यह कमाल की स्थिति है। हरियाणा की पुलिस दिल्ली से सटे गुरुग्राम में बांग्लादेशियों की पहचान के अभियान चला रही है। इस अभियान से जितना हड़कंप बांग्लादेशियों में है उससे ज्यादा स्थानीय निवासियों में है। गुरुग्राम की बड़ी बड़ी हाउसिंग सोसायटीज में रहने वाले लोग परेशान हैं। नागरिक समितियों यानी आरडब्लुए ने पुलिस से अनुरोध किया है कि वह इस अभियान को रोके। असल में जब से गुरुग्राम पुलिस ने बांग्लादेशियों की पहचान करके उनको निकालने का अभियान शुरू किया है, तब से गुरुग्राम की व्यवस्था बिगड़ी है। हाउसिंग सोसायटीज और प्राइवेट बंगलों, घरों में काम करने वाली घरेलू नौकरानियों और अन्य काम करने वाले लोग लापता हो गए हैं या कम हो गए हैं। ऐसा नहीं है कि वे सारे लोग बांग्लादेशी हैं। लेकिन उनके पास कोई वैध दस्तावेज नहीं है। उनमें ऐसे लोग भी हैं, जो बांग्ला बोलते हैं, लेकिन बांग्लादेशी नहीं हैं।
कहा जा रहा है कि पुलिस बांग्ला बोलने वालों को पकड़ ले रही है और उन्हें बांग्लादेशी बता कर निकालने का अभियान शुरू कर दे रही है। ध्यान रहे बांग्ला बोलने वाले लोग पश्चिम बंगाल, असम और त्रिपुरा से लेकर पूर्वोत्तर के किसी भी राज्य के नागरिक हो सकते हैं। बिहार के भी हो सकते हैं क्योंकि बिहार में भी बड़ी संख्या में बांग्लादेशी शरणार्थी बसे हैं, जो 1971 में भारत आए थे। ऐसे लोगों के पास अगर आधार या दूसरे दस्तावेज हैं भी तो पुलिस उन पर ध्यान नहीं दे रही है। पुलिस ने वैसे अभी कम ही लोगों को पकडा है लेकिन हड़कंप मचा हुआ है। पुलिस की चिंता में कामगारों में काम पर आना बंद कर दिया है। इससे गुरुग्राम की तमामा हाउसिंग सोसायटी में परेशानी हो रही है। सोचें, इनमें ज्यादातर लोग ऐसे हैं, जो देश की सुरक्षा के लिए बांग्लादेशियों और रोहिंग्या घुसपैठियों को निकालने के समर्थक हैं। लेकिन वे यह नहीं चाहते हैं कि उनके यहां काम करने वाले को डिस्टर्ब किया जाए। बहरहाल, हाउसिंग सोसायटीज की ओर से अनुरोध के बाद गुरुग्राम पुलिस ने अपना अभियान धीमा कर दिया है। सोचें, आने वाले दिनों में अगर यह अभियान दिल्ली और एनसीआर के दूसरे हिस्सों में शुरू होता है तो क्या होगा?