क्या संभव है जो लोकसभा चुनाव में गुजरात की किसी एक भी सीट पर नरेंद्र मोदी का उम्मीदवार हार जाए? कोई नहीं सोच रहा होगा मगर डर है तो जैसे पूरे देश में भाजपा का दलबदल, भर्ती का मेला है वैसा गुजरात में भी है। बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड, कर्नाटक या महाराष्ट्र का हिसाब तो समझ में आता है लेकिन गुजरात का मामला समझ में नहीं आने वाला है। Lok sabha Election 2024
गुजरात में भाजपा को भला क्या जरुरत है, जो कांग्रेस के नेता भर्ती किए जा रहे हैं? गुजरात में दो चुनाव से भाजपा सारी सीटें जीत रही है और इस बार प्रदेश अध्यक्ष सीआर पाटिल ने सभी सीटें पांच-पांच लाख से ज्यादा वोट के अंतर से जीतने का लक्ष्य तय किया है फिर भी कांग्रेस के लोग भर्ती किए जा रहे हैं।
भाजपा में ताजा भर्ती नाराण भाई राठवा और उनके बेटे संग्राम राठवा की हुई है। सोचें, नाराण भाई राठवा को मनमोहन सिंह की सरकार में अहमद पटेल ने मंत्री बनवाया था। रेलवे जैसा अहम मंत्रालय उनके पास था। बाद में उनको राज्यसभा की सीट दी गई, जिसका कार्यकाल तीन अप्रैल 2024 को समाप्त होगा।
लेकिन उनको लगा कि अब कांग्रेस कुछ देने की स्थिति में नहीं है तो वे भाजपा में चले गए। उनकी जरुरत समझ में आती है लेकिन भाजपा की क्या मजबूरी है कि वह राठवा को पार्टी में शामिल करे? Lok sabha Election 2024
गौरतलब है कि राठवा आदिवासी समुदाय से आते हैं और छोटा उदेपुर सीट से जीतते थे। क्या आदिवासी वोट की चिंता में भाजपा ने उनको शामिल कराया है? जब आदिवासी राष्ट्रपति बना दिया है और पीएम जनमन योजना चल रही है तब ऐसे प्रतीकों की क्या जरुरत है? क्या कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के तालमेल ने भाजपा को चिंता में डाला है या सिर्फ मजे लेने के लिए भाजपा ऐसे काम कर रही है?
संभव है कि कांग्रेस को और कमजोर करने, उसे रसातल में पहुंचाने की योजना के तहत ऐसा किया जा रहा हो। सात मार्च को राहुल की यात्रा गुजरात पहुंचने वाली है। उससे पहले माहौल बदलने की योजना के तहत भी यह काम किया गया हो सकता है।
राठवा अकेले नेता नहीं हैं, जो कांग्रेस छोड़ कर भाजपा में गए हैं। कांग्रेस के साथ जुड़े रहे पटेल नेता हार्दिक पटेल भी भाजपा में चले गए हैं। इस साल जनवरी में कांग्रेस के पुर्व विधायक इंद्रजीत सिंह परमार और उत्तर गुजरात के सहकारी नेता विपुल पटेल को भाजपा में शामिल कराया गया था।
उससे पहले आम आदमी पार्टी के कुछ नेताओं को भी भाजपा में शामिल कराया गया था। जाहिर है कि भाजपा को अब जीत से ज्यादा इस बात की भूख हो गई है कि ज्यादा से ज्यादा वोट से जीतें। इसलिए विपक्ष को कमजोर करने या पूरी तरह से खत्म करने की राजनीति की है।
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