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श्रुति व्यास

52 दरवाजों से जलील की सवारी या खैरे या भुमरे की?

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संभाजीनगर (महाराष्ट्र)। औरंगाबाद दरवाजों का शहर है। लेकिन अब यह औरंगाबाद नहीं, छत्रपति संभाजीनगर के नाम से जाना जाता है। यदि शहर को उसके नए नाम संभाजीनगर (छत्रपति संभाजीनगर का संक्षिप्त संस्करण) से नहीं पुकारा जाता, तो स्थानीय लोग नाराज हो जाते हैं। एक ने तो स्पष्ट शब्दों में मुझसे कहा, “मैडम, संभाजीनगर बोलिए”।

औरंगाबाद से श्रुति व्यास

बावन दरवाजे वाले संभाजीनगर में इस बार 37 उम्मीदवार अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। लेकिन वास्तविक लड़ाई तीन धड़ों और दो उम्मीदवारों के बीच है। दो सेनाएं एक दूसरे के मुकाबिल हैं – शिवसेना (ठाकरे) के उम्मीदवार हैं चन्द्र कांत खैरे (जो मंझे हुए नेता और चार बार के सांसद हैं), वहीं शिवसेना (एकनाथ शिंदे) के उम्मीदवार हैं संदीपन भुमरे। इन्हें टक्कर दे रहे हैं एआईएमआईएम (ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन) के इम्तियाज जलील, जो पिछले चुनावों में मोदी की सुनामी के महाराष्ट्र से जीत हासिल करने वाले दो उम्मीदवारों में से एक थे (दूसरी थी अमरावती से जीतीं नवनीत राणा)।

जलील शहरी बुजुर्ग और युवा दोनों वर्गों में खासे लोकप्रिय हैं।

संतोष और विशाल दोस्त हैं और पढ़ाई करने के साथ-साथ एक प्रिंटिंग प्रेस में पार्टटाईम काम भी करते हैं। वे बुना सकुचाये जवाब देते हैं कि उनकी पहली पसंद जलील हैं। “भला क्यों?” मैं अत्यंत उत्सुकता से पूछती हूं, खासकर इसलिए क्योंकि देश भर के शहरी इलाकों में ज्यादातर युवाओं का झुकाव नरेन्द्र मोदी की ओर है।

संतोष का कहना हैवह संसद में सक्रिय रहे हैं, लोगों के काम करते है।वही विशाल का कहना था, “वे मोदी की तरह धर्म की राजनीति नहीं करते”।

लोगों की माने तो जलील ने आदर्श शहरी क्रेडिट सहकारी बैंक के घोटाले को उजादर किया। बैंक के जमाकर्ताओं का पैसा डूबने से बचाने के लिए जम कर संघर्ष किया। उन्होंने इस मामले को लेकर कानूनी लड़ाई भी लड़ी और यह मुद्दा संसद के 2023 के शीतकालीन सत्र में भी उठाया। इसी का नतीजा था कि पुलिस ने आदर्श कोआपरेटिव के संस्थापक के खिलाफ 48 करोड़ रूपए के घोटाले की एफआईआर दर्ज की।

पर विशाल भी क्यों जलील को पसंद करते हैं? वजह साफ़ है। पिछले साल रामनवमी के दौरान मुस्लिम-बहुल किरडपुरा इलाके में स्थित राम मंदिर के पास साम्प्रदायिक हिंसा भड़क गई। जलील न केवल 15 मिनट के अंदर मौके पर पहुंचे बल्कि उन्होंने पूरी रात मंदिर में बिताई और करीब 500 लोगों की उत्तेजित भीड़, जिसमें ज्यादातर लोग उनके समुदाय के थे, को शांत करने का प्रयास किया। उन्हें भीड़ के गुस्से का सामना भी करना पड़ा जो तथाकथित भड़काऊ बातों का “माकूल जवाब” देना चाहती थी। जलील राजनीति में आने के पहले पत्रकार थे और शहरी युवाओं और बुजुर्गों में खासे लोकप्रिय हैं।

संभाजीनगर को साम्प्रदायिक हिंसा की दृष्टि से संवेदनशील माना जाता है। यहां चुनावों में मुस्लिम मतदाताओं की भूमिका सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। इसे बालासाहेब ठाकरे का दूसरा घर भी कहा जाता है और मुंबई व ठाणे के बाद संभाजीनगर शिवसेना का तीसरा प्रमुख गढ़ है। बालसाहेब के नेतृत्व में ही शहर का नाम हिंदू और मराठा गौरव का हवाला देकर औरंगाबाद से बदलकर संभाजीनगर करने के अभियान की शुरूआत हुई थी। सन् 1988 में शिवसेना ने औरंगाबाद नगर निगम के चुनाव में विजय हासिल की। हालांकि वर्तमान में औरंगाबाद के शिवसेना के 6 में से 5 विधायक उद्धव ठाकरे का साथ छोड़कर एकनाथ शिंदे गुट में शामिल हो चुके हैं, लेकिन इसके बावजूद उद्धव ठाकरे की स्थिति़ मजबूत है। यही वजह है कि खैरे कड़ी टक्कर दे रहे हैं। खैरे को जमीनी नेता माना जाता है, जिनकी ग्रामीण इलाकों पर अच्छी पकड़ है। शहर से 35 किलोमीटर दूर स्थित जलगांव ग्राम में रमेश जाधव से जब मैंने पूछा, “कौन आगे हैं?”। तो जवाब मिला‘ खैरे क्योंकि उन्होंने राम मंदिर बनवाने में योगदान दिया”।

“अयोध्या में राम मंदिर?” मैं हैरानी से पूछती हूं।

‘‘नहीं हमारे गांव का राम मंदिर,” वे स्पष्ट करते हैं।

खैरे गांवों में मंदिरों के निर्माण के लिए चंदा इकठ्ठा करने और स्वयं अपना पैसा खर्च करने के लिए जाने जाते हैं। रमेश की तरह बहुत से लोग खैरे के मंदिरों के निर्माण के लिए दिए गए योगदान को लेकर उनसे खुश हैं।

हालांकि शुभम बोराडो की राय अलग है। उनका कहना था, इतनी बार सांसद बनने के बावजूद खैरे ने कोई काम नहीं करवाया। शहर का कोई खास विकास नहीं हुआ। शुभम 35 साल के हैं और एक विवाह में शामिल होने के लिए अपने घर आए हुए हैं। वे पुणे में नौकरी करते हैं। वे संभाजीनगर के भीषण जलसंकट और वहां बार-बार होने वाली बिजली कटौती से दुखी हैं। वलुज औद्योगिक क्षेत्र में भी बिजली कटौती की समस्या है, जिसके कारण शहर के निवासियों और उद्योगपतियों को बहुत नुकसान झेलना पड़ रहा है। किसी समय उद्योगों का हॉटस्पॉट रहा यह इलाका अब अपनी चमक खो चुका है। यहां जिस आखिरी बड़ी कंपनी ने उत्पादन प्रारंभ किया था वह थी स्कोडा, जिसने शुरूआती दिक्कतों के बाद अपने औरंगाबाद कारखाने से 2022 में दुबारा उत्पादन प्रारंभ किया।

स्थानीय पत्रकारों का मानना है कि शहर के पिछड़ने की दो वजहें हैं – राजनीति और पुणे का बढ़ता दबदबा। हालांकि यहाँ बीयर उद्योग फलफूल रहा है। संभाजीनगर को भारत की बीयर केपिटल भी कहते है। एक समय यहां अपर्याप्त जलापूर्ति के कारण बीयर बनाने वाले संयंत्रों के बंद होने का खतरा पैदा हो गया था लेकिन अब स्थिति यह है कि शहर में तो पानी का संकट है लेकिन बीयर के उत्पादन में कोई कमी नहीं है- ‘बीयर पीओ, पानी बचाओ”।

संदीपन भुमरे इस इलाके के शराब कारोबार के शहंशाह माने जाते हैं क्योंकि उनके परिवार के सदस्य नोट छापने वाले शराब के व्यवसाय से जुड़े हुए हैं। हालांकि जनता में उनके नाम की चर्चा ज्यादा नहीं है, लेकिन यह माना जाता है कि उनकी स्थिति मजबूत है। यह इस तथ्य के बावजूद है कि उन्हें शिवसेना काडर एवं कार्यकर्ताओं का जरा सा भी समर्थन हासिल नहीं है। वजह यह कि इनमें से ज्यादातर उद्धव ठाकरे के साथ हैं। लेकिन शायद चुनाव चिन्ह और पार्टी के नाम को लेकर व्याप्त भ्रम का फायदा उन्हें मिले। फिर शराब व्यवसायी बतौर उनके संपर्क-सम्बन्ध तो हैं ही।

लेकिन जनता समझदार है। महाराष्ट्र की जनता तो निश्चित ही। चेतन गायकवाड़ एमआईडीसी की एक कंपनी में टैक्सी चलाता हैं। उसका कहना था, पेट्रोल और गैस की बढ़ती कीमतों का खामियाजा भाजपा और एकनाथ शिंदे की शिवसेना को भुगतना पड़ेगा।

चुनावी नतीजे पर दो अन्य उम्मीदवारों की मौजूदगी का भी असर पड़ेगा। पहले हैं वंचित बहुजन अघाड़ी के उम्मीदवार अफसर खान। सन् 2019 के चुनाव में वंचित और एआईएमआईआम का गठजोड़ था, लेकिन इस बार वंचित ने अंतिम क्षणों में अपना समर्थन वापिस ले लिया।

दूसरे उम्मीदवार हैं हर्षवर्धन जाधव। जाधव एक बार फिर निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में मैदान में हैं। सन् 2019 में उन्हें 2.8 लाख वोट हासिल हुए थे और उन्होंने तब के शिवसेना-भाजपा गठबंधन को नुकसान पहुंचाया था जिसके चलते जलील को 4,000 से कुछ ज्यादा वोटों के मामूली अंतर से जीत हासिल हुई थी।

इस बार भी हार-जीत का फैसला मामूली अंतर से ही होगा। यह देखना दिलचस्प होगा कि जनता एक पढ़े-लिखे “धर्म की राजनीति नहीं करने वाले” जननेता इम्तियाज जलील को चुनती है या राम मंदिर बनवाने वाले, मंझे हुए नेता और उद्धव ठाकरे की लहर पर सवार खैरे को या फिर शराब व्यवसायी भुमरे को, जो “धर्म पर राजनीति” करने वाली पार्टी के उम्मीदवार हैं।

52 दरवाजों, 37 उम्मीदवारों, 3 बाहुबलियों और खेल बिगाड़ने वाले दो उम्मीदवारों के साथ छत्रपति संभाजीनगर एक अत्यंत दिलचस्प और कांटे की लड़ाई का साक्षी बन रहा है।

और हां, ध्यान रहे संभाजीनगर एक ऐतिहासिक नगर है। इसे “महाराष्ट्र की पर्यटन राजधानी” कहा जाता है। यहां भव्य एवं पुरातन अजंता एवं एलोरा गुफाएं हैं – जो मनुष्य जाति की प्रतिभा और भारत के कौशल का प्रतीक हैं। इसके अलावा यहां अपेक्षाकृत बाद में बना दौलताबाद का किला और बीबी का मकबरा भी है, जिसे ‘मिनी ताजमहल’ के नाम से भी जाना जाता है। लेकिन इस शहर का मुख्य आकर्षण है यहां के 52 दरवाजे। (कॉपी: अमरीश हरदेनिया)

By श्रुति व्यास

संवाददाता/स्तंभकार/ संपादक नया इंडिया में संवाददता और स्तंभकार। प्रबंध संपादक- www.nayaindia.com राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय राजनीति के समसामयिक विषयों पर रिपोर्टिंग और कॉलम लेखन। स्कॉटलेंड की सेंट एंड्रियूज विश्वविधालय में इंटरनेशनल रिलेशन व मेनेजमेंट के अध्ययन के साथ बीबीसी, दिल्ली आदि में वर्क अनुभव ले पत्रकारिता और भारत की राजनीति की राजनीति में दिलचस्पी से समसामयिक विषयों पर लिखना शुरू किया। लोकसभा तथा विधानसभा चुनावों की ग्राउंड रिपोर्टिंग, यूट्यूब तथा सोशल मीडिया के साथ अंग्रेजी वेबसाइट दिप्रिंट, रिडिफ आदि में लेखन योगदान। लिखने का पसंदीदा विषय लोकसभा-विधानसभा चुनावों को कवर करते हुए लोगों के मूड़, उनमें चरचे-चरखे और जमीनी हकीकत को समझना-बूझना।

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