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14-06-2025 Vol 19

मोदी क्या नेतन्याहू जैसा बदला लेंगे?

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प्रधानमंत्री मोदी अंग्रेजी में बोले! वह भी बिहार की जनसभा में! कहा, ‘हम उन्हें धरती के अंतिम छोर तक खदेड़ेंगे। पहलगाम के दोषियों को मिट्टी में मिलाने का समय आ गया है। आतंकियों को कल्पना से भी बड़ी सजा मिलकर रहेगी’। सवाल है पहलगाम की आंतकी घटना के दोषी कौन हैं? पुलिस ने जिन तीन आतंकवादियों के फोटो जारी किए हैं उनको खोजना, मारना, मिट्टी में मिलाने का काम वह सजा नहीं हो सकती है, जिस पर प्रधानमंत्री कहे कि उन्हें कल्पना से भी बड़ी सजा मिलेगी।

आतंकी तो मौत की तैयारी के निश्चय से ही बनता है। असल बाद आतंकवाद को मिट्टी में मिलाने की है। और उसका हाल-फिलहाल ठोस उदाहरण इजराइल के नेतन्याहू देते हुए हैं। यहूदियों के साथ हमास के आतंकियों ने जो किया वह जगजाहिर है। उसके अधिक भयावह वारदात पहलगाम में मासूम पर्यटक हिंदुओं पर आतंकियों की बेरहमी थी। देश हिला और पूरी दुनिया भारत के साथ खड़ी है।

मोदी के बदले के ऐलान पर सस्पेंस

भारत ने पहलगाम के दोषियों में सीधे तौर पर पाकिस्तान पर न केवल ऊंगली उठाई है, बल्कि उसके खिलाफ फैसले किए हैं। सो, दुनिया को साफ बता दिया कि पाकिस्तान दोषी है। स्वाभाविक है कि उसे वैसा ही सबक सीखना मोदी की कसम है, जैसे इजराइल के नेतन्याहू ने गाजा को मिट्टी में मिलाया है। आतंकियों के पैरोकार ईरान, लेबनान, यमन, सीरिया पर भी ढेरों मिसाइलें दागीं।

हां, इस हवाबाजी का जीरो अर्थ है कि सिंधु जल संधि स्थगित करने से पाकिस्तान प्यासा मर जाएगा। उसकी सेहत पर इसलिए असर नहीं होना है क्योंकि भारत ने पानी रोकने याकि उसके संग्रह के लिए बांध, बैराज नहीं बनाए हुए हैं। भारत ने तुरंत पाकिस्तान को लक्षित करके जो भी कदम उठाए है उससे पाकिस्तान पर असर नहीं होना है। उलटे भारत को भी आर्थिक नुकसान होगा।

असल बात प्रधानमंत्री मोदी के मुंह से निकले ये वाक्य हैं कि, ‘धरती के अंतिम छोर तक खदेड़ेंगे। पहलगाम के दोषियों को मिट्टी में मिलाने का समय आ गया है’। इसका अर्थ है नेतन्याहू जैसी या उससे भी बड़ी बदले की कार्रवाई। आंतकवाद के खिलाफ जंग में पहले अमेरिका ने (9/11 के बाद) और हाल में दो वर्षों से इजराइल के नेतन्याहू ने प्रतिमान बनाया है। बुश और नेतन्याहू से भी ज्यादा भारी जुमला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिहार की जनसभा में कहा है।

क्या यह कहना बिहार के आगामी चुनाव में लोगों के वोट लेने के लिए है या सचमुच आतंकवाद की जड़ पाकिस्तान को मिट्टी में मिला देने या उसे हैसियत दिखाने की कसम है? गीदड़भभकी है, थोथा चना बाजे घना है या नेतन्याहू की तरह सैनिक अभियान का बिगुल है?

गड़बड़ यह है कि बदला और खासकर देश की आन, बान शान से जुड़ी बदले की कार्रवाई का इरादा जनसभा में जाहिर नहीं होना चाहिए। हिसाब से भारत के लिए आदर्श स्थितियां हैं। दुनिया का कोई देश आज पाकिस्तान के साथ नहीं है। अमेरिका से चीन को जैसी परेशानी है उसमें वह भारत के खिलाफ नहीं जा सकता।

पहलगाम की आतंकी घटना का बदला लेने की भारत की कार्रवाई में अमेरिका, रूस, यूरोपीय संघ, जापान आदि सभी देश भारत के साथ मौन रहेंगे। बावजूद इसके पाकिस्तान एटमी हथियारों से लैस तो है। दुनिया चिंता तो करेगी। हमास, लेबनान, ईरान आदि से बदला लेने की इजराइल की ग्राउंड रियलिटी में बहुत कुछ अलग है। जबकि पाकिस्तान का मसला अलग तरह का है।

इसलिए लाख टके का सवाल है कि प्रधानमंत्री मोदी ने ‘मिट्टी में मिलाने का समय आ गया है’ का जुमला क्या हिसाब लगा कर बोला? क्या सेना भेजकर पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर को लेने का लक्ष्य है ताकि वहां से ऑपरेट करने वाले आतंकियों का झंझट हमेशा के लिए खत्म हो? ऐसे ही नेतन्याहू ने सोच कर हमास के मददगार इलाकों पर सैनिक हमले किए। हाल में पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर को ले सरकार के कई मंत्रियों के बयान आए है। तो क्या पीओके पर कब्जे से भारत का बदला लेना पूरा होगा? कुल मिलाकर प्रधानमंत्री मोदी के बदले के बयान में नेतन्याहू के मौजूद साक्षात उदाहरण से यह भारी सस्पेंस बना है कि कैसे भारत पहलगाम के दोषियों को मिट्टी में मिलाता है!

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Pic Credit: ANI

हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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