पता नहीं भारतीय जनता पार्टी ने बिहार विधानसभा चुनाव से पहले क्या योजना बनाई थी, क्या सर्वे कराए थे और क्या रोडमैप तैयार किया था, जो उसका चुनाव इतना बिखरा और कमजोर दिखा! प्रचार में भाजपा ने कारपेट बॉम्बिंग की। एक दर्जन राज्यों के मुख्यमंत्रियों के हेलीकॉप्टर बिहार में उड़ रहे थे और देश भर के भाजपा नेता, मंत्री, सांसद पटना से लेकर दूरदराज के शहरों, कस्बों की गलियों में भटक रहे थे। लेकिन चुनाव उसका फिर भी नहीं उठ पाया। आखिर तक भाजपा किसी तरह से चुनाव लड़ती दिखी। प्रशांत किशोर के बारे में कहा जा रहा था कि वे भाजपा की बी टीम हैं लेकिन उनकी जनसुराज पार्टी ने ऐसे उम्मीदवार दिए, जो दूसरी किसी भी पार्टी के मुकाबले भाजपा को ज्यादा नुकसान पहुंचा रहे हैं। इसके उलट ज्यादातर सीटों पर उनके उम्मीदवार जनता दल यू की मदद करते दिख रहे हैं। उम्मीदवारों के चयन से लेकर रणनीति बनाने तक हर क्षेत्र में भाजपा परेशान दिखी।
भाजपा की सबसे बड़ी रणनीतिक भूल नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री पद का दावेदार नहीं घोषित करना था। इस साल के शुरू में ही अमित शाह ने कह दिया था कि मुख्यमंत्री का फैसला चुनाव के बाद होगा। उसके बाद उन्होंने कई बार यह बात की। इसके बाद दूसरी गलती यह हुई कि भाजपा ने बराबर का भाई बनने का दांव चला। जदयू के लोगों को पटा कर और नीतीश कुमार को अंधेरे में रख कर भाजपा ने बराबर सीट ली। इन दो गलतियों से जो नुकसान हुआ उसकी भरपाई के लिए भाजपा को बीच चुनाव कई तरह के कदम उठाने पड़े। सवाल है कि क्या भाजपा के रणनीतिकारों को पता नहीं था कि जमीन पर नीतीश कुमार को लेकर लोगों में क्या धारणा है? क्या भाजपा के नेता भी इधर उधर के फर्जी सर्वेक्षणों के हिसाब से रणनीति बना रहे थे, जिनमें कहा जा रहा था कि मुख्यमंत्री पद के लिए नीतीश कुमार तीसरे नंबर पर हैं और उनसे ज्यादा लोकप्रियता तेजस्वी यादव और प्रशांत किशोर की है? इन सर्वेक्षणों के आधार पर रणनीति बना कर भाजपा फंस गई और उसके बाद पूरा चुनाव संकट प्रबंधन में और सफाई देने में बीता।
सोचें, भाजपा के लगभग हर नेता को चुनाव के बीच कहना पड़ा कि नीतीश कुमार ही मुख्यमंत्री बनेंगे। यह सौ जूते और सौ प्याज दोनों खाने वाली बात हो गई। कम से कम दो बार अमित शाह ने कहा कि बिहार में सीएम पद की वैकेंसी नहीं है। उन्होंने कहा कि बिहार में सीएम और दिल्ली में पीएम की वैकेंसी नहीं है। बिहार में भाजपा के चुनाव प्रभारी धर्मेंद्र प्रधान ने दूसरे चरण का प्रचार बंद होने के बाद कहा कि नीतीश कुमार ही एनडीए के मुख्यमंत्री पद के दावेदार हैं। उससे पहले प्रधानमंत्री के मंच से उनके सामने भाजपा के सांसद राजीव प्रताप रूड़ी ने कहा कि नीतीश कुमार मुख्यमंत्री थे, मुख्यमंत्री हैं और मुख्यमंत्री रहेंगे। भाजपा सांसद रविशंकर प्रसाद ने हर प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि चुनाव के बाद नीतीश ही मुख्यमंत्री होंगे। बिहार के उप मुख्यमंत्री सम्राट चौधरी हर जगह यह बात कहते रहे कि नीतीश ही सीएम होंगे। चुनाव प्रचार के दौरान भाजपा को अपने सबसे बड़े नेताओं में से एक राजनाथ सिंह से भी कहलवाना पड़ा कि नीतीश ही सीएम के दावेदार हैं। सोचें, इतना कहने की जरुरत क्यों पड़ी? अगर पहले ही कह देते के चुनाव के बाद नीतीश ही मुख्यमंत्री बनेंगे तो किसी को बीच चुनाव में इतनी सफाई नहीं देनी पड़ती और भाजपा के उम्मीदवारों को जमीन पर इतनी समस्या का सामना भी नहीं करना पड़ता।


