बिहार में ऐसा लग रहा है कि जाति का समीकरण काम कर रहा है। इस बार लोकसभा चुनाव में राजद, कांग्रेस और लेफ्ट पार्टियों ने एक प्रयोग किया। राजद ने अपने कोटे की सीटों में मुस्लिम उम्मीदवार कम कर दिए और कुशवाहा उम्मीदवार बढ़ा दिए। पिछली बार लालू ने अपने कोटे की 19 सीटों में से पांच मुस्लिम उम्मीदवार दिए थे। लेकिन इस बार उन्होंने सिर्फ दो मुस्लिम उम्मीदवार दिए हैं और उसी अनुपात में कुशवाहा उम्मीदवारों की संख्या बढ़ा दी है। राजद, कांग्रेस, वीआईपी और तीनों कम्युनिस्ट पार्टियों से आठ कुशवाहा उम्मीदवार लड़ रहे हैं। यादव के बाद सबसे ज्यादा टिकट कुशवाहा को दी गई है, जिसकी राजनीतिक जदयू और भाजपा दोनों कर रहे हैं।
ध्यान रहे नीतीश कुमार ने लालू के खिलाफ लव कुश का जो समीकरण बनाया था उसमें बड़ी जाति कुशवाहा यानी कोईरी ही थी। अभी भाजपा ने उसी जाति के सम्राट चौधरी को प्रदेश अध्यक्ष बनाया है और वे राज्य के उप मुख्यमंत्री भी हैं। इसके बावजूद विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ के कुशवाहा उम्मीदवारों को उनकी जाति के वोट मिले हैं। पहले चरण में जिन चार सीटों पर चुनाव हुए उनमें दो सीटों पर भाजपा का उम्मीदवार था। नवादा में विवेक ठाकुर और औरंगाबाद में सुशील सिंह। राजद ने नवादा श्रवण कुशवाहा को और औरंगाबाद में अभय कुशवाहा को लड़ाया। दोनों को उनकी जाति का एकमुश्त वोट मिला है। इससे उत्साहित होकर कांग्रेस ने भी पटना साहिब सीट से अंशुल अविजीत को टिकट दे दिया। उनकी मां मीरा कुमार हैं लेकिन उनके पिता कुशवाहा जाति के हैं। सो, कांग्रेस ने एक सीट कुशवाहा को दी है। वीआईपी के मुकेश सहनी ने पूर्वी चंपारण की सीट राजेश कुशवाहा को दी है। सीपीआई माले ने काराकाट सीट पर राजराम कुशवाहा को उतारा है। कुल मिला कर आठ कुशवाहा विपक्षी गठबंधन से लड़ रहे हैं। अगर कोईरी वोट उनको मिलता है तो यह भाजपा और जदयू दोनों के लिए झटका होगा। फिर लालू प्रसाद इस प्रयोग को विधानसभा चुनाव में बड़े पैमाने पर आजमाएंगे।