Wednesday

30-04-2025 Vol 19

उत्तर प्रदेश उपचुनाव में नारों की लड़ाई

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देश के दो महत्वपूर्ण राज्यों में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं लेकिन इनके बीच उत्तर प्रदेश की नौ विधानसभा सीटों का उपचुनाव भी उतने ही महत्व का हो गया है। इन सीटों के चुनाव नतीजों से बहुत कुछ तय होना है। तभी राज्य की सभी पार्टियों ने पूरा जोर लगाया है। कांग्रेस को छोड़ कर बाकी सभी पार्टियां चुनाव लड़ रही हैं। कांग्रेस को उसकी सहयोगी समाजवादी पार्टी ने दो हारने वाली सीटें ऑफर की थीं, जिसे उसने ठुकरा दिया और चुनाव मैदान से बाहर हो गई। अरसे बाद मायावती की पार्टी बसपा भी इस बार उपचुनाव लड़ रही है। मायावती के उत्तराधिकारी आकाश आनंद ने चुनाव की कमान संभाली है। भाजपा के लिए यह प्रतिष्ठा की लड़ाई है क्योंकि लोकसभा चुनाव में बहुत खराब प्रदर्शन करने के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को अपने को साबित करना है। समाजवादी पार्टी को यह दिखाना है कि लोकसभा चुनाव की उसकी जीत कोई संयोग नहीं थी।

सो, उत्तर प्रदेश का उपचुनाव मिनी विधानसभा चुनाव की तरह लड़ा जा रहा है। भाजपा के साथ साथ समाजवादी पार्टी और बसपा तीनों के नेता मेहनत कर रहे हैं और तीनों ने अपने अपने वोट आधार के हिसाब से नारे गढ़े हैं। एक तरह से यह नारों की लड़ाई बन गया है। उपचुनाव में वैसे भी कई बड़े मुद्दे नहीं होते हैं। सबको पता है कि इनके नतीजों से राज्य की सरकार की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ना है। तभी स्थानीय मुद्दों और बड़े नारों के आधार पर उत्तर प्रदेश का चुनाव लड़ा जा रहा है। सबसे पहले मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का ही नारा आता है, जो उन्होंने पिछले महीने हुए दो राज्यों के चुनावों में कई बार दोहराया। उनका नारा है, ‘बंटेंगे तो कटेंगे’। भाजपा इसी नारे पर हिंदू समाज को एकजुट करके चुनाव लड़ रही है। राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ ने भी मथुरा की अपनी एक अखिल भारतीय बैठक के बाद योगी के इस नारे को अपना समर्थन देने का ऐलान किया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इस लाइन पर पांच अक्टूबर को महाऱाष्ट्र में कहा था कि ‘बंटेंगे तो बांटने वाले महफिल सजाएंगे’ और बाद में दिवाली के एक कार्यक्रम में कहा कि ‘एक रहेंगे तो सेफ रहेंगे’।

बहरहाल, भाजपा के ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ नारे के मुकाबले समाजवादी पार्टी ने ‘जुड़ेंगे तो जीतेंगे’ का नारा दिया है। वैसे देखने में दोनों नारों का एक ही मतलब है कि बंटना नहीं हैं। जुड़े रहेंगे तो बचेंगे या जीतेंगे या आगे बढ़ेंगे। लेकिन दोनों अलग अलग नजरिए से यह नारा लगा रहे हैं। भाजपा को जहां हिंदू मतदाताओं को बंटने नहीं देना है वहीं सपा को हिंदू और मुस्लिम को जोड़ना है। इससे दोनों के नारे का अर्थ बदल जाता है। इस बीच बहुजन समाज पार्टी ने भी नारा दिया। उसका नारा है, ‘बीएसपी से जुड़ेंगे तो आगे बढ़ेंगे और सुरक्षित रहेंगे’। जाहिर है बसपा ने सबको जोड़ने और 2007 की तरह का समीकरण बनाने का प्रयास किया है, जिसमें दलित और ब्राह्मण के साथ मुस्लिम भी जुड़े थे। वे सबसे पहले अपने दलित वोट को एक करना चाहती हैं, जो इस बार लोकसभा चुनाव में बिखरा है। तीनों पार्टियां अपने वोट आधार को ध्यान में रख कर चुनाव लड़ रही हैं

NI Political Desk

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