कांग्रेस और दूसरी विपक्षी पार्टियों ने पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले के बाद सरकार के साथ एकजुटता दिखाई। 22 अप्रैल को हुए हमले के दो दिन बाद 24 अप्रैल को सर्वदलीय बैठक हुई, जिसमें कांग्रेस की ओर से राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे दोनों शामिल हुए।
दोनों ने बैठक में और बैठक के बाद भी कहा कि वे सरकार के हर कदम का साथ देंगे। पहलगाम हमले के बाद खुफिया और सुरक्षा चूक का मुद्दा उठा था लेकिन तुरंत उसे दबा दिया गया और विपक्षी पार्टियां सरकार के समर्थन में खड़ी हो गईं। उन्होंने कहा कि सरकार जो भी कदम उठाएगी, उसको उनका समर्थन होगा।
सरकार की ओर से सैन्य कार्रवाई में देरी हुई तो विपक्ष ने देरी का मुद्दा जरूर उठाया लेकिन सरकार का विरोध नहीं किया, बल्कि सभी पार्टियां सरकार का समर्थन करती रहीं। फिर छह और सात मई को ऑपरेशन सिंदूर के नाम से सैन्य कार्रवाई हुई, जिसका सभी दलों ने समर्थन किया। सबने सेना के शौर्य की प्रशंसा की और सेना के समर्थन में जुलूस निकाले।
लेकिन शनिवार, 10 मई को जब सीजफायर हो गया तो उसके बाद क्यों भाजपा और सरकार दोनों विपक्ष के समर्थन की उम्मीद कर रहे हैं? तनाव और सैन्य कार्रवाई की अवधि में विपक्ष ने समर्थन किया। लेकिन जब तनाव खत्म हो गया और सीजफायर लागू हो गया तो समर्थन करने की अनिवार्यता या मजबूरी भी खत्म हो गई।
दूसरी बात यह है कि सीजफायर लागू होने के पहले ही जब सत्तापक्ष ने राजनीति शुरू कर दी तो फिर भाजपा के नेता विपक्ष से कैसे उम्मीद कर रहे हैं कि वह चुपचाप तमाशा देखे? आखिर कांग्रेस की पिछली सरकारों को खास कर मनमोहन सिंह को कठघरे में खड़ा करने का वीडियो तो भाजपा ने सीजफायर से पहले ही जारी किया था।
सीजफायर होने के बाद भाजपा ने पूरे देश में तिरंगा यात्रा शुरू कर दी। प्रधानमंत्री ने लगातार दो दिन देश को संबोधित किया और अपनी सरकार की जय जयकार की। एक बार भी उन्होंने विपक्ष की तारीफ नहीं की और न उसका धन्यवाद किया कि संघर्ष की अवधि में विपक्ष ने सरकार का साथ दिया था।
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सीजफायर के बाद विपक्ष सख्त रुख में
सोचें, भारतीय जनता पार्टी के मुख्यमंत्री, केंद्रीय मंत्री, सांसद, विधायक और पार्टी के पदाधिकारी सड़कों पर तिरंगा यात्रा कर रहे हैं और दिल्ली में भाजपा के प्रवक्ता प्रेस कॉन्फ्रेंस में कांग्रेस और दूसरी विपक्षी पार्टियों पर सवाल उठा रहे हैं कि वे सरकार का समर्थन नहीं कर रहे हैं! दूसरी ओऱ विपक्षी पार्टियों का कहना है कि उनके समर्थन की समय सीमा थी।
जब तक पाकिस्तान के साथ तनाव चल रहा था और जब तक सैन्य कार्रवाई हुई तब तक विपक्ष पूरी तरह से सरकार के साथ खड़ा रहा। लेकिन उसके बाद जब भाजपा ने राजनीति शुरू कर दी तो विपक्ष को भी राजनीति करनी है। तभी विपक्षी पार्टियां प्रधानमंत्री मोदी की अध्यक्षता में सर्वदलीय बैठक बुलाने और संसद का विशेष सत्र बुला कर उसमें चर्चा करने की मांग कर रहे हैं।
विपक्षी पार्टियां सीजफायर को लेकर भी सवाल पूछ रही हैं। उनका सवाल है कि सीजफायर की घोषणा अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने क्यों की? विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने इस पर सफाई दी लेकिन उन्होंने भी न तो अमेरिका का नाम लिया और न राष्ट्रपति ट्रंप का जिक्र किया। सरकार की इस सफाई के बाद भी ट्रंप ने अपनी बात दोहराई है कि उन्होंने व्यापार रोकने की धमकी देकर दोनों देशों को सीजफायर के लिए तैयार किया। तभी विपक्ष इसे लेकर हमलावर है। विपक्ष के समर्थन देने की डेडलाइन समाप्त हो चुकी है और सरकारर को हमले के लिए तैयार रहना चाहिए।
Pic Credit : ANI