वैसे तो लोकसभा का चुनाव सात चरणों में है, लेकिन जिस तरह से पहले चरण के बाद चुनाव प्रचार का तरीका बदला और काफी हद तक धारणा बदली उसी तरह से दूसरे चरण के मतदान के बाद चुनाव का पूरा नैरेटिव बदल सकता है। पहला चरण विपक्ष के कुछ खास हासिल करने का नहीं था क्योंकि उसमें एनडीए और विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ के बीच फिफ्टी-फिफ्टी का मुकाबला था। सीटे बराबरी में बंटी हुई थीं। लेकिन दूसरे चरण में मुकाबला वहां है,जहां पिछली बार भाजपा की छप्पर फाड़ जीत थी। अगर इन सीटों पर, चुनाव के राज्यों में विपक्षी गठबंधन भाजपा को रोक देता है तो यह उसकी वापसी का हो सकता है।
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मतलब 12 राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश की 88 सीटों का दूसरा दौर विपक्ष और भाजपा दोनों के लिए मेक ऑर ब्रेक का चरण साबित हो सकता है। इस चरण में 50 सीटें भाजपा के पास थीं और आठ उसकी सहयोगियों के पास। कांग्रेस की सिर्फ 21 सीटें थीं और उसमें से भी 15 अकेले केरल से। अगर विपक्ष इस चरण में कहीं भी अच्छा प्रदर्शन करता है और चुनाव जीतता है तो वह भाजपा का बड़ा नुकसान होगा।
पिछले साल मई में कर्नाटक विधानसभा की जीत ने कांग्रेस को भाजपा के खिलाफ लड़ने की ताकत और हिम्मत दोनों दी थी। उसी दम पर इस बार कांग्रेस लोकसभा चुनाव में भाजपा को कड़ी चुनौती दे रही है। पिछली बार यानी 2019 में भाजपा ने 25 सीटें जीती थीं। एक सीट उसके समर्थन से निर्दलीय सुमालता अंबरीष ने जीती थी। एक एक सीट जेडीएस और कांग्रेस को मिली थी। अब सुमालाता अंबरीष और जेडीएस दोनों भाजपा के साथ हैं तो उसके सामने 28 में से 27 सीटें बचाने की चुनौती है।
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कल राज्य की 28 में से आधी यानी 14 सीटों पर मतदान हुआ। भाजपा और जेडीएस गठबंधन एक तरफ जहां लिंगायत और वोक्कालिगा के समीकरण पर लड़ता हुआ दिखा वहीं कांग्रेस ने ओबीसी, दलित और मुस्लिम के मजबूत वोट आधार से चुनौती दी। भाजपा की मुश्किल यह है कि एचडी देवगौड़ा की पार्टी जेडीएस से तालमेल के बावजूद वोक्कालिगा वोट एकमुश्त मिलने की गारंटी नहीं हुई। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष और राज्य के उप मुख्यमंत्री डीके शिवकुमार भी वोक्कालिगा जाति से आते हैं और दक्षिणी कर्नाटक में वे जेडीएस के कोर वोट में सेंधमारी करने में कुछ हद तक कामयाब हुए हैं।
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भाजपा की दूसरी मुश्किल कर्नाटक में पार्टी के भीतर अंदरूनी खींचतान होना है। वरिष्ठ नेता केएस ईश्वरप्पा बागी होकर शिवमोगा सीट पर बीएस येदियुरप्पा के बेटे के खिलाफ लड़ रहे हैं। डीवी सदानंद गौड़ा भी टिकट नहीं मिलने से नाराज हैं। येदियुरप्पा और पार्टी के संगठन महामंत्री बीएल संतोष की खींचतान में अनंत हेगड़े, नलिन कुमार कतिल आदि की टिकट कटी है। दूसरी ओर कांग्रेस के दोनों शीर्ष नेता, सिद्धरमैया और डीके शिवकुमार ने एकजुट होकर चुनाव लड़ा है। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे खुद लगातार चुनाव की निगरानी करते रहे क्योंकि यह उनका गृह प्रदेश है। को भाजपा को इस चरण में 14 में से अपनी 11 और सहयोगियों की दो सीटें यानी 13 सीटें बचानी हैं। कांग्रेस की इकलौती सीट पर भी मतदान हुआ है। ऐसे में भाजपा का जो भी नुकसान होगा वह कांग्रेस का फायदा होगा। तभी मतदान की दशा-दिशा पर प्रदेश में अगले चरण का माहौल बनेगा।