बहुजन समाज पार्टी की नेता मायावती ने अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान करके अपनी पार्टी के नेताओं और खास कर सांसदों के बेचैन कर दिया है। उन्होंने एक महीने के अंदर दो बार यह बात कही। पहले पार्टी नेताओं की बैठक में उन्होंने अकेले लड़ने की बात कही और फिर मुंबई में विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ की बैठक से पहले सोशल मीडिया में लिखा कि बहुजन समाज पार्टी पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव अकेले लड़ेगी और अगले साल के लोकसभा चुनाव में भी अकेले मैदान में उतरेगी। उन्होंने एनडीए और ‘इंडिया’ दोनों को निशाना बनाते हुए कहा कि उनकी पार्टी किसी गठबंधन का हिस्सा नहीं बनेगी। ध्यान रहे ‘इंडिया’ के नेता उम्मीद कर रहे थे कि वे विपक्षी गठबंधन का हिस्सा बनेंगी।
उनके अकेले लड़ने के ऐलान से सबसे ज्यादा परेशान उनकी पार्टी के सांसद हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में यानी 2019 में वे समाजवादी पार्टी के साथ तालमेल करके लड़ीं थी और उनकी पार्टी 10 सीटों पर जीत गई थी। उससे पहले 2014 में अकेले लड़ कर वे एक भी सीट नहीं जीत पाई थीं। हालांकि दोनों चुनावों में उनको वोट 20 फीसदी के करीब ही मिले। तभी उनकी पार्टी के सांसद चाहते हैं कि पार्टी किसी न किसी गठबंधन में चुनाव लड़े। मायावती भाजपा के साथ नहीं जा सकती हैं क्योंकि तब मुस्लिम वोट पूरी तरह से उनसे अलग हो जाएगा और बाद में दलित वोट भी भाजपा की ओर से तेजी से शिफ्ट करेगा। इसके अलावा भाजपा गठबंधन में उनको ज्यादा सीट भी नहीं मिल सकती है। सो, विपक्षी गठबंधन के साथ जाना उनके लिए बेहतर विकल्प माना जा रहा है।
इस बीच खबर है कि मायावती की पार्टी के सांसदों ने अपने लिए सुरक्षित आसरे की खोज तेज कर दी है। कई सांसद भाजपा के संपर्क में बताए जा रहे हैं तो कुछ सांसदों ने समाजवादी पार्टी और विपक्षी गठबंधन में शामिल राष्ट्रीय लोकदल से संपर्क किया है। यह भी कहा जा रहा है कि उनकी पार्टी के कई नेता कांग्रेस के संपर्क में हैं। हालांकि विपक्षी पार्टियां अभी इस तरह का कोई मैसेज नहीं जाने देना चाहती हैं, जिससे मायावती भड़कें। उनको यह नहीं लगना चाहिए कि विपक्षी गठबंधन उनकी पार्टी तोड़ रहा है। इसका मतलब है कि विपक्ष को अब भी उनके साथ आने की उम्मीद है।
पिछले दिनों बहुजन समाज पार्टी के एक सांसद ने सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव से मुलाकात की थी। हालांकि उसके बाद सपा ने चुप्पी साधे रखी, जिसकी वजह से उनके सपा के साथ जाने या सपा की टिकट से चुनाव लड़ने की अटकलें थम गईं। यह भी बताया जा रहा है कि सपा के एक मुस्लिम सांसद पुराने समाजवादी संपर्कों जरिए अखिलेश को मैसेज पहुंचा रहे हैं। नीतीश कुमार और उनकी पार्टी के नेताओं के जरिए उन्होंने सपा से संपर्क किया है। मायावती को इसकी अंदाजा है। वे अकेले लड़ने के खतरे जान रही हैं। उनके सिर्फ एक विधायक है और अगर वे लोकसभा में कोई सीट नहीं जीत पाती हैं तो पार्टी खत्म हो सकती है।