अमेरिका और यूरोपीय संघ को जवाब देने के लिए क्या भारत एशियाई भाईचारे की कूटनीति कर सकता है और अगर करता है तो इसके कामयाब होने की संभावना कितनी है? यह बड़ा सवाल है, जिसका जवाब आने वाले कुछ दिनों में मिलेगा। यह भी हो सकता है कि भारत की ओर से एशियाई भाईचारे की जो कूटनीति हो रही है वह अमेरिका और यूरोपीय संघ पर दबाव बनाने के लिए हो और थोड़े दिन बाद सब कुछ वापस पुराने ढर्रे पर आ जाए। इसका भी पता अगले कुछ दिन में चलेगा। लेकिन अभी स्थिति यह है कि अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भारत पर अपने मनमाफिक व्यापार संधि करने के लिए दबाव बना रहे हैं, टैरिफ बढ़ा रहे हैं और जुर्माना लगा रहे हैं। तो दूसरी ओर भारत उस दवाब में आने की बजाय अमेरिका को दबाव में लाने की कूटनीति कर रहा है।
यह अनायास नहीं है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चीन जाने का कार्यक्रम बनाया और उसके साथ ही जापान के दौरे का भी फैसला हो गया। प्रधानमंत्री 30 अगस्त को पहले जापान जाएंगे और वहा से 31 अगस्त को चीन के दौरे पर पहुंचेंगे, जहां वे शंघाई सहयोग संगठन यानी एससीओ की बैठक में हिस्सा लेंगे। इस यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री मोदी चीन के राष्ट्रपति शी जिनफिंग से होगी और दोनों के बीच दोपक्षीय चर्चा हो सकती है। ध्यान रहे चीन और अमेरिका दोनों भारत के सबसे बड़े कारोबारी कारोबारी साझीदार देश हैं। फर्क यह है कि अमेरिका से कारोबार में व्यापार संतुलन भारत के पक्ष में है तो चीन से कारोबार में व्यापार संतुलन चीन के पक्ष में है। अगर अमेरिका 50 फीसदी टैरिफ लगाने पर अड़ा रहता है तो उसके साथ भी व्यापार संतुलन प्रभावित होगा। ऐसे में क्या भारत की ओर से चीन के साथ बेहतर व्यापार संधि करने का फैसला हो सकता है? अगर ऐसा होता है तो फिर व्यापार से लेकर क्वाड तक सब कुछ प्रभावित होगा और अमेरिका को अपनी एशियाई नीति पर नए सिरे से विचार करना होगा।
एससीओ बैठक से इतर चीन के दौरे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मुलाकात रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से भी होगी। दोनों के बीच दोपक्षीय वार्ता होगी। निश्चित रूप से अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को यह बात नागवार गुजरेगी। आखिर उन्होंने रूस के साथ कारोबार करने और कच्चा तेल खरीदने की वजह से ही भारत पर अतिरिक्त 25 फीसदी टैरिफ लगाने का ऐलान किया है। हालांकि उन्होंने इसे 27 अगस्त तक रोका हुआ है। अमेरिका के वार्ताकारों की टीम 25 अगस्त को भारत आ रही है। अगर बातचीत में सहमति बन जाती है तो टैरिफ टल भी सकता है और उसके बाद प्रधानमंत्री मोदी की चीन यात्रा के एजेंडे में भी कई चीजें बदल सकती हैं। बहरहाल, यह भी संयोग नहीं है कि राष्ट्रपति ट्रंप के टैरिफ बढ़ाने के फैसले के बीच भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोवाल रूस के दौरे पर पहुंचे। जयशंकर और डोवाल ने गुरुवार को रूस के नेताओं और अधिकारियों से मुलाकात की। यह बात भी ट्रंप को पसंद नहीं आएगी। लेकिन भारत अगर अपने सबसे पुराने और भरोसेमंद सहयोगी की ओर लौटने का संकेत देता है तो अमेरिका को भी अपनी कूटनीति के बारे में सोचना होगा।