महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना यानी मनसे के नेता राज ठाकरे पिछले एक दशक से ज्यादा समय से राजनीतिक प्रासंगिकता की तलाश में हैं। उनकी पार्टी को लंबे समय से चुनावी सफलता नहीं मिल रही है और भाजपा के साथ तालमेल की चर्चाओं के बावजूद वे राजनीतिक बियाबान में भटक रहे हैं।
तभी थक हार कर वे एक बार फिर काठ की हांडी चूल्हे पर चढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने कहा है कि मुंबई में रहने वालों को मराठी बोलनी पड़ेगी। राज ठाकरे ने कहा है कि जो मुंबई में रह कर मराठी नहीं बोलता है उसको थप्पड़ मारना चाहिए। इसके बाद उनके समर्थक हो सकते है कि अगले कुछ दिन में इसका अभियान शुरू करें। लेकिन इस मुद्दे में अब कोई दम नहीं बचा है।
राज ठाकरे की नई सियासत?
सवाल है कि राज ठाकरे क्यों अभी यह मुद्दा उठा रहे हैं? ऐसा लग रहा है कि तमिलनाडु में हिंदी विरोध में शुरू हुए राजनीतिक अभियान से उनको प्रेरणा मिली है। उनको लग रहा है कि दक्षिण के राज्यों ने जैसे हिंदी का विरोध शुरू किया है उसी तरह मुंबई में भी हिंदी विरोध किया जा सकता है और उसके साथ साथ दक्षिण भारतीयों का भी विरोध किया जा सकता है।
ध्यान रहे शिव सेना के संस्थापक बाल ठाकरे ने सबसे पहले तमिल लोगों को हटाने का अभियान छेड़ कर ही राजनीति शुरू की थी। उसमें आंशिक सफलता मिली। उसके बाद वे मुस्लिम विरोध और फिर उत्तर भारतीय विरोध की राजनीति की थी। प्रासंगिकता की तलाश में राज ठाकरे कुछ भी आजमाने को तैयार हैं।
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