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गपशप

हकीकत और सवाल

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2024 का चुनाव पहेली जैसा हो गया है! इतने सवाल हो गए हैं कि मै अपने ऑब्जर्वेशन और फीडबैक पर खुद किंतु-परंतु करते हुए हूं। सोचें, इन बिंदुओं पर- 

1- सोशल मीडिया पर मोदी का वैसा डंका नहीं है जैसा 2014 और 2019 में था। सोशल मीडिया के मोदी भक्त हाशिए में हैं। वही विपक्ष के जीतने की तूताड़ी है। इसलिए सवाल है कि मोदी का चेहरा, मुद्दा और नैरेटिव उस सोशल मीडिया, यूट्यूब, इंस्टाग्राम की पसंदगी से कैसे बाहर है, जिसे नौजवान वोटर सर्वाधिक देखते हैं! और यदि ऐसा है तो इसका अर्थ?

2- टीवी चैनलों, अखबारों की अपनी दुकानों में सौ टका कवरेज होने के बावजूद नरेंद्र मोदी को गुलाम चारणों को घर बुलाकर एक के बाद एक इंटरव्यू देने पड़ रहे हैं। क्या ऐसी बेचैनी 2019 में थी? और इसके मायने?

3- मोदी के लिए संघ परिवार और भाजपाई नेताओं की संजीदगी व मेहनत lक्या 2014 या 2019 जैसी दिखती है? और नहीं तो यह फर्क क्यों? 

4- मोदी-भाजपा की आईटी सेल, वॉर रूम, संगठन मंत्री, क्षेत्रीय प्रचारक से लेकर बूथ के पन्ना प्रमुखों सबकी उपस्थिति, जोश और साधनों का तामझाम 2014 व 2019 से आज निश्चित ही कमतर है। इसी की वजह से भाजपा के सभी पुराने गढ़ों (विशेष कर बड़े शहरों) में मतदान क्या कम होता हुआ नहीं है?

5- जनसभाओं में भीड़ और जोश मोदी-शाह की रैली में ज्यादा या विपक्षी रैलियों, सभाओं में? 

6- मोदी की गारंटी, भाजपा के घोषणापत्र की ज्यादा चर्चा हुई या कांग्रेस घोषणापत्र व विपक्षी नेताओं के वायदों की?

7- नरेंद्र मोदी विपक्षी नेताओं के कहे पर भाषण करते हुए हैं या राहुल, अखिलेश, तेजस्वी, उद्धव आदि नरेंद्र मोदी के कहे पर कैंपेन करते हुए? कौन डिफेंसिव है और कौन आक्रामक?

8- वोटों की गणित में विपक्षी उम्मीदवार के पक्ष में जातियों का हिसाब पुख्ता है या नरेंद्र मोदी और भाजपा की गणित?

9- सन् 2019 के चुनाव की तुलना में इस चुनाव में मौजूदा सांसदों के खिलाफ गुस्सा, असंतोष, एंटी इन्कम्बेंसी की बातें क्या सभी ओर सुनने को नहीं मिल रही? मोदी से ज्यादा उम्मीदवार का चेहरा लोगों के बीच क्या मसला नहीं है? 

10- नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी में किस पर फब्तियों की अधिक बौछार है? मतलब नरेंद्र मोदी को ‘झूठा’ और राहुल गांधी को ‘पप्पू’ कहने के डायलॉग में किसका क्या अनुपात है? और इससे क्या जाहिर है? 

11- क्या नौकरशाही खास तौर पर जिला और राज्य स्तर पर मोदी के लिए प्रो-एक्टिव है? कर्मचारी बूथ लेवल पर मोदी विरोधियों के वोट पड़ने में रूकावट पैदा करते हुए हैं या वे तटस्थ हैं? 

12- भाजपा के स्टार प्रचारक (जैसे योगी आदित्यनाथ) 2019 की तरह मेहनत करते हुए हैं या सुबह निकल शाम को ठिकाने लौटने के महज एक रूटिन में एक्टिव हैं? 

13- क्या 2024 का चुनाव जातीय असंतोष (राजपूतों में सौगंध या हरियाणा में जाटों की पंचायत या झारखंड में सरना, महतो, यूपी में कुर्मियों, गुर्जर बनाम जाट जैसी अंडरकरंट) का अधिक मारा हुआ नहीं है?

14- सन् 2019 के मुकाबले में वे कौन सी चर्चाएं हैं, जो नरेंद्र मोदी की जुबानी, अपनी नवीनता से खटाखट नैरेटिव में छाई हैं? और उसकी तुलना में विपक्षी नेताओं के जुमलों में उद्धव, राहुल, अखिलेश, तेजस्वी के जुमले कितने हिट या फ्लॉप? सवाल यह भी है कि मोदी के विज्ञापन वीडियो में ताजगी-तुकबंदी ज्यादा है या कांग्रेस के विज्ञापनों में? 

15- क्या इस दफा विपक्ष को बांटने और वोट काटने की मोदी-शाह की रणनीति में मायावती, ओवैसी, प्रकाश अंबेडकर आदि 2019 के मुकाबले बुरी तरह नाकाम नहीं हो रहे है? 

सोचे, इन सब सवालों से कैसी तस्वीर उभरती है?

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