nayaindia PM Narendra Modi Nitin Gadkari गडकरी अच्छे या मोदी?

गडकरी अच्छे या मोदी?

PM Narendra Modi Nitin Gadkari
PM Narendra Modi Nitin Gadkari

जवाब व्यक्ति की सत्यवादी बनाम अंधविश्वासी मनोदशा में होगा। हम हिंदू अंधविश्वासी हैं। अवतार में विश्वास रखते हैं। इलहाल और झूठ में जीते हैं। इसलिए प्रोपेगेंडा के दस साला महाअभियान में डूबे असंख्य लोग मोदी को निःस्वार्थी लोक सेवक, व्रत-उपवास रखने वाला धार्मिक तथा कर्मयोगी भगवान समझते हैं। PM Narendra Modi Nitin Gadkari

मगर मनुष्यता की कसौटी में सत्य से जीने वाले समझदारों में यदि जन सर्वेक्षण हो, भाजपा-संघ के भीतर भी सर्वे हो तो नतीजा क्या होगा? मेरा मानना है गडकरी जीतेंगे, मोदी हारेंगे। इसलिए क्योंकि मेरी धारणा है इंसान अंततः अच्छाई का आकांक्षी है। और प्रमाण में इतिहास है तो मोदी की इमेज में विश्व मीडिया का आईना है। सनातन धर्म का भी शाश्वत सत्य है कि मर्यादा का मान है, राम की पूजा है। जबकि अहंकार और रावण अमान्य हैं। ध्यान रहे राम-रावण की कथा हम हिंदुओं की ही है।

मेरा दो व्यक्तियों के सवाल में इतना पीछे जाना इसलिए जरूरी है क्योंकि 140 करोड़ लोगों का देश इस वक्त ऐसा बंटा हुआ है कि झूठ को सत्य मानते हैं और सत्य को झूठ। बहुत ही मुश्किल है। मैं पहले भी लिखता रहा हूं कि आज की राजनीति नेहरू, नरसिंह राव, वाजपेयी, मनमोहन सिंह को कितना ही खारिज करे लेकिन आजाद भारत के इतिहास में ये सहज-सरल-मर्यादित राजनीति के अच्छे चेहरे थे और हमेशा रहेंगे। सो, कसौटी अच्छा होना और भलेपन की है। अहंकार और झूठ से न नेता की पुण्यता टिकाऊ होती है और न नस्ल और देश का भला होता है।

दरअसल इस सप्ताह की घटनाओं से मेरा ध्यान चेहरों पर हुआ। हिमाचल, यूपी, कर्नाटक में दलबदल, गुजरात से लेकर झारखंड में नेताओं की खरीद फरोख्त और भाजपा के टिकटों की चर्चा में बहुत कुछ सुना। नितिन गडकरी, प्रतिभा सिंह, मधु व गीता कोड़ा, डीके शिवकुमार पर सोशल मीडिया के हेडिंग और कवर दिखे तो नरेंद्र मोदी ‘द डिक्टेटर’ वीडियो की लोकप्रियता के आंकड़े मालूम हुए। पर फिर सवाल था कि लोकसभा चुनाव से ठीक पहले यह सब देख, जान लोग क्या अच्छे-बुरे का फैसला करने में समर्थ हैं?

मैं दिन में फोन पर सोशल मीडिया, यूट्यूब को मुश्किल से पांच-सात मिनट देता हूं। स्क्रॉल करते हुए हेडिंग, कवर देखता हूं। इस सप्ताह मोदी पुराण के एक्सट्रीम के बीच में नितिन गडकरी पर भी चर्चा दिखी। कैसी हैरानी की बात है जो 2014 में सरकार बनने से लेकर आज तक नरेंद्र मोदी-अमित शाह के ईर्द-गिर्द बेइंतहां खर्च का जहां मीडिया नैरेटिव है। वही नितिन गडकरी भी 2014 के पहले से अब तक लगातार दिलचस्पी के केंद्र हैं। फिलहाल यह कयास है कि मोदी-शाह सबको निपटा रहे हैं तो शिवराज, वसुंधरा की तरह नितिन गडकरी, राजनाथ सिंह आदि के टिकट कट जाने हैं।

बावजूद इसके गडकरी भाषणों के हवाले सोशल मीडिया में चर्चित हैं। भला गडकरी से ऐसा लगाव क्यों? एक ही वजह है। और वह है उनसे लोगों में फीलगुड! निश्चित ही दस वर्षों में नरेंद्र मोदी ने रंग-बिरगी पोशाकों, जुमलों, दिखावों, प्रवचनों, शृंगारों, झांकियों, नौटंकियों, विश्वगुरू के प्रोपेगेंडा नैरेटिव से अपने को अंधविश्वासियों में भगवान बनाया है। उनके प्रति हिंदुओं में भक्ति है। मगर वही ठीक कंट्रास्ट में लुटियन दिल्ली, भाजपा और संघ से ले कर समझदार आम जन में नितिन गडकरी का उनके मनसा, वाचा, कर्मणा से यह भाव है कि एक अच्छा आदमी। कितना काम किया और कितना समझदार!

लग रहा होगा मेरा नितिन गडकरी से कोई स्वार्थ है। उनसे मेरा मेल-जोल है। रत्ती भर नहीं। मगर मेरा मानना है भाजपा-संघ-हिंदुवादी चेहरों की जमात के लिए नितिन गडकरी का आज अकेला चेहरा है, जिससे पूरी जमात के अच्छेपन, भलेपन और उसमें रीढ़ की हड्डी होने का तर्क दिया जा सकता है। नरेंद्र मोदी के अहंकारी, अमर्यादित, नकली नेतृत्व ने देश-विदेश में संघ-भाजपा की जो इमेज बनाई है उसमें जमात पर ऊगलियां हैं। भविष्य के खतरे हैं।

मगर एक चेहरा तो ऐसा है जो सहज, सरल है। काम की सत्य बात करता है। एकात्म मानवतावादी है और संघ की शाखा से निकला वह पारिवारिक, सामाजिक जीव है और लोगों में नफरत नहीं, विभाजन नहीं बढ़ाता, बल्कि बल्कि दिल जीतता है। असली वसुधैव कुटुंबकमवादी है!

इसलिए देखना है कि ऐसे संघी, ऐसे भाजपाई का मोदी-शाह टिकट काटते हैं या नहीं? वैसे मेरा मानना है कि टिकट मिलेगा क्योंकि मोदी-शाह दोनों असलियत में 273 सीटों के लिए भी हांफते दिख रहे हैं। सो, गडकरी का टिकट काट नागपुर की सीट को वे खतरे में नहीं डाल सकते हैं।

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मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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