चुनाव आयोग ने चार राज्यों की पांच विधानसभा सीटों पर उपचुनाव का ऐलान किया है। 19 जून को इन सीटों पर उपचुनाव होंगे। इनमें से दो सीटें गुजरात की हैं, जबकि पंजाब, केरल और पश्चिम बंगाल की एक एक सीटें हैं। इन चारों राज्यों में उपचुनाव के नतीजों से विधानसभा की संरचना और राज्य सरकारों की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ेगा। लेकिन कम से कम तीन राज्यों की तीन सीटों का उपचुनाव राजनीति को कई तरह से प्रभावित करने वाला होगा। ऑपरेशन सिंदूर के बाद यह पहला चुनाव है। इसलिए भी इसके नतीजे अहम हैं।
सबकी नजर पंजाब की लुधियाना वेस्ट सीट पर होगी, जहां आम आदमी पार्टी ने अपने राज्यसभा सांसद संजीव अरोड़ा को उम्मीदवार बनाया है। कहा जा रहा है कि वे जीत जाएंगे तो राज्यसभा सीट से इस्तीफा देंगे और पार्टी सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल उनकी जगह उच्च सदन में जाएंगे। तभी इस सीट पर सभी पार्टियां पूरी ताकत लगाएंगे। कांग्रेस ने पूर्व मंत्री भारत भूषण आशू को और अकाली दल ने परुपकार सिंह घुमन को टिकट दिया है। भाजपा की घोषणा जल्दी ही होगी।
19 जून को पांच सीटों पर उपचुनाव
केरल में नीलांबुर सीट पर उपचुनाव होना है क्योंकि दो बार के निर्दलीय विधायक पीवी अनवर ने इस्तीफा दे दिया है। अनवर विधानसभा में सीपीएम के नेतृत्व वाले एलडीएफ का समर्थन कर रहे थे। पिछले दोनों चुनाव उन्होंने एलडीएफ के समर्थन से लड़े थे। लेकिन पिछले दिनों मुख्यमंत्री पिनरायी विजयन से उनका विवाद हुआ और उन्होंने इस्तीफा दे दिया। सो, सीपीएम को उपचुनाव में दिखाना है कि नीलांबुर में ताकत अनवर की नहीं, बल्कि एलडीएफ की है। पिछले दोनों चुनावों में कांग्रेस बहुत कम अंतर से हारी है।
विधानसभा चुनाव से एक साल पहले हो रहे उपचुनाव में अगर कांग्रेस ने उलटफेर किया तो वह लेफ्ट के लिए बड़ा झटका होगा। उधर पश्चिम बंगाल की कालीगंज सीट पर ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस के नसीरूद्दीन अहमद के निधन की वजह से उपचुनाव हो रहा है। 2021 के चुनाव में तृणमूल ने यह सीट कांग्रेस से छीनी थी। विधानसभा चुनाव से एक साल पहले हो रहे उपचुनाव में क्या तस्वीर बनती है उससे अगले चुनाव का बहुत कुछ साफ होगा। तृणमूल और कांग्रेस अलग अलग लड़ कर अपनी ताकत दिखाएंगे। उसके बाद तालमेल का फैसला होगा।
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