पश्चिम बंगाल में चुनाव आयोग ने मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण यानी एसआईआर शुरू करने का ऐलान कर दिया है। इस बीच बिहार के अनुभव से सबक लेकरर ममता बनर्जी की पार्टी बहुत सक्रिय हो गई है। उनको पता है कि एसआईआर पर एक बार कानूनी लड़ाई हो चुकी तो अब अलग अलग राज्य का मामला सुप्रीम कोर्ट में चलेगा नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने वैसे कह दिया है कि चुनाव आयोग मतदाता सूची में नाम शामिल करने के लिए दस्तावेज के तौर पर आधार को स्वीकार करे। लेकिन जैसी आशंका बिहार में थी वैसी आशंका पश्चिम बंगाल में भी है। भाजपा विरोधी पार्टियों को लग रहा है कि मतदाता सूची के लिए मतगणना प्रपत्र भरते समय भले आधार ले लिया जाए लेकिन अगर चुनाव आयोग के बताए दस्तावेज नहीं होंगे तो नागरिकता संदिग्ध हो सकती है।
ध्यान रहे चुनाव आयोग ने 11 दस्तावेजों की एक सूची बिहार में जारी की थी। उन्हीं दस्तावेजों के आधार पर पश्चिम बंगाल में भी काम होगा। हालांकि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद आधार भी शामिल हो जाएगा। फिर भी पूरे पश्चिम बंगाल में जन्म प्रमाणपत्र और आवास प्रमाणपत्र बनवाने की मारामारी मची है। सीमावर्ती जिलों के लोग खास कर मुस्लिम आबादी इन दोनों के लिए सरकारी दफ्तरों में भीड़ लगाए हुए है। बताया जा रहा है कि ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस इस काम में लोगों की मदद कर रही है। सरकार को भी निर्देश दिया गया है कि बिना देरी के लोगों के जन्म प्रमाणपत्र और आवास प्रमाणपत्र बनाए जाएं। चुनाव आयोग की नजर भी इस पर है। हो सकता है कि एसआईआर के समय यह ध्यान रखा जाए कि पिछले तीन महीने में कितने लोगों को ऐसे प्रमाणपत्र मिले हैं और उनके पास दूसरे क्या दस्तावेज हैं।


