बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार किसी भी गठबंधन में जाने के लिए ओपन हैं। वे राजद के साथ रह सकते हैं या भाजपा के साथ जा सकते हैं। उनके दिमाग में कई बार यह ख्याल भी आया है कि वे अकेले लड़ें लेकिन उनकी पार्टी के दूसरे नेताओं ने इस प्रस्ताव को हर बार खारिज कर दिया है। इसलिए वे अभी फैसला नहीं कर पा रहे हैं। हालांकि उन्होंने पार्टी पर अपना सौ फीसदी नियंत्रण बनाने का काम पूरा कर लिया है। पहले राजीव रंजन उर्फ ललन सिंह को पार्टी अध्यक्ष पद से हटा कर खुद अध्यक्ष बने और उसके बाद पार्टी संगठन में भी ललन सिंह के जितने लोग थे सबको बाहर कर दिया। अपने प्रति विश्वासपात्र और भाजपा के लिए सद्भाव रखने वाले नेताओं को महत्व दिया है। ललन सिंह को हटाने के बाद दिल्ली में सबसे अहम चेहरे के तौर पर फिर से केसी त्यागी को स्थापित किया है, जिनके जरिए किसी भी गठबंधन में ज्यादा बेहतर ढंग से बात हो सकती है। यह सब करने के बाद नीतीश अब अपनी दो मुख्य शर्तों पर काम कर रहे हैं।
बताया जा रहा है कि नीतीश कुमार ने राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद से कहा है कि विधानसभा का चुनाव लोकसभा के साथ ही कराया जाए। उन्होंने लालू प्रसाद के साथ बातचीत में कहा कि अभी विधानसभा भंग करने का प्रस्ताव राज्यपाल को देना चाहिए। हालांकि लालू प्रसाद इसके लिए तैयार नहीं हुए। जानकार सूत्रों का कहना है कि यही प्रस्ताव नीतीश की ओर से भाजपा को भी दिया गया है। उनकी दो मुख्य शर्तें यह हैं कि वे मुख्यमंत्री बने रहेंगे और दूसरे लोकसभा के साथ ही विधानसभा का चुनाव कराया जाए। भाजपा को भी उनकी यह शर्त मंजूर नहीं है। असल राजद और भाजपा दोनों को पता है कि पिछली बार परिस्थिति विशेष में नीतीश की पार्टी को 43 सीटें मिली थीं। अगर वे किसी भी गठबंधन में रह कर चुनाव लड़ते हैं और चुनाव लोकसभा के साथ होता है तो उनकी सीटें बढ़ जाएंगी। उपचुनाव में दो सीटें जीतने के बाद अभी उनके पास 45 विधायक हैं। अगर यह संख्या 50 से ऊपर जाती है तो फिर उनकी कुर्सी और मजबूत हो जाएगी। उसके बाद उन्हें नहीं हटाया जा सकेगा। इस समय राजद के 79 और भाजपा के 78 विधायक हैं। दोनों अपनी सीटें कम होने की आशंका में हैं। नीतीश कुमार की इसी शर्त की वजह से बिहार में मामला रूका है।