भारतीय जनता पार्टी ने केंद्र में सरकार बनाने के बाद बड़ी सावधानी से पूर्वोत्तर को साधने का प्रयास किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भरोसेमंद राम माधव को काफी समय तक वहां की जिम्मेदारी मिली रही। हिमंता बिस्वा सरमा को कांग्रेस से लाकर उनको महत्वपूर्ण भूमिका दी गई। एनडीए से अलग वहां एनईडीए यानी नॉर्थ ईस्ट डेमोक्रेटिक एलायंस बनाया गया, जिसका जिम्मा हिमंता बिस्व सरमा को दिया गया। बाद में उनको असम का मुख्यमंत्री भी बनाया गया। लेकिन ऐसा लग रहा है कि अब इस गठबंधन में दरार आ रही है। सब कुछ पहले की तरह सहज रूप से नहीं चल रहा है।
मणिपुर में जातीय हिंसा के बाद सबसे ज्यादा बदलाव हुआ। भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व राज्य के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह को काबू नहीं कर पाए और बीरेन सिंह अपने निजी राजनीतिक हितों की वजह से राज्य में हिंसा नहीं रोक पाए। इसका असर मिजोरम और मेघालय में दिख रहा है। दोनों राज्यों में एनडीए का गठबंधन प्रभावित हुआ है। मिजोरम की मिजो नेशनल फ्रंट की सरकार ने खुल कर बीरेन सिंह का विरोध किया है, जिसके जवाब में बीरेन सिंह के मिजोरम की सरकार को देश विरोधी सरकार कहा है। इसके बाद से मिजोरम के गठबंधन से अलग होने की चर्चा है। इसी तरह मेघालय में सत्तारूढ़ एनपीसी ने मणिपुर सरकार से समर्थन वापस ले लिया है। उसके सात विधायक हैं। मेघालय के मुख्यमंत्री कोनरेड संगमा और मिजोरम के मुख्यमंत्री लालदुहोमा तेवर दिखाते रहते हैं। पूर्वोत्तर की दूसरी प्रादेशिक पार्टियां भी हिमंता बिस्व सरमा के एकछत्र नेता वाले तेवर से परेशान रहते हैं।