अमृतकाल में चौतरफा आलम ठगी का है। आप ट्रेन से टिकट बुक कराएं तो आपके साथ ठगी हो रही होती है, आप ई कॉमर्स की वेबसाइट से सामान मंगाएं तो आपके साथ ठगी होती है, आप ऐप आधारित कैब सेवा बुक करें तो आपके साथ ठगी होती है, कुछ भी सुरक्षित नहीं है। और ऐसा नहीं है कि इस बारे में सरकार या उसकी एजेंसियों को पता नहीं है। लेकिन वे कुछ नहीं कर सकती हैं। इनमें से कई लूट तो कानून सम्मत है। कुछ पर जरूर सरकार लगाम लगाने की कोशिश करती है लेकिन उसमें कामयाब नहीं हो पाती है।
मिसाल के लिए पिछले कुछ समय से सरकार ने रेलवे की टिकट बुंकिंग में दलालों की घुसपैठ रोकने की कोशिश की ताकि आम लोग सीधे बुकिंग कर पाएं। लेकिन इसमें भी कामयाबी नहीं मिल रही है। कुछ दिन पहले रेलवे ने तत्काल बुकिंग के लिए आधार वेरिफिकेशन अनिवार्य किया। यह भी अनिवार्य किया कि तत्काल बुकिंग खुलने के बाद पहले 10 मिनट तक ट्रैवल एजेंट टिकट बुक नहीं करा सकेंगे। रेलवे को पता था कि एजेंट्स की सेटिंग होती है और वे पहले ही टिकट बुक करा लेते हैं। लेकिन रेलवे की इसे रोकने की योजना कामयाब नहीं हो पा
रही है।
दो तरह से इसको फेल किया गया है। एक तो एजेंट्स और अधिकारियों की मिलीभगत का रास्ता है। ऐसी व्यवस्था बना दी गई है कि तत्काल बुकिंग खुलने के बाद शुरुआत में कुछ देर तक बुकिंग की साइट ही हैंग हो जाती है या स्लो हो जाती है। आम लोगों की टिकट प्रोसेस नहीं हो पाती है और तब तक विंडो बंद हो जाती है। एजेंट अपना काम कर लेते हैं। दूसरे तरीके का खुलासा पिछले ही दिनों हुआ कि एजेंट्स ने ऐसे ऐप बनवा लिए हैं, जिनके जरिए वे बुकिंग करते हैं। आम लोग मैनुअल तरीके से अपना नाम, पता, उम्र, डेस्टिनेशन आदि भरते हैं और पेमेंट गेटवे का इस्तेमाल करते हैं लेकिन एजेंट्स ऐप के जरिए चंद सेकेंड में सारी जानकारी भर कर टिकट बुक करा लेते हैं।
इसी तरह पिछले कुछ दिनों से क्विक कॉमर्स की साइट्स जैसे बिग बास्केट, जेपटो, ब्लिंकिट आदि, टिकट बुकिंग व ट्रैवल की मेक माई ट्रिप या ईजी माइ ट्रिप जैसी साइट्स या मिंत्रा, जोमैटो आदि साइट्स के डार्क पैटर्न की बहुत चर्चा है। हालांकि कंपनियां कह रहीं हैं कि उन्होंने डार्क पैटर्न हटा दिए हैं लेकिन यह वास्तविकता नहीं है। इन कंपनियों के डार्क पैटर्न में एक बहुत चर्चित ड्रीप प्राइसिंग का है। इसमें कंपनियां सामानों की कीमत पहले कम दिखाती हैं और ऑर्डर हो जाने के बाद उसमें चार्ज जोड़ कर उसे बढ़ा देती हैं। ई कॉमर्स, क्विक कॉमर्स, फूड डिलीवरी से लेकर इंश्योरेंस और हवाई टिकट बुकिंग तक हर जगह इस तरह की लूट होती है। एक दूसरा डार्क पैटर्न स्निक इनटू बास्केट है। इसमें कंपनियां आपके ऑनलाइन शॉपिंग कार्ड में चुपचाप कोई उत्पाद जोड़ देती हैं।
जब आप कार्ट की चीजें खरीदते हैं तो वह गैरजरूरी चीज भी आपके यहां आ जाती है। एजेंसियों ने ई कॉमर्स की साइट्स पर कई तरह के डार्क पैटर्न की पहचान की है, जिनमें फॉल्स अर्जेंसी, बास्केट स्नीकिंग, कन्फर्म शेमिंग, फोर्स्ड एक्शन, सब्सक्रिप्शन ट्रैप, इंटरफेस इंटरफियरेंस, बेट एंड स्विच, ड्रिप प्राइसिंग, डिस्गाइज्ड ऐड्स, नेगिंग, ट्रिक वर्डिंग आदि महत्वपूर्ण हैं। इनको रोकने का प्रयास किया जा रहा है लेकिन एक रिपोर्ट के मुताबिक 26 में से सिर्फ पांच ही ऐप हैं, जो डार्क पैटर्न से पूरी तरह से मुक्त हैं।
चाहे आप ई कॉमर्स की साइट्स से खरीदारी करें या रेलवे और हवाई जहाज की टिकट बुकिंग करें या टैक्सी बुक करें कई और तरह से लूट होती है। कई बार इसको सर्ज प्राइस बता कर जस्टिफाई किया जाता है। जैसे टिकट बुंकिंग की ऐप्स ने ऐसे अल्गोरिदम सेट किया है कि अगर आपने एक से ज्यादा बार किसी डेस्टिनेशन या किसी खास एयरलाइन की टिकट सर्च कर दी तो दूसरी बार से आपको टिकटों की ज्यादा कीमत दिखने लगेगी। अगर ऐप या साइट को आपकी अरजेंसी पता चल गई तो वह आपसे ज्यादा पैसे चार्ज करेगा। यह बात ओला या उबर जैसी कैब बुकिंग में भी है। कई रिपोर्ट्स आई हैं, जिनसे पता चलता है कि कैब एग्रीगेटर की साइट पर या उसके ऐप पर अलग अलग लोगों को अलग अलग कीमत बताई जाती है।
हालांकि कंपनियां इससे इनकार करती हैं लेकिन यह सही है कि अगर आप आईफोन से कैब बुक करते हैं तो हो सकता है कि आपको किराया ज्यादा दिखाया जाए। ऐसी रिपोर्ट भी आई कि ट्रैफिक के पीक आवर पर ऐप पर ज्यादा किराया दिखाया जाएगा। इन रिपोर्ट्स में यहां तक बताया गया है कि अगर फोन यूजर कोई महिला है और वह रात में कैब बुक करना चाहती है तो उसे ज्यादा प्राइस दिखाया जाएगा।
इन ऐप्स का अल्गोरिदम यूजर के लोकेशन, उसके मोबाइल हैंडसेट के ब्रांड, उसके खर्च करने के इतिहास आदि को ध्यान में रख कर उसको उत्पादों या सेवाओं की कीमत बताते हैं। रेलवे और हवाई जहाज की बुकिंग से लेकर मूवी की टिकट बुकिंग, इंश्योरेंस की किस्त भरने से लेकर घर बैठे सामान मंगाने तक का काम ऐप के जरिए किया जा रहा है। इन सबका प्रचार ग्राहक की सुविधा के रूप में किया जाता है लेकिन इन सबके जरिए व्यवस्थित ठगी का नेटवर्क काम करता है। उसके बाद भी सारे ई क़मर्स और क्विक कॉमर्स वाले घाटे में चलने का दावा करते हैं।


