तमिलनाडु के राज्यपाल आरएन रवि ने अपने को वहां का मुख्य विपक्षी बनाया है। राज्य की मुख्य विपक्षी पार्टी अन्ना डीएमके से सरकार और सत्तारूढ़ दल डीएमके का जितना टकराव नहीं होता है उससे ज्यादा टकराव राज्यपाल से होता है। पूर्व आईपीएस अधिकारी राज्यपाल आरएन रवि की गतिविधियों का कुछ न कुछ फायदा भाजपा को भी हुआ है। लेकिन वे सबसे ज्यादा काम आ रहे हैं मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के। उनकी गतिविधियों से डीएमके विरोधी, जो नैरेटिव बन रहा है उसका फायदा भाजपा को मिल रहा है लेकिन उससे डीएमके ज्यादा मजबूत हो रही है। तमिल लोगों में यह धारणा बन रही है कि राज्यपाल के जरिए भाजपा उनकी संस्कृति और परंपराओं से छेड़छाड़ कर रही है। इस पूरी प्रक्रिया से नुकसान में अन्ना डीएमके है। हालांकि राज्य में राजनीतिक स्थितियां काफी बदल गई हैं। तमिल सुपरस्टार विजय की पार्टी बनने के बाद अगले साल के विधानसभा चुनाव में मुकाबला बहुकोणीय होगा।
बहरहाल, राज्यपाल आरएन रवि के कामकाज से स्टालिन का द्रविड नैरेटिव बहुत मजबूती से स्थापित हो रहा है। वे अपनी सरकार के कामकाज और कांग्रेस सहित आधा दर्जन पार्टियों के गठबंधन के साथ साथ द्रविड भाषा और संस्कृति की महत्ता को भावनात्मक मुद्दा बना रहे हैं। उनकी पार्टी और सरकार के कामकाज का फोकस इस विषय पर सबसे ज्यादा है। तभी उन्होंने सिंधु घाटी की लिपि पढ़ने और उसका अर्थ समझाने वाले के लिए साढ़े आठ करोड़ रुपए के इनाम की घोषणा की है। पिछले कुछ समय में कुछ जगहों पर हुई खुदाई में ऐसे अवशेष मिले हैं, जो सिंधु घाटी के अवशेषों से मिलते हैं। बैल को काबू में करने की प्रतीकात्मक मूर्तियां इसकी मिसाल हैं। ऐसा सिंधु घाटी में होता था और तमिलनाडु में भी होता है। ऐसे अवशेष उन इलाकों में खासतौर से मिले हैं, जहां जल्लीकट्टू यानी बैल को काबू में करने का पारंपरिक खेल होता है। स्टालिन यह स्थापित करना चाहते हैं कि सिंधु घाटी की सभ्यता तमिलों की थी। यह तमिल प्राइड का मुद्दा बन रहा है।
ऐसे मामलों में बार बार राज्य सरकार के उलट काम करके राज्यपाल आरके रवि डीएमके को फायदा पहुंचा देते हैं। ताजा मामला विधानसभा के साल के पहले सत्र में बिना अभिभाषण पढ़े राज्यपाल के निकल जाने का है। सोमवार, छह जनवरी को विधानसभा का सत्र शुरू हुआ तो परंपरा के मुताबिक साल के पहले सत्र को राज्यपाल को संबोधित करना था और सरकार की ओर से दिया गया भाषण पढ़ना था। सदन की कार्यवाही शुरू होने पर तमिलनाडु का राज्यगान गाया गया और उसके बाद अभिभाषण पढ़ना था। लेकिन राज्यपाल ने कहा कि राष्ट्रगान भी होना चाहिए। तमिलनाडु विधानसभा में 1991 से एक परंपरा चली आ रही है कि अभिभाषण से पहले राज्यगान होगा और अभिभाषण के बाद राष्ट्रगान से समापन होगा। लेकिन राज्यपाल इस बार पहले ही राष्ट्रगान के लिए अड़ गए और सदन से बिना अभिभाषण पढ़े ही चले गए। इससे स्टालिन की द्रविड अस्मिता की राजनीति मजबूत होती है। पहले भी राज्यपाल ने तमिलनाडु का नाम बदल कर तमिझगम करने का सुझाव दिया था, जिस पर काफी विवाद हुआ था। सो, आरएन रवि पता नहीं किस मकसद से कोई भी काम करते हैं लेकिन उससे स्टालिन की तमिल अस्मिता की राजनीति मजबूत होती है, जिसका फायदा उनको 2026 के चुनाव में वैसे ही मिलेगा, जैसा 2021 में राजभवन की गतिविधियों का लाभ पश्चिम बंगाल के चुनाव में ममता बनर्जी को हुआ था।