nayaindia Lok Sabha election अर्जुन मुंडा, गीता कोडा सब अकेले अपने बूते!

अर्जुन मुंडा, गीता कोडा सब अकेले अपने बूते!

खूंटी (झारखण्ड)। खूंटी भाजपा का दुर्ग है, जहां सन् 1984 के बाद से (सिवाय 2004, के जब कांग्रेस पर किस्मतमेहरबान हुई थी) वहहर बार चुनाव जीती है। यों किस्मत 2019 में भी कांग्रेस का तब साथ दे रहा थी, जब मतगणना के शुरुआती दौर में कालीचरण मुंडा, भाजपा केअर्जुन मुंडा से 20,000 वोटों से आगे थे। लेकिन अंततः मोदी लहर से अर्जुन मुंडा जीते। उस जीत का अंतर 1,445 वोटो का था।

रांची से श्रुति व्यास

पांच साल बाद अर्जुन मुंडा वापिस पुराने प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस के कालीचरण मुंडा के खिलाफ कांटे की लड़ाई में उलझे हैं। इलाके में मोदीलहरसे अधिक जातिय, और भावनात्मक मुद्दों का असर है। दोनों मुंडा अपनी-अपनी पार्टी की तरफ से आदिवासियों मेंजाने पहचाने चेहरे हैं। और आदिवासी बहुल यह सीटआदिवासी मूड की उन सभी बातों को लिए हुए है जिनसे प्रदेश की बाकि आदिवासी सीटों सिंहभूम (चाईबासा), लोहरदगा, राजमहल और दुमका में भी कांटे की लड़ाई का सस्पेंस है।

कई बार मुख्यमंत्री रहने और मोदी सरकार के जनजातीय मंत्री होने के कारण प्रदेश के आदिवासियों मेंअर्जुन मुंडा की शख्शियत बड़ी है। बावजूद इसके कस्बे और सीट के विधानसभा क्षेत्रों में मोदी लहर के कमजोर होने से कांटे का मुकाबला है। पूरा चुनाव वे अकेले अपने बूते लड़ते दिख रहे है। शनिवार को प्रचार के आखिरी दिन उनकी सभा तमाड में थी। स्टार प्रचारक थे असम के मुख्यमंत्री हिमंतविश्वा शर्मा। लेकिन अचानक तूफान और मूसलाधार बारिश के कारण रैली गडबडा गई। मेरे रैली स्थल से रवाना होने तक असम के मुख्यमंत्री वहां पहुंच नहीं सके थे। हालांकि अर्जुन मुंडा और उनके साथ आजसू के सुदेश महतो पहुंच गए थे। बारिश से तरबतर और पानी रिसते तंबू से बाहर खड़े भीगे लोगों को इकठ्ठा कर उन्होने भाषण दिया। उनका चेहरा, उनकी भाव-भंगिमा उनकी कड़ी मेहनत को दर्शाते हुए थी।

तमाड के एक दुकानदार ने बताया,हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी से आदिवासियों में मूड बदला हुआ है। फिर  पांच सालों में मुंडाजी ने खूंटी के लोगों से वैसा जीवंत संपर्क नहीं रखा जैसी केंद्र में मंत्री बनने के बाद लोगों को उम्मीद थी। वे ‘दिल्ली वाले’ हो गए। इसलिए असंतोष और नाराजगी है। और यह नाराजगी इसलिए विकट है क्योंकि सतह के नीचे, अंडरकरंट में आम आदिवासी, ईसाई आदिवासी, सरणा आदिवासी में सामूहिक तौर पर मन ही मन यह तय किया है कि नरेंद्र मोदी को हराना है! ऐसे में जाहिर है अर्जुन मुंडा का रास्ता तभी बनेगा जब ईसाई आदिवासियों के अलग-अलग समूहों मसलन आरसी (रोमन कैथेलिक) सीएनआई, जीएल चर्च के वोट ईसाई निर्दलीय उम्मीदवारों में बंटे।

इसका भरोसा जनसंघ से समय से आदिवासियों में काम करने वाले एक कट्टर मोदी भक्त ने जताया। उसे भरोसा है कि जैसे पिछली बार मुंडा जीते वैसे इस बार भी जीत जाएंगे। लेकिन अर्जुन मुंडा की निजी मेहनत की बदौलत। भाजपा और संघ के लोग 2019 की तरह काम करते हुए नहीं है। जबकि चर्च बुरी तरह अपने वोटों को गोलबंद करते हुए है।

शायद इसी कारण प्रचार समाप्त होने के एक दिन पहले 10 मई की शाम को खूंटी में कांग्रेस उम्मीदवार कालीचरण मुंडा बेफिक्र से दिखे। सादे सफेद कपड़े पहने, बिना तामझाम के वे अपने कार्यकर्ताओें के साथ तनावमुक्त और शांत नजर आ रहे थे। उनकी चाल-ढाल नेताओं जैसी नहीं थी मगर फिर भी वे नेता लग रहे थे। और इसी व्यवहार और चाल-ढाल से ही उनका दफ्तर कुछ ज्यादा गहमागहमी लिए हुए था।

खूंटी में मुद्दा विकास का भी है। यह इलाका कभी नक्सल प्रभावित था। कोई बड़ा उ़द्योग नहीं है। न ही बड़ा कॉलेज और बड़ा अस्पताल है।बतौर केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा नेसन् 2023 में जिले में कोई84 करोड़ रू के विकास काम शुरू करवाएं। साथ ही खूंटी के मुरहू और टोरपा ब्लाक में दो एकलव्य आदर्श विद्यालय जरूर खुलवाएँ है।

झारखंड में भाजपा अपने पिछले मुख्यमंत्री रघुवरदास की आदिवासियों के प्रति रीति-नीति और हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी के दोहरे जन आक्रोश की मारी हुई है। सन् 2020 में सोरेन सरकार ने विधानसभा से सरणा कोड बिल पारित करवायाथा। केन्द्र सरकार से मांग की कि आगामी जनगणना में आदिवासी समुदाय के धर्म का एक अलग कालम जोड़ा जाए। उन्होंने केन्द्र सरकार से यह भी कहा कि इस अधिनियम को 10वीं अनुसूची में जोड़ा जाए ताकि अदालतें इसे रद्द नहीं कर सकें।

भाजपा के लिए यह दुधारी तलवार है। वह सरना धार्मिक कोड के संबंध में सोरेन के नजरिए का इसलिए समर्थन नहीं कर सकती क्योंकि तब आदिवासियों को हिंदू माने जाने का आधार गडबडाएगा। पर हिंदू आदिवासियों में सरनापहचान को नजरअंदाज भी नहीं किया जा सकता। आरक्षित पांच लोकसभा सीटों में से तीन पर इनका बाहुल्य है। चुनाव में यह मुद्दा महत्वपूर्ण हो गया है और इससे अर्जुन मुंडा की सीट सहित पूरे प्रदेश के आदिवासी वोटों में खदबदाहट है।

तभी अर्जुन मुंडा के लिए मुकाबला कांटे का है तो भाजपा में हाल ही में शामिल हुई गीता कोड़ा की चाईबासा (सिंहभूम) सीट भी फंसी हुई बताई जा रही है। भाजपा कार्यकर्ताओं को ले दे कर जनता पर मोदी के जादू से उम्मीद है। भाजपा के एक पुराने समर्थक के अनुसार “मोदी के नाम पर ही मुंडा साहब जीत पाएंगे,”

संदेह नहीं कि जनता के कुछ वर्गों पर मोदी का असर कायम है। जहां कांग्रेस व जेएमएम के उम्मीदवार मुस्लिम-ईसाई-आदिवासियों की गोलबंदी और हेमंत सोरेन के प्रति सहानुभूति से अपने आप अनुकूल माहौल बना हुआ बूझ रहे है वही अर्जुन मुंडा, गीता कोड़ाको अपनी निजी पकड़, मेहनत और मोदी की लोकप्रियता का सहारा है।भाजपा और संघ के लोग दिखावे के लिए एक्टीव है। असल में सबकुछ उम्मीदवार के अपने बूते है।  (कॉपी: अमरीश हरदेनिया)

By श्रुति व्यास

संवाददाता/स्तंभकार/ संपादक नया इंडिया में संवाददता और स्तंभकार। प्रबंध संपादक- www.nayaindia.com राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय राजनीति के समसामयिक विषयों पर रिपोर्टिंग और कॉलम लेखन। स्कॉटलेंड की सेंट एंड्रियूज विश्वविधालय में इंटरनेशनल रिलेशन व मेनेजमेंट के अध्ययन के साथ बीबीसी, दिल्ली आदि में वर्क अनुभव ले पत्रकारिता और भारत की राजनीति की राजनीति में दिलचस्पी से समसामयिक विषयों पर लिखना शुरू किया। लोकसभा तथा विधानसभा चुनावों की ग्राउंड रिपोर्टिंग, यूट्यूब तथा सोशल मीडिया के साथ अंग्रेजी वेबसाइट दिप्रिंट, रिडिफ आदि में लेखन योगदान। लिखने का पसंदीदा विषय लोकसभा-विधानसभा चुनावों को कवर करते हुए लोगों के मूड़, उनमें चरचे-चरखे और जमीनी हकीकत को समझना-बूझना।

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