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सामाजिक सुरक्षा की हरियाली

इस साल जुलाई में केंद्र सरकार ने दावा किया था कि भारत सामाजिक सुरक्षा की कवरेज के  मामले में दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश बन गया है। भारत में सामाजिक सुरक्षा की कवरेज 64 फीसदी आबाद तक पहुंच गई है। देश के 94 करोड़ से ज्यादा लोग सामाजिक सुरक्षा पा रहे हैं। सोचें, यह संख्या अमेरिका की कुल आबादी के तीन गुना से थोड़ा ही कम है। अमेरिका की  सामाजिक सुरक्षा योजना के बारे में सारी दुनिया जानती है और दुनिया ने देखा कि कैसे  कोरोना की महामारी आई तो सरकार ने सामाजिक सुरक्षा योजना से जुड़े लोगों के सोशल सिक्योरिटी नंबर के जरिए खातों में पैसे पहुंचाए। लेकिन भारत में क्या हुआ? भारत में करोड़ों लोगों को हजारों किलोमीटर पैदल चलवा कर गांव लौटने के लिए बाध्य किया गया। किसी के खाते में कोरोना राहत के नाम पर कोई पैसा ट्रांसफर नहीं हुआ। कोरोना राहत का जो पैकेज आया उसका डंका बजा कि वह 20 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा का है लेकिन किसी को एक रुपया नहीं मिला। राहत पैकेज के नाम पर सरकार ने कर्ज देने की व्यवस्था की। तभी जब यह आंकड़ा सामने आया कि अमेरिका की आबादी के तीन गुना संख्या को भारत में सामाजिक सुरक्षा मिल रही है तो हैरानी हुई।

बाद में पता चला कि 94 करोड़ लोग भारत सरकार की चलाई किसी न किसी योजना में से कम से कम एक का लाभ जरूर ले रहे हैं। इसमें 80 करोड़ वो लोग हैं, जिनको पांच किलो मुफ्त अनाज मिल रहा है। यह सरकार की सबसे बड़ी सामाजिक सुरक्षा योजना है! यह योजना भी पूरे देश में घोटाले की मारी है। बिना किसी अपवाद के हर राज्य के हर जिले, शहर, कस्बे और गांव में पांच किलो की जगह तीन या चार किलो अनाज मिल रहा है। हर राज्य में ऐसी खबरें आ रहा हैं कि हजारों मर चुके लोगों के नाम पर राशन बंट रहा है। असल में मुफ्त अनाज की योजना घोटाले की सबसे बड़ी योजना बन गई है। राशन कार्ड के सत्यापन के दौरान ऐसी खबरें आईं कि देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में लगभग सभी जिलों में इतना घोटाला हुआ है कि सरकार ने अदालत को बताया कि 30 हजार से ज्यादा मुकदमे दर्ज करने होंगे।

ऐसी खबरें आईं कि मुफ्त अनाज योजना का अनाज ट्रेनों में लद कर बांग्लादेश तक गया। राजधानी दिल्ली में साढ़े 10 हजार ऐसे लोग मिले, जो मर चुके हैं और उनके नाम पर पांच किलो अनाज उठाया जा रहा है। हजारों ऐसे मिले, जिनकी उम्र एक सौ से 120 साल के बीच है। हजारों ऐसे मिले, जो आयकर रिटर्न भरते हैं और उनके नाम पर अनाज उठाया जा रहा है। यह कहानी हर राज्य, हर शहर की है। यह सामाजिक सुरक्षा की सबसे बड़ी योजना है। यानी अगर किसी को पांच किलो अनाज मिल रहा है तो वह सामाजिक सुरक्षा के दायरे में है और उसी के आंकड़े से भारत सबसे ज्यादा लोगों को सामाजिक सुरक्षा देने वाला दूसरा देश बनने का दावा करता है।

केंद्र सरकार की ऐसी अनेक योजनाए हैं, जिनमें से किसी न किसी का लाभ कथित रूप से 94 करोड़ लोगों को मिल रहा है। जैसे स्वच्छता मिशन के तहत शौचालय बनाए गए। उसके लिए सरकार ने पैसे दिए। एक दिन अचानक घोषणा कर दी गई कि देश खुले में शौच से मुक्त हो गया। हकीकत यह है कि राजधानी दिल्ली में हर दिन हजारों लोग खुले में शौच के लिए जाते दिख जाएंगे। ऐसे ही सरकार ने किसान सम्मान निधि की योजना शुरू की। इसमें रजिस्टर्ड किसानों को पांच सौ रुपया महीना मिलता है। सोचें, पांच सौ रुपए की सम्मान निधि के बारे में! यह भारत की सामाजिक सुरक्षा की योजना है! सरकार ने आयुष्मान भारत योजना की शुरुआत की, जिससे लाभ कितने लोगों को मिला वह आंकड़ा हमेशा संदिग्ध रहा लेकिन घोटाले जो हुए वह अभूतपूर्व हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गृह राज्य गुजरात में कई अस्पतालों का फर्जीवाड़ा सामने आया।

एक अस्पताल की खबर आई कि उसने गांव में शिविर लगाया और 19 लोगों को कहा कि दिल की बीमारी है। उनको शहर लाकर अस्पताल में भर्ती कराया गया और आय़ुष्मान योजना के तहत उनकी एंजियोग्राफी कर दी गई। इनमें से दो की मौत हो गई और पांच गंभीर रूप से बीमार हो गए। ऐसे कांड करने वाले अस्पतालों की संख्या सैकड़ों में नहीं, बल्कि हजारों में है। उत्तर प्रदेश के 11 जिलों में  39 अस्पतालों की कहानी सामने आई, जिनके यहां बिना किसी मरीज का इलाज किए आयुष्मान योजना के 10 करोड़ रुपए गए। हिमाचल प्रदेश के दो निजी अस्पतालों ने करोड़ों रुपए बिना इलाज के उठा लिए। झारखंड, पश्चिम बंगाल सहित कई राज्यों में घोटाला इतना बड़ा हो गया कि ईडी कार्रवाई कर रही है।

कुल मिला कर भारत में सामाजिक सुरक्षा का मतलब पांच किलो अनाज, पांच सौ रुपए की किसान सम्मान की राशि, शौचालय या अयुष्मान कार्ड है, जिसमें नागरिकों को न तो किसी किस्म का अधिकार मिलता है और न उसका सशक्तिकरण होता है। सारी योजनाएं सरकार को माई बाप बनाने वाली हैं और व्यवस्था से जुड़े लोगों के लिए घोटाले का रास्ता खोलती हैं। नागरिकों को सशक्त बनाने वाली एक भी योजना नहीं है। असल में पूरा देश सामाजिक, आर्थिक रूप से असुरक्षा के घेरे में है। नोटबंदी के बाद से असुरक्षा का जो दौर शुरू हुआ था वह कोरोना काल में जारी रहा। जीएसटी में आठ साल के बाद सुधार का डंका बजाया जा रहा है लेकिन इससे आम लोगों को कितना-क्या लाभ मिलेगा? ऊपर से अमेरिकी टैरिफ और चीन के साथ दोस्ती की मजबूरी ने सामरिक, आर्थिक हर किस्म की सुरक्षा को भी खतरे में डाला है।

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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