यह कहना है भारत के चुनाव आयोग का कि अमेरिका के पास जो इलेक्ट्रोनिक वोटिंग मशीन यानी ईवीएम है उसको हैक किया जा सकता है और उसके नतीजे बदले जा सकते हैं लेकिन भारत की ईवीएम के साथ ऐसा नहीं हो सकता है। अब सवाल है कि क्या इसी वजह से अमेरिका में ईवीएम की बजाय बैलेट से वोट होता है कि वहां की ईवीएम हैक हो सकती है और अमेरिका की प्रौद्योगिकी ऐसी नहीं है कि वह भारत के जैसा ईवीएम बना सके? यह बेसिरपैर की बात भारत के चुनाव आयोग की ओर से तब कही गई.
जब अमेरिका की इंटेलीजेंस डायरेक्टर यानी वहां की डेढ़ दर्जन खुफिया एजेंसियों की प्रमुख तुलसी गबार्ड ने कहा कि ईवीएम हैक करके नतीजे बदले जा सकते हैं इसलिए बैलेट पेपर से ही वोटिंग होनी चाहिए। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की मौजूदगी में तुलसी गबार्ड ने कहा कि अमेरिका में जहां भी थोड़े से जगहों पर ईवीएम से चुनाव होते हैं वहां बैलेट से ही चुनाव कराना चाहिए क्योंकि ईवीएम को बड़ी आसानी से हैक किया जा सकता है।
वॉशिंगटन में कही गई इस बात को भारत के चुनाव आयोग ने अपने ऊपर आक्षेप मान लिया और जोरदार ढंग से ईवीएम का पक्ष लिया। कई बात तो ऐसा लगता है जैसे ईवीएम ने भारत के चुनाव आयोग और भारतीय जनता पार्टी को अपना ब्रांड एंबेसेडर नियुक्त किया है। बहरहाल, भारत के चुनाव आयोग की ओर से चार कारण बताए गए, जिनके आधार पर कहा गया कि अमेरिका का ईवीएम हैक हो सकता है लेकिन भारत का नहीं।
पहला, अमेरिकी ईवीएम ऑपरेटिंग सिस्टम से चलता है, जबकि भारत में ऑपरेटिंग सिस्टम नहीं लगता है। दूसरा, अमेरिकी ईवीएम इंटरनेट से जुड़ा होता है, जबकि भारत का ईवीएम कनेक्टेड नहीं होता है। तीसरा, अमेरिकी ईवीएम के साथ वीपीपैट मशीन नहीं लगती है और परची नहीं निकलती है, जबकि भारत में परची निकलती है और चौथा, अमेरिकी ईवीएम में एक बार प्रोग्रामिंग के बाद उसको बदला जा सकता है, लेकिन भारत में प्रोग्रामिंग हो जाने के बाद उसे नहीं बदला जा सकता है।
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सोचिए, ऐसा अद्भुत ईवीएम बनाने के लिए क्या भारत को आधुनिक तकनीक का विश्वगुरू नहीं मान लेना चाहिए! तुलसी गबार्ड के बयान के बाद भारत के चुनाव आयोग ने जिस आधार पर ईवीएम को जस्टिफाई किया है वह असल में हास्यास्पद है। ऐसा लग रहा है, जैसे चुनाव आयोग यह कहना चाह रहा है कि अमेरिका की इंटेलीजेंस डायरेक्टर को ईवीएम की तकनीक के बारे में पता नहीं है और अमेरिका भारत जैसी तकनीक वाला ईवीएम नहीं बना सकता है।
सबसे पहले तो यह समझने की बात है कि ईवीएम सबसे बेसिक तकनीक पर आधारित मशीन है वह कोई टेक्नोलॉजिकल मार्बल नहीं है। उसे 50 साल पहले बना कर और आजमा कर दुनिया के देशों ने छोड़ दिया। दूसरी बात यह है कि भारत का चुनाव आयोग जिस ईवीएम की बात कर रहा है वैसा ईवीएम अमेरिका चाहे तो चुटकियों में बना ले और दावा कर दे कि उसका ईवीएम हैक नहीं हो सकता है।
इसके बावजूद वह नहीं बना रहा है और तुलसी गबार्ड से लेकर इलॉन मस्क तक ईवीएम हैक हो सकने की बात कर रहे हैं तो भारत के चुनाव आयोग को इन बातों को सुनना चाहिए और ईमानदारी से इस पर विचार करना चाहिए।