ठगों का जब खातों का नेटवर्क बन जाता है तो वे फिर आसामी खोजते हैं। उससे डिजिटल अरेस्ट जैसे बहानों से बैंक खाते से पैसे ऐंठते हैं। डिजिटल अरेस्ट के लिए जो तरीके अपनाए जाते हैं उनमें सबसे प्रचलित यह है कि उस व्यक्ति के यहां फोन करके उसको यकीन दिलाया जाता है कि सामने से किसी लॉ इन्फोर्समेंट एजेंसी यानी पुलिस, ईडी, सीबीआई, इनकम टैक्स विभाग का कोई व्यक्ति बोल रहा है। वह बताएगा कि आपके खाते में हवाला से पैसे आए हैं या किसी ड्रग स्मगलर के फोन में आपका नंबर मिला है या आपके पार्सल में ड्रग्स मिले हैं या आपके नाम का पासपोर्ट मिला है, जिस पर कोई आतंकवादी ट्रैवल कर रहा था या इस तरह की कई बातें हो सकती हैं। कई लोगों को खाता बंद होने की धमकी आती है तो कई लोगों को केवाईसी के लिए कहा जाता है, कई लोगों को मोबाइल बंद होने या बिजली कट जाने की बात कही जाती है तो कई लोगों को बड़े मुनाफे का लालच दिया जाता है।
बहुत सारे लोग इसमें नहीं फंसते हैं। लेकिन ठगों का मकसद बहुत लोगों को फंसाना नहीं होता है। कोई भी पैसे वाला व्यक्ति इसमें फंसेगा तो उससे वे जीवन भर की पूंजी ठग लेते हैं। इसके बाद वे ठगी के पैसे को अलग अलग खातों में भेजना शुरू करते हैं। इसे लेयरिंग कहा जाता है। वे कई लेयर बना कर रखते हैं। एक खाते से दूसरे में और दूसरे से तीसरे खाते में पैसे भेज कर ये अपने म्यूल से पैसे निकलवाते हैं या एटीएम को जरिए निकालते हैं या सीधे वहां से क्रिप्टो करेंसी खरीदने के लिए भेज देते हैं।
इस तरह पुलिस या जांच एजेंसियों की पहुंच असली ठग तक नहीं होती है। वे जांच करते करते पहुंचते हैं उन बेचारे गरीब, बेरोजगार या पैसे के लालच में अपना खाता दूसरों को इस्तेमाल के लिए देने वालों के पास। वे अनजाने में एक अपराध में शामिल हुए होते हैं और इसके लिए उनकी गिरफ्तारी होती है और वे जेल भी जाते हैं। यह धंधा इतना फल फूल रहा है कि भारत में शायद ही कोई व्यक्ति होगा, जिसके मोबाइल नंबर पर या ईमेल में इस किस्म के काम का मैसेज नहीं आया होगा। 2014 में मोदी सरकार ने जन धन खाते खुलवाए थे। 10 साल बाद बताया गया है कि 57 करोड़ से ज्यादा खाते खुले, जिसमें से 15 करोड़ से ज्यादा खाते निष्क्रिय हैं। ऐसे निष्क्रिय खातों का इस्तेमाल भी हवाला के पैसे को सफेद बनाने या ठगी के पैसे को जमा करने या निकालने के काम आता है। इसमें ठगों के साथ बैंककर्मियों की मिलीभगत भी होती है।


