nayaindia Loksabha Election 2024 चुनाव आयोग इस साल के चुनाव साथ कराए

चुनाव आयोग इस साल के चुनाव साथ कराए

सुप्रीम कोर्ट का फैसला

विपक्ष की लगभग सभी पार्टियों ने ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ का विरोध किया है। पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली कमेटी के सामने सभी पार्टियों ने लिखित राय पेश की, जिसमें विपक्ष ने पूरे देश में एक साथ चुनाव कराने के विचार को लोकतंत्र के लिए खतरा बताया है। दूसरी ओर सत्तारूढ़ भाजपा और उसकी सहयोगी पार्टियां पूरे देश में एक साथ चुनाव कराने के समर्थन में हैं। हाल ही में एनडीए में लौटी नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यू ने पिछले दिनों कोविंद कमेटी के सामने अपनी राय रखी तो कहा कि लोकसभा और विधानसभा के चुनाव साथ होने चाहिए। उसने स्थानीय निकाय चुनाव अलग से कराने का सुझाव दिया। जाहिर है कि सत्तारूढ़ गठबंधन को पूरे देश में एक साथ चुनाव कराने में कोई आपत्ति नहीं है।

तभी सवाल है कि क्या इस साल होने वाले सारे चुनाव एक साथ होंगे? क्या भारत सरकार और चुनाव आयोग दोनों को यह प्रयास नहीं करना चाहिए कि इस साल जितने भी चुनाव हैं उनको एक साथ कराया जाए? जब सरकार इस आइडिया के पक्ष में है और चुनाव आयोग की ओर से हजारों बार कहा जा चुका है कि वह सारे चुनाव एक साथ कराने को तैयार है तो निश्चित रुप से इस साल के सारे चुनाव साथ होने चाहिए। इसके लिए आयोग को किसी अतिरिक्त प्रयास की जरुरत नहीं होगी और न सरकार को दूसरी पार्टियों का मुंह देखने की जरुरत होगी। सरकार और चुनाव आयोग चाहें तो साल के अंत में होने वाले तीन राज्यों के चुनाव लोकसभा के साथ कराए जा सकते हैं।

ध्यान रहे लोकसभा के साथ अप्रैल और मई में ओडिशा, आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम के विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। इसके बाद अक्टूबर में महाराष्ट्र, नवंबर में हरियाणा और दिसंबर में झारखंड में विधानसभा चुनाव होने वाला है। दूसरी ओर सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई के बाद फैसला सुनाया था कि इस साल सितंबर तक जम्मू कश्मीर में विधानसभा के चुनाव कराए जाएं। वैसे चुनाव तो कई बरसों से बृहन्न मुंबई महानगर निगम के भी लंबित हैं, लेकिन स्थानीय निकायों के चुनाव को छोड़ें तो लोकसभा के साथ सभी विधानसभाओं के चुनाव तो निश्चित रूप से एक साथ कराए जाने चाहिए।

यह केंद्र सरकार और चुनाव आयोग दोनों की मंशा स्पष्ट करने का मसला है। अगर सचमुच दोनों ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ के आइडिया पर ईमानदारी से अमल करना चाहते हैं तो दोनों को शुरुआत इस साल करनी चाहिए। महाराष्ट्र और हरियाणा में तो भाजपा की ही सरकार है। इसलिए सरकार को विधानसभा भंग करके चुनाव में जाने में कोई दिक्कत नहीं होगी। ध्यान रहे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चाहते तो 2019 में भी महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड के चुनाव लोकसभा के साथ कराए जा सकते थे। लेकिन पूरे देश में एक साथ चुनाव कराने की इतनी मुखर वकालत के बावजूद उन्होंने कोई इन तीनों राज्यों के चुनाव एक एक महीने के अंतराल पर होने दिए। इस बार भी अभी तक ऐसा ही लग रहा है। इसका कारण विशुद्ध रूप से राजनीतिक है। लोकसभा चुनाव में अपनी जीत को लेकर खूब आश्वस्ति दिखाने के बावजूद भाजपा और प्रधानमंत्री को लग रहा है अगर राज्यों का समीकरण लोकसभा चुनाव पर भी हावी हो गया तो नुकसान हो सकता है। एंटी इनक्बैंसी बढ़ सकती है और चुनाव स्थानीय नैरेटिव पर भी शिफ्ट हो सकता है। इसलिए एक साथ चुनाव की बात कोई नहीं कर रहा है।

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