भाजपा और नीतीश कुमार में लगभग सहमति बन गई है और नीतीश कुमार नए सिरे से मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने वाले हैं। लेकिन इस बार मुख्यमंत्री बनने के बाद विधानसभा में बहुमत साबित करने को लेकर कई तरह की चर्चाएं शुरू हो गई हैं। बताया जा रहा है कि इस बार विधानसभा में टकराव हो सकता है। इसका कारण यह है कि विधानसभा स्पीकर अवध बिहारी चौधरी राष्ट्रीय जनता दल के नेता हैं। ध्यान रहे 2015 में जब नीतीश और लालू की पार्टी की साझा सरकार बनी थी तब नीतीश की शर्त थी कि वे लालू प्रसाद के एक बेटे को उप मुख्यमंत्री और दूसरे बेटे को मंत्री तभी बनाएंगे, जब स्पीकर जनता दल यू का होगा। 10 साल से सत्ता के लिए भटक रहे लालू इस बात पर राजी हो गए थे। लेकिन 2022 में जब नीतीश फिर उनके साथ आए तो इस बार लालू ने अपना स्पीकर बनवाया। तभी कहा जा रहा है कि नीतीश की पार्टी जनता दल यू के कुछ विधायक विश्वास मत पर खिलाफ वोटिंग कर सकते हैं। ऐसा होता है तो स्पीकर उनको अलग गुट की मान्यता दे देंगे और उसके बाद अयोग्यता का मामला लंबे समय तक चलता रहेगा।
गौरतलब है कि बिहार में जदयू और भाजपा की सरकार बनती है तो उनके पास साधारण बहुमत होगा। बिहार की 243 सदस्यों की विधानसभा में भाजपा के 78, जदयू के 45 और हिंदुस्तान आवाम मोर्चा के चार विधायक हैं। सरकार को एक निर्दलीय विधायक का समर्थन होगा इस तरह कुल संख्या 128 की बनती है, जो बहुमत से छह ज्यादा है। दूसरी ओर राजद 79 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी है और उसके साथ कांग्रेस के 19 और वामपंथी पार्टियों के 16 विधायक हैं। असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी के एक विधायक का समर्थन जोड़ें तो उनकी संख्या 115 होती है। सो, अगर नीतीश की पार्टी के सात-आठ विधायक विश्वास मत के खिलाफ वोट देते हैं तो सरकार गिर सकती है। इस बीच यह भी खबर है कि लालू प्रसाद ने हिंदुस्तान आवाम मोर्चा के नेता जीतन राम मांझी के बेटे संतोष सुमन को उप मुख्यमंत्री बनाने का प्रस्ताव देकर उनको तोड़ने का दांव चला है। हालांकि जदयू के नेता पूरे भरोसे में हैं कि कोई भी विधायक नहीं टूटेगा। लेकिन साथ ही कांग्रेस के विधायकों को तोड़ने की कसरत शुरू हो गई है। कांग्रेस के कई विधायक काफी समय से भाजपा के संपर्क में बताए जा रहे हैं।