nayaindia क्या वैश्य समाज को है केजरीवाल की गिरफ्तारी से नाराजगी?

क्या वैश्य भाजपा से नाराज हैं?

वैश्य समाज
vaishya community Arvind Kejriwal

बड़ा सवाल है कि क्या दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी से वैश्य समाज नाराज है? यह आम चर्चा है और सोशल मीडिया में इसकी झलक भी मिल रही है। इस बात को लेकर नाराजगी जताई जा रहा है कि देश के इकलौते वैश्य मुख्यमंत्री को राजनीतिक कारणों से गिरफ्तार कर लिया गया है। वैश्य मतदाता जागरूक हैं और पढ़े-लिखे हैं तो उनको समझ भी आ रहा है कि एक तरफ भ्रष्टाचार के केस में बंद नेताओं को रिहा या बरी किया जा रहा है तो दूसरी ओर राजनीतिक विरोध की वजह से अरविंद केजरीवाल को जेल में डाल दिया गया है। इस बात की भी नाराजगी है कि आम आदमी पार्टी को खत्म करने का प्रयास किया जा रहा है, जो एक वैश्य नेता की बनाई पार्टी है।

असल में अरविंद केजरीवाल, उनकी पत्नी सुनीता केजरीवाल और पार्टी के अन्य नेता लगातार इस बात का माहौल बनाए हुए हैं कि भाजपा का मकसद आम आदमी पार्टी को खत्म करना है। सहानुभूति के लिए ही इस बात को भी जोर शोर से उछाला जा रहा है कि हिरासत में केजरीवाल के साथ ज्यादती हो रही है। खुद सुनीता केजरीवाल ने यह बात कही। उन्होंने भावुक अंदाज में कहा कि ‘आपके सीएम की तबियत ठीक नहीं है’।

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यह बात उन्होंने कही तो पूरी दिल्ली की जनता से लेकिन वैश्य समाज को यह बात ज्यादा अपील कर रही है। इससे केजरीवाल और उनकी पार्टी के प्रति सहानुभूति बन रही है। आखिर केजरीवाल ने मुख्यमंत्री बनने के बाद दिल्ली के कारोबारियों से किया वादा निभाया है। उन्होंने कहा था कि उनकी सरकार बनी तो टैक्स वगैरह की चोरी पकड़ने के लिए कोई छापेमारी नहीं होगी। इसका बड़ा फायदा वैश्य समाज को मिला। इसलिए वह लोकसभा में भले भाजपा को वोट करता है लेकिन विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी के साथ जुड़ा रहता है।

ध्यान रहे दिल्ली में उनको वैश्य समुदाय का स्पष्ट समर्थन मिलता है। दिल्ली में वैश्यों की आबादी तीन भौगोलिक इलाकों की है। एक आबादी दिल्ली के मूल वैश्यों की है और दो हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश की है। चूंकि केजरीवाल खुद हरियाणा के हैं और दिल्ली के मुख्यमंत्री हैं इसलिए इन दो राज्यों के वैश्यों के बीच उनकी व्यापक स्वीकार्यता है। सो, उनकी गिरफ्तारी से दोनों राज्यों में असर देखने को मिल रहा है।

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हालांकि इसका क्या राजनीतिक नुकसान भाजपा को होगा और आम आदमी पार्टी कितना फायदा उठा पाएगी लेकिन इतना तय है कि अभी भाजपा के प्रति विश्वास डिगा। इसका एक दूसरे स्तर पर भी भाजपा को नुकसान हो सकता है। गौरतलब है कि भाजपा ईमानदार होने की राजनीति करती है, जबकि अरविंद केजरीवाल ने अदालत में खड़े होकर बताया है कि शराब घोटाले में जिन लोगों को लाभ होने की बात कही जा रही है उन लोगों ने भाजपा को सबसे ज्यादा चंदा दिया है और उन्हीं के बयान के आधार पर केजरीवाल को गिरफ्तार किया गया है।

अभी तक देश का मध्य वर्ग यह स्वीकार करने को तैयार नहीं था कि केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार कुछ गलत कर सकती है। लेकिन केजरीवाल के मामले के बाद वैश्यों के मन में संशय पैदा हुआ है। अगर उनके बीच भाजपा की सरकार के बेईमान होने की धारणा बनती है तो लंबे समय में इसका नुकसान हो सकता है।

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केजरीवाल प्रकरण से दिल्ली, हरियाणा और कुछ हद तक पंजाब में भाजपा को वैश्य वोट का नुकसान उठाना पड़ सकता है। इससे अलग टिकट बंटवारे की वजह से बिहार में भी वैश्य समाज नाराज है। गौरतलब है कि बिहार में भाजपा के 17 सांसदों में से दो वैश्य थे, जिनमें से एक की टिकट कट गई है और एक वैश्य की टिकट भाजपा की सहयोगी जनता दल यू ने भी काट दी है।

गठबंधन की दोनों पार्टियों में से तीन की जगह अब सिर्फ एक वैश्य उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे हैं। संयोग है कि जिन दो वैश्यों की टिकट कटी है वे अगल बगल के चुनाव क्षेत्र से जीते थे। सीतामढ़ी से जदयू की टिकट पर सुनील कुमार पिंटू और शिवहर की सीट से भाजपा की टिकट  पर रमा देवी जीती थीं। रमा देवी तीन बार से भाजपा की टिकट से जीत रही थीं और पहले राजद की टिकट से मोतिहारी सीट से भी सांसद रही हैं। उनके पति बिहार सरकार में मंत्री रहे हैं और उत्तर बिहार में वैश्य समुदाय के वोट पर उनका बड़ा असर रहा है।

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सुनील कुमार पिंटू पहले भाजपा से सांसद होते थे और पिछले चुनाव में जब समझौते के तहत उनकी सीट नीतीश कुमार के खाते में गई तो वे जदयू से चुनाव लड़े थे। इस बार दोनों की टिकट कट गई है। अब इकलौते वैश्य उम्मीदवार संजय जायसवाल हैं। ध्यान रहे बिहार में वैश्य पिछड़ी जाति में आते हैं। उनमें से दो की टिकट काट कर उनकी जगह दो सवर्ण उम्मीदवार उतार गए हैं। इससे वैश्य तो नाराज हैं ही पिछड़ों की एकजुटता का नैरेटिव बनाने की अलग कोशिश हो रही है।

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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