बिहार की चार लोकसभा सीटों पर पहले चरण में मतदान हो रहा है। इन चार में से तीन सीटों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सभा हुई है। वे पहले जमुई में प्रचार के लिए गए। फिर नवादा में चुनावी सभा की और तीसरे दौरे में गया गए। एक औरंगाबाद सीट पर वे प्रचार के लिए नहीं गए लेकिन वहां उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सभा हुई। चार में से दो सीटों, औरंगाबादा और नवादा में भाजपा के उम्मीदवार हैं, जबकि जमुई में चिराग पासवान की पार्टी से उनके बहनोई अरुण भारती हैं तो गया में पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी अपनी पार्टी से खुद उम्मीदवार हैं। यानी प्रधानमंत्री मोदी की तीन में से दो सभाएं सहयोगी पार्टियों के उम्मीदवारों के लिए हुई थी। गया में तो उन्होंने यहां तक कहा कि मांझी नहीं मोदी लड़ रहा है।
प्रधानमंत्री मोदी के पहले दो दौरे में जमुई और नवादा में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी शामिल हुए। लेकिन वे जब तीसरे दौरे पर बिहार पहुंचे तो गया और पूर्णिया में नीतीश नदारद थे, जबकि पूर्णिया सीट पर उनकी पार्टी के सांसद संतोष कुशवाहा चुनाव लड़ रहे हैं। बताया जा रहा है कि नीतीश कुमार को जान बूझकर प्रधानमंत्री की सभा से दूर रखा गया क्योंकि प्रधानमंत्री मोदी उनके व्यवहार से असहज महसूस कर रहे थे और उनके व्यवहार व भाषण से निगेटिव खबरें ज्यादा बन रही थीं। एक सभा में नीतीश कुमार ने मंच पर हंसी मजाक शुरू कर दिया था और मोदी के पैर पर हाथ रख दिया था। उसे लेकर खबरें बनीं तो चार सौ सीट को वे बार बार चार हजार सीट कह रहे थे। इसे लेकर भी मीडिया में खबरें बनीं। सो, ऐसा लग रहा है कि अब कम सभाओं में प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री एक साथ होंगे।
इस बीच यह खबर तेजी से फैली है कि भाजपा अपने कोटे की सभी 17 सीटों पर बहुत मजबूती से लड़ रही है और जीत जाएगी लेकिन नीतीश कुमार के उम्मीदवार मुश्किल में हैं। एबीपी न्यूज का एक सर्वे पिछले दिनों आया उसमें यह बताया गया कि चिराग पासवान भी अपनी सभी पांच सीटें जीत रहे हैं। इसका मतलब है कि जो जोखिम है वह नीतीश कुमार की सीट पर है या उनके करीबियों यानी उपेंद्र कुशवाहा और जीतन राम मांझी की सीट पर है। इसका कारण यह माना जा रहा है कि जमीनी स्तर पर भाजपा और जनता दल यू के कार्यकर्ताओं के बीच पहले ही तरह मजबूत एकजुटता नहीं बनी है।
असल में पिछली बार जब से नीतीश कुमार भाजपा के साथ वापस लौटे हैं तब से लगातार उनके खिलाफ एक अभियान चल रहा है, जिसके पीछे भाजपा का ही इकोसिस्टम काम कर रहा है। उनको बदनाम करके उनकी छवि खराब करने का काम बहुत बारीकी से हुआ है। पहले भी भाजपा का पूरा वोट नीतीश कुमार को ट्रांसफर नहीं होता है लेकिन इस बार और कम वोट ट्रांसफर हो रहा है। तभी कहा जा रहा है कि जदयू की ओर से भी भाजपा का खेल बिगाड़ने की कोशिश हो रही है। इसी तरह नीतीश कुमार और चिराग पासवान के बीच के विवाद का सबको पता है। दोनों के समर्थक एक दूसरे से बदला निकालने की भावना से काम कर रहे हैं। हालांकि लोकसभा चुनाव और मोदी फैक्टर की वजह से इसका असर बहुत ज्यादा नहीं हो रहा है लेकिन यह सही है कि ऊपर ऊपर नेताओं में जितनी एकजुटता दिख रही है वैसी एकजुटता जमीनी स्तर पर नहीं है।