राज्य-शहर ई पेपर व्यूज़- विचार

ट्रंप को हराना क्यों मुश्किल?

US presidential election

डोनान्ड ट्रंप ने फिर साबित किया है कि वे अजेय हैं। 24 फरवरी को ट्रंप ने प्रतिस्पर्धी निकी हैली के गृहराज्य साऊथ केरोलाइना में जीत हासिल की। साऊथ केरोलाइना की पूर्व गर्वनर होने के बावजूद हैली प्रायमरी में हार गईं। यह आयोवा, न्यू हैम्पशायर और नवादा के बाद ट्रंप की प्राइमरीज में चौथी जीत है। इन जीतों से साफ़ है कि रिपब्लिकन मतदाताओें पर ट्रंप की पकड़ काफी मज़बूत है। US presidential election

जबकि ट्रंप पर आपराधिक आरोपों में मुकदमे चल रहे हैं। उन्हें जुर्माने बतौर और ज़मानत के लिए दसियों लाख डालर भुगतान करने पड़े हैं।बावजूद इसके वे लगातार रिपब्लिकन पार्टी के पसंदीदा नेता बने हुए हैं। आखिर क्या कारण है कि राष्ट्रपति के रूप में नाकामियों, लोकतंत्र के लिए खतरा होने की हकीकत के बावजूद ट्रंप, रिपब्लिकन पार्टी की चहेते हैं?

यह एक मुनासिब सवाल है। और जवाब उनकी पार्टी में छिपा है।

दरअसल रिपब्लिकन पार्टी ‘व्यक्तित्ववादी’ पार्टी बन गई है यानी कि पार्टी को कुछ लोग चला रहे हैं।वैसे यह स्थिति भारत सहित दुनिया में कई पार्टियों की है। जब पार्टी पर एक व्यक्ति का कब्जा हो जाता है तब विचारधारा और उसकी अभिव्यक्ति की भाषा – दोनों गौण हो जाते हैं। सन् 2015 में रिपब्लिकन पार्टी बहुत कमजोर स्थिति में थी। US presidential election

कई सालों से पार्टी में अंदरूनी झगड़े चल रहे थे, उसकी विचारधारा में स्पष्टता नहीं थी और नेताओं और समर्थकों के बीच की खाई चौड़ी होती हुई थी। ग्रेंड ओल्ड पार्टी (जीओपी) में नेतृत्व का अभाव था। पार्टी का चुनाव जीतने का फार्मूला नाकाम साबित हो चुका था। पुराने, मज़बूत नेताओं को प्राइमरीज में टी पार्टी (सन 2009 में टैक्स के अत्यधिक भार के खिलाफ अमरीका में शुरू हुआ आन्दोलन) के नौसीखियों के हाथों हार का सामना करना पड़ रहा था।

ऐसे में ट्रंप अचानक पार्टी पर नमूदार हुए। रिपब्लिकनों को उनमें एक ऐसा दमदार व्यक्ति मिला जो दुबारा पार्टी का बोलबाला कायम कर सकता था। इसके पहले ट्रंप का न तो राजनीति से कोई लेनादेना था और ना ही रिपब्लिकन पार्टी से।उनके किसी भी सत्ताधारी रिपब्लिकन नेता से निकट संबंध नहीं थे। फिर भी ट्रंप 2016 के चुनाव में रिपब्लिकन पार्टी के राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनने में सफल रहे।

उनके विचार और उनका व्यक्तित्व इतना प्रभावशाली बना कि वे पार्टी के परंपरागत ढांचे को किनारे कर उसे अपने व्यक्तिगत राजनैतिक और आर्थिक हितों को आगे बढ़ाने का औजार बनाने में कामयाब हुए।  वे रिपब्लिकनों के बॉस बन गए। वे उन पर  दादागिरी करते थे, उन्हें अपमानित करते थे मगर फिर भी उन्हें कोई चुनौती नहीं देता था। पार्टी के नेता उन्हें झेलते रहे। US presidential election

क्यों?

इसलिए क्योंकि उनकी बेवकूफियां और उनका बेतुकापन मतदाताओं को पसंद आ रहा था। और जब सत्ता दांव पर लगी हो तो किसी की भी खड़े होकर साफ-साफ बात करने की हिम्मत नहीं होती।‘राजा तो नंगा है’ कहना आसान नहीं होता। पार्टी के प्रमुख नेता उनके एजेंडे से हटने की हिम्मत नहीं जुटा  पाते थे। यहां तक कि सन् 2020 में जीओपी में वही होता था जो ट्रंप चाहते थे। और आज भी रिपब्लिकन पार्टी का उम्मीदवार या पदाधिकारी बनने की मुख्य योग्यता है ट्रंप के प्रति वफादारी, ना कि पार्टी के सिद्धांतों के प्रति निष्ठा। ट्रंप के दौर के पहले के रिपब्लिकनों की बातें अब घिसी-पिटी मानी जाती हैं और मतदाताओं की दृष्टि में वे अप्रसांगिक हो गए हैं। US presidential election

इसमें कोई शक नहीं कि ट्रंप का रिपब्लिकन पार्टी में एकछत्र राज है। वे श्रद्धेय हैं और अपनी मनमर्जी पार्टी पर लाद सकते हैं।

राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनने की दौड़ को ही लें। ट्रंप ने इसके लिए हुई एक भी डिबेट में भाग नहीं लिया, बल्कि वे ऐसा व्यवहार करते थे मानों वे राष्ट्रपति हों, न कि मौजूदा राष्ट्रपति को पद से हटाने के लिए प्रयासरत एक उम्मीदवार। ट्रंप का रिपब्लिकन पार्टी में इस हद तक बोलबाला है कि पार्टी के अन्य प्रमुख नेता उनके चापलूस नजर आते हैं जो ट्रंप की कृपादृष्टि चाहते हैं।

यहां तक कि फ्लोरिडा के गर्वनर रोन डेसांटिस ट्रंप के उपहास और दुर्व्यवहार का सामना करने के बाद भी व्हाईट हाउस में उनकी वापसी की कोशिशों का समर्थन कर रहे हैं। उनका समर्थन प्रायमरी की दौड़ में किसी भी रिपब्लिकन की सबसे बड़ी पूंजी है। उन्हें पहले से ही अधिकांश प्रमुख निर्वाचित रिपब्लिकनों का समर्थन हासिल है। वे चुनावी चंदा हासिल करने और मत हासिल करने में भी बहुत आगे हैं।

इस तरह ग्रेंड ओल्ड पार्टी अब ग्रैंड ओल्ड पार्टी नहीं रही। बल्कि वह ट्रंप की सनक और इच्छा के अनुसार चलने वाली पार्टी नजर आती है। ट्रंप के राष्ट्रपति चुनाव हारने के बाद भी रिपब्लिकनों को उनका सामना करने के लिए कोई दमदार चेहरा नहीं मिल पाया। वे मतदाताओं के समक्ष कोई नया नेता प्रस्तुत करने में नाकामयाब रहे। आज के मतदाता – दुनिया के किसी भी इलाके के मतदाताओं की तरह – ऐसा नेता चाहते हैं जो उनके जैसी बातें करे, जो कुलीन न लगे और जो उनकी ओर से उनके शत्रुओं का मुकाबला कर सके। US presidential election

ट्रंप ने ये सारी खूबियां प्रदर्शित की हैं। श्वेत पुरूष और महिलाएं, जो कालेज नहीं गए, रिपब्लिकन पार्टी के मतदाताओं का प्रमुख हिस्सा हैं। वे ट्रंप को लेकर अतिउत्साहित हैं। उन्हें ट्रंप के रूप में ऐसा नेता नजर आता है जो उनके लिए संघर्ष करने को उद्यत है। अन्य कोई भी उम्मीदवार यह सिद्ध नहीं कर सका कि वह ट्रंप से बेहतर साबित हो सकता है। बल्कि वे अपने राजनीति करने के तौर-तरीकों से मतदाताओं से दूर बने रहे।

निकी हैली और माईक पेंस ट्रंप के दौर के पहले के नेताओं के रंग-ढंग में नजर आए। रोन डेसांटिस और विवेक रामास्वामी ने ट्रंप की नकल करने की हर संभव कोशिश की। उन्होंने अपने आप को मेक अमेरिका ग्रेट अगेन एजेंडे के अपेक्षाकृत युवा और बेहतर पैरोकार के रूप में पेश करने की कोशिश की। मगर वे ट्रंप और उनके व्यक्तित्व का  विकल्प प्रस्तुत नहीं कर सके बल्कि उन्होंने अपने संसाधन इस प्रयास में खर्च कर दिए कि उन्हें ट्रंप समर्थकों की नाराजगी न झेलनी पड़े।

डिबेटों, साक्षात्कारों, रैलियों के दौरान वे ट्रंप की ओर से सफाई देते रहे, उन पर लगे आपराधिक आरोपों के बारे में चुप्पी साधे रहे। बल्कि वे ट्रंप को शहीद साबित करनी में जुटे रहे और ट्रंप पर हो रही कानूनी कार्यवाही को बाईडन द्वारा उन्हें सताना बताते रहे। वे उनकी छवि हाल के समय के महानतम राष्ट्रपति की बनाते रहे। यहां तक कि पीईडब्लूई द्वारा किए गए सर्वेक्षण के मुताबिक रीगन और ट्रंप को रिपब्लिकन मतदाता सर्वोत्तम राष्ट्रपति मानते हैं।

इस तरह पार्टी और मतदाताओं दोनों को ट्रंप ही राष्ट्रपति पद के इकलौते दावेदार नजर आते हैं, और इसलिए वे पार्टी में अजेय बने हुए हैं। और यह बहुत डरावना है। न सिर्फ अमेरिका और उसके लोकतंत्र के लिए, बल्कि राजनीति के लिए और उन लोकतांत्रिक देशों के लिए भी जहां व्यक्ति केन्द्रित सरकारें चाल रही हैं। (कॉपी: अमरीश हरदेनिया) US presidential election

यह भी पढें

विपक्ष में तालमेल से भाजपा की बदली रणनीति

लालू के यहा तेजस्वी युग शुरू

मंत्रियों में प्रधान, राणे का चुनाव होगा मुश्किल?

जम्मू कश्मीर में भी हो रहा तालमेल

बिहार, यूपी में भाजपा के ज्यादा यादव वोट

By श्रुति व्यास

संवाददाता/स्तंभकार/ संपादक नया इंडिया में संवाददता और स्तंभकार। प्रबंध संपादक- www.nayaindia.com राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय राजनीति के समसामयिक विषयों पर रिपोर्टिंग और कॉलम लेखन। स्कॉटलेंड की सेंट एंड्रियूज विश्वविधालय में इंटरनेशनल रिलेशन व मेनेजमेंट के अध्ययन के साथ बीबीसी, दिल्ली आदि में वर्क अनुभव ले पत्रकारिता और भारत की राजनीति की राजनीति में दिलचस्पी से समसामयिक विषयों पर लिखना शुरू किया। लोकसभा तथा विधानसभा चुनावों की ग्राउंड रिपोर्टिंग, यूट्यूब तथा सोशल मीडिया के साथ अंग्रेजी वेबसाइट दिप्रिंट, रिडिफ आदि में लेखन योगदान। लिखने का पसंदीदा विषय लोकसभा-विधानसभा चुनावों को कवर करते हुए लोगों के मूड़, उनमें चरचे-चरखे और जमीनी हकीकत को समझना-बूझना।

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

और पढ़ें