तालमेल और सीट बंटवारे का मामला सबसे ज्यादा महाराष्ट्र में उलझा है। वहां विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ और सत्तारूढ़ ‘महायुति’ के बीच कुछ भी स्पष्ट नहीं है। शिव सेना से अलग होकर एकनाथ शिंदे मुख्यमंत्री बन गए हैं और इस आधार पर वे शिव सेना को मिलने वाली 22 सीटों की मांग कर रहे हैं तो एनसीपी से अलग होकर सरकार में शामिल हुए अजित पवार भी पुराने गठबंधन में एनसीपी को मिलने वाली 22 सीटों की मांग कर रहे हैं। दूसरी ओर भाजपा है, जिसको हर हाल में पिछली बार मिली 23 सीटों से ज्यादा सीटें जीतनी हैं। यह तभी होगा, जब वह ज्यादा से ज्यादा सीट लड़े। पिछली बार वह 25 सीटों पर चुनाव लड़ी थी। इस बार वह एकनाथ शिंदे और अजित पवार दोनों के लिए 20 से 22 सीटें छोड़ सकती है। लेकिन यह भी कहा जा रहा कि अगर भाजपा जमीनी फीडबैक के आधार पर दोनों सहयोगियों को अलग लड़ने के लिए भी कह सकती है ताकि वे कांग्रेस, शरद पवार गुट के एनसीपी और उद्धव ठाकरे गुट के शिव सेना के वोट काट सकें।
दूसरी ओर कांग्रेस, शरद पवार और उद्धव ठाकरे के बीच भी इसी तरह से मामला उलझा है। पहले कांग्रेस और एनसीपी में तालमेल होता था तो कांग्रेस ज्यादा सीटों पर लड़ती थी। लेकिन पिछले चुनाव में कांग्रेस सिर्फ एक सीट लोकसभा सीट जीत सकी थी, जबकि एनसीपी को पांच सीटें मिली थीं। दूसरी ओर भाजपा के साथ गठबंधन करके लड़ी शिव सेना को 18 सीटें मिली थीं। हालांकि अब शिव सेना टूट गई है और उसके 13 सांसद शिंदे के साथ चले गए हैं फिर भी शिव सेना 23 सीटों की मांग कर रही है क्योंकि वह पिछली बार 23 सीटों पर लड़ी थी। उसके नेता संजय राउत ने कहा है कि कांग्रेस का कोई भी सांसद नहीं है इसलिए उसे जीरो से शुरू करना चाहिए। हालांकि विधायकों की संख्या के लिहाज से कांग्रेस अभी राज्य में मुख्य विपक्षी पार्टी है। दूसरी ओर शरद पवार भी 22 सीटों पर लड़ते रहे हैं तो उनका खेमा भी 22 सीटों की मांग कर रहा है। नेता विपक्ष के दर्जे को देखते हुए कांग्रेस ज्यादा सीटों की मांग कर रही है। सो, चाहे कांग्रेस का गठबंधन हो या भाजपा का, दोनों का मामला सबसे ज्यादा महाराष्ट्र में उलझा हुआ है।