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भाजपा पर भड़के कई राज्यों के राजपूत

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पिछले कुछ समय से ब्राह्मणों के बाद राजपूत भाजपा के लिए सबसे ज्यादा प्रतिबद्ध मतदाता के तौर पर उभरे थे। उन्होंने हिंदी पट्टी के कई राज्यों, जैसे बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश में प्रादेशिक पार्टियों के साथ बनाया गया अपना पुल तोड़ दिया था और भाजपा के बड़े जहाज पर सवार हो गए थे। राजस्थान में राजपूत पहले से भाजपा से जुड़े थे और मध्य प्रदेश में अर्जुन सिंह व दिग्विजय सिंह के बाद राजपूत भाजपा के साथ चले गए थे।

गुजरात अपवाद था, जहां आज तक माधव सिंह सोलंकी के बनाए खाम समीकरण के हिसाब से क्षत्रिय कांग्रेस के साथ कुछ हद तक जुड़े हैं। लेकिन गुजरात में केंद्रीय मंत्री और भाजपा के उम्मीदवार पुरुषोत्तम रूपाला के एक बयान से राजपूत ऐसे नाराज हुए हैं कि वे पूरे राज्य में प्रदर्शन कर रहे हैं। पहले उन्होंने रुपाला को चुनाव से हटाने की मांग की लेकिन भाजपा ने ऐसा नहीं किया तो अब उनको हराने का संकल्प जताया जा रहा है। उत्तर भारत के राज्यों में भी राजपूत आंदोलित हैं और भाजपा को हराने की कसमें खा रहे हैं। हालांकि उत्तर भारत में नाराजगी का कारण दूसरा है।

सबसे ताजा मामला उत्तर प्रदेश का है। सोचें, उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री हैं और देश भर के ठाकुर उनको प्रधानमंत्री पद का स्वाभाविक दावेदार मान रहे हैं तो उनके राज्य में कैसे राजपूत नाराज हो सकते हैं? लेकिन राजपूत नाराज हुए हैं और न सिर्फ नाराज हुए हैं, बल्कि बड़े बड़े सम्मेलन और महापंचायत करके अपनी नाराजगी जाहिर की है। पश्चिम उत्तर प्रदेश में राजपूतों का कई जगह जुटान हुआ। क्षत्रिय समाज संघर्ष समिति की ओर से पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सहारनपुर के ननौता गांव में क्षत्रिय स्वाभिमान महाकुंभ का आयोजन हुआ। इसमें उत्तर प्रदेश के अलावा राजस्थान और हरियाणा के लोग भी पहुंचे।

इस तरह के आयोजन मेरठ, सरधना और गाजियाबाद में भी होने की खबर है। बताया जा रहा है कि पश्चिम उत्तर प्रदेश के राजपूत स्थानीय राजपूत नेताओं को भाजपा में किनारे किए जाने से नाराज हैं। भाजपा के फायरब्रांड नेता संगीत सोम खुल कर मुजफ्फरनगर के सांसद संजीव बालियान के खिलाफ बोल रहे हैं। संगीत सोम हों या सुरेश राणा और चंद्रमोहन हों। मुजफ्फरनगर दंगों के समय और उसके बाद ये नेता बड़ी तेजी से उभरे थे। लेकिन राजपूत मान रहे हैं कि इनको हाशिए पर डाल दिया गया है। इनके विरोध और राजपूतों की नाराजगी से मुजफ्फनगर के साथ साथ पश्चिमी उत्तर प्रदेश की कई सीटें मुश्किल में पड़ी हैं। इस बीच भाजपा ने गाजियाबाद सीट से जनरल वीके सिंह की टिकट काट कर अतुल गर्ग को उम्मीदवार बना दिया। इससे भी राजपूत भड़के। तभी अचानक उनको राज्यपाल बनाए जाने की चर्चा है।

इसके साथ एक साजिश थ्योरी की भी चर्चा हो रही है। कहा जा रहा है कि राजपूत समाज की नाराजगी के पीछे कहीं न कहीं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उनके करीबी लोगों का हाथ है। हालांकि इसका कोई प्रत्यक्ष कारण नहीं है क्योंकि पार्टी ने उनको और राजनाथ सिंह दोनों को पर्याप्त महत्व दे रखा है। लेकिन साजिश थ्योरी के मुताबिक ठाकुर समाज को लग रहा है कि लोकसभा चुनाव में अगर भाजपा फिर से तीन सौ सीट जीत जाती है और नरेंद्र मोदी व अमित शाह की कमान मजबूत होती है तो योगी को मुख्यमंत्री पद से हटाया जा सकता है। इसलिए पहले ही उन्होंने पोजिशनिंग शुरू कर दी है ताकि मोदी और शाह की सत्ता बहुत मजबूत न बने।

मिसाल के तौर पर 1999 का जिक्र किया जा रहा है। भाजपा 1998 में उत्तर प्रदेश में 57 सीटों पर जीती थी लेकिन 1999 में वह सिर्फ 29 सीट जीत पाई, जबकि बाकी देश में उसका प्रदर्शन पहले जैसा ही रहा। कहा जा रहा है कि पार्टी के एक बड़े नेता ने केंद्र के उस समय के दोनों नेताओं को बेकाबू होने से रोकने के लिए ऐसी राजनीति की थी, जिससे भाजपा की सीटें आधी रह गईं थीं। बहरहाल, अब पता नहीं कोई साजिश है या स्वाभाविक रूप से राजपूत नाराज हुए हैं लेकिन यह हकीकत है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में राजपूतों की नाराजगी भाजपा उम्मीदवारों के लिए मुश्किल पैदा कर रही है।

योगी आदित्यनाथ को लेकर ऐसी आशंका इसलिए भी पैदा हुई है क्योंकि राजस्थान और छत्तीसगढ़ में राजपूतों के बड़े नेता हाशिए में चले गए हैं। राजस्थान में चुनाव जीतने के बावजूद वसुंधरा राजे की जगह भजनलाल शर्मा को मुख्यमंत्री बनाया गया और छत्तीसगढ़ में रमन सिंह स्पीकर बना दिए गए। मध्य प्रदेश में भी नरेंद्र सिंह तोमर को स्पीकर बना दिया गया और ओबीसी समाज के मोहन यादव मुख्यमंत्री हो गए। तभी उत्तर प्रदेश के राजपूतों को लग रहा है कि अगली बारी योगी आदित्यनाथ की है। इस आशंका में पहले ही राजपूत समाज आक्रामक हो गया है। इस बीच गुजरात में रूपाला के बयान और कई राज्यों में राजपूत उम्मीदवारों की टिकट कटने से भी राजपूतों में नाराजगी हुई है।

पिछले कुछ समय से कहावत की तरह यह बात कही जा रही थी कि उत्तर प्रदेश में राजपूत नेता अगर भाजपा से बाहर किसी दूसरी पार्टी में है तब भी उसका शरीर ही वहां है, उसकी आत्मा भाजपा के साथ ही है। लेकिन अब राजपूत समाज के लोग नरेंद्र मोदी को परशुराम बता कर कह रहे हैं कि क्षत्रियों का संहार कर रहे हैं। उत्तर प्रदेश के अलावा बड़ी नाराजगी झारखंड में देखने को मिल रही है, जहां भाजपा ने दो मौजूदा राजपूत सांसदों की टिकट काट दी है। राज्य की 14 सीटों में से पिछली बार भाजपा ने दो सीटों पर दो राजपूत लड़ाए थे और दोनों जीते भी थे। लेकिन इस बार धनबाद में पीएन सिंह की टिकट काट कर ढुलू महतो को दी गई है और चतरा में सुनील सिंह की टिकट काट कर कालीचरण सिंह को दी गई है, जो भूमिहार हैं। सो, राजपूत बुरी तरह से भड़के हैं। हालांकि बगल के राज्य बिहार में भाजपा ने अपने सभी पांच मौजूदा राजपूत सांसदों को रिपीट किया है। उसके हिस्से में 17 सीटें हैं, जिनमें से उसने पांच पार राजपूत उतारे हैं।

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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