असदुद्दीन ओवैसी अब तक अलग थलग मुस्लिम राजनीति करते रहे थे। लेकिन पहलगाम कांड और उसके बाद हुई सैन्य कार्रवाई ऑपरेशन सिंदूर के दौरान उनके बयान, भाषण और उनकी राजनीति ने देश के बहुसंख्यकों का भी मन मोह लिया है। अब सोशल मीडिया में राइट विंग की तरफ से उनको गालियां नहीं पड़ती हैं, बल्कि यह कहा जाता है कि पाकिस्तान के कब्जे वाला कश्मीर भारत को मिल जाए तो वहां असदुद्दीन ओवैसी को मुख्यमंत्री बनाया जाए।
वे अभी भारत सरकार का संदेश लेकर दुनिया के दौरे पर गए हैं। इस बीच खबर है कि उनकी पार्टी बिहार में तालमेल करने के लिए बेचैन है। उनको बिहार की हकीकत समझ में आ रही है और अकेले चुनाव लड़ने का खतरा दिख रहा है।
बिहार में ओवैसी की नई राजनीतिक चाल
पिछली बार वे उपेंद्र कुशवाहा की रालोसपा और मायावती की बसपा से तालमेल करके लड़े थे और पांच सीटें जीत गए थे। इस बार उनके साथ कोई नहीं है। तभी कहा जा रहा है कि वे राजद, कांग्रेस और लेफ्ट के महागठबंधन में शामिल होना चाहते हैं। उनकी पार्टी के प्रवक्ता आदिव हसन ने इसका संकेत दिया है।
लेकिन मुश्किल यह है कि कांग्रेस ने पूरे देश में एमआईएम की छवि भाजपा को चुनाव जिताने वाली पार्टी के तौर पर बना रखी है। दूसरी बात यह है कि ऑपरेशन सिंदूर का खुमार उतरने के बाद ओवैसी फिर से कट्टर मुस्लिम नेता के तौर पर ही ब्रांड किए जाएंगे। तीसरी बात यह है कि कांग्रेस अब पूरे देश में मुस्लिम वोट पर अपना एकाधिकार मान रही है। इसलिए कांग्रेस के लिए मुश्किल है कि वह ओवैसी की पार्टी से तालमेल करे। लेकिन देखना होगा कि लालू प्रसाद और तेजस्वी यादव क्या रुख दिखाते हैं।
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