत करते हुए हैं। खूब सभाएं कर रहे हैं। वही भाजपा ने अपने ही हाथों एकनाथ शिंदे और अजित पवार का बोरिया बिस्तर बंधवा दिया है।

इसलिए 48 सीटों वाले महाराष्ट्र में मोदी बनाम उद्धव ठाकरे में पचास-पचास फीसदी जीत-हार हो तो वह भाजपा-एनडीए को झटका होगा। उद्धव ठाकरे की धुरी पर मोदी विरोधी वोटों का रिकॉर्ड मतदान होगा तो ऐसे ही कर्नाटक में सिद्धरमैया-शिवकुमार (कांग्रेस), तमिलनाडु में स्टालिन, पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी, दिल्ली में केजरीवाल, झारखंड में हेमंत सोरेन, ओडिशा में नवीन पटनायक, बिहार में तेजस्वी, तेलंगाना में रेवंत रेड्‍डी (कांग्रेस) के रहते भाजपा की सीटें जीतने का सुनामी मंसूबा पूरा नहीं होना है।

मतलब उन सभी राज्यों में नरेंद्र मोदी की कथित सुनामी याकि अबकी बार 400 पार सीटों का आंकड़ा बुरी तरह फेल होना है, जहां अभी तक मोदी ने सर्वाधिक रैलियां की हैं। तमिलनाडु में नरेंद्र मोदी ने अपने नए मनोहर लाल खट्टर याकि अन्नामलाई की कितनी ही हवा (तमिलनाडु के भावी सीएम, मोदी बाद के भावी पीएम) बनाई हो उससे वोट प्रतिशत जरूर बढ़ जाएं लेकिन एक-दो सीट भी आ जाए तो उससे कर्नाटक में हुए नुकसान की भरपाई कतई नहीं होनी है। कर्नाटक में अब फिफ्टी-फिफ्टी सीटों के अनुमान लगते हुए हैं।मुमकिन है कर्नाटक-तेलंगाना भाजपा के लिए सदमे वाले राज्य हों तो आंध्र में चंद्रबाबू नायडू की हवा बनी भी तो वे नरेंद्र मोदी के लिए नवीन पटनायक जैसे भरोसेमंद कतई नहीं होने हैं। कहते हैं ओडिशा में नवीन पटनायक ने धर्मेंद्र प्रधान के लिए भी मुकाबला कड़ा बनवा दिया है।

मुझे हिंदू बनाम मुस्लिम धुव्रीकरण की हकीकत में पश्चिम बंगाल में हवा बदलने का भरोसा नहीं हो रहा है लेकिन जानकारों के अनुसार उम्मीदवारों की घोषणा के बाद ममता बनर्जी बहुत आगे हो गई बताते हैं। मतलब पश्चिम बंगाल में भी ममता बनर्जी के बतौर क्षत्रप मुकाबले में होने से चुनावी माहौल गर्म है तो नरेंद्र मोदी और भाजपा के लिए वह अनुकूलता कतई नहीं है जो फरवरी में बनी लग रही थी।

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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