बिहार में सत्तारूढ़ गठबंधन एनडीए और विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ ब्लॉक, जिसे बिहार में महागठबंधन कहते हैं, दोनों में सीट शेयरिंग पर चर्चा हो रही है। एनडीए में मामला ज्यादा उलझा हुआ लग रहा है। बिहार में एनडीए की कमान हमेशा जनता दल यू के हाथ में रही है। एक समय तो ऐसा भी रहा है, जब नीतीश कुमार ही भाजपा की राजनीति भी संभालते थे। लेकिन अब स्थितियां बदल गई हैं। नीतीश कुमार जब अपनी लोकप्रियता के चरम पर थे तब लोकसभा और विधानसभा दोनों में ज्यादा सीटों पर लड़ते थे। 2009 के लोकसभा चुनाव में उनकी पार्टी जनता दल यू 25 और भाजपा 15 सीटों पर लड़ी थी और 2010 के विधानसभा चुनाव में वे 143 और भाजपा एक सौ सीटों पर लड़ी थी। लेकिन 2013 में उनके भाजपा से अलग होने और फिर 2017 में वापस लौटने के बाद सारी चीजें बदल गईं। भाजपा लोकसभा की ज्यादा सीटें लड़ने लगी और विधानसभा चुनाव में भी जदयू और उसके बीच सीटों का अंतर कम हो गया।
पिछले विधानसभा चुनाव में यानी 2020 में जदयू 115 और भाजपा 110 सीटों पर लड़ी। चिराग पासवान ने तब एनडीए से अलग होकर नीतीश की हर उम्मीदवार के खिलाफ अपना प्रत्याशी खड़ा कर दिया, जिससे नीतीश की पार्टी सिर्फ 43 सीट जीत पाई लेकिन चूंकि वे सीएम के घोषित दावेदार थे तो एनडीए के जीतने पर सीएम बने। फिर वे दोबारा अलग हुए और दोबारा भाजपा के साथ लौटे। तब लोकसभा में भाजपा 17 और जदयू 16 सीटों पर लड़ी। एक सीट का अंतर प्रतीकात्मक रखा गया। तभी अब जनता दल यू का कहना है कि विधानसभा चुनाव में भी प्रतीकात्मक ही सही लेकिन नीतीश की पार्टी को कम से कम एक सीट भी ज्यादा दी जाए। बताया जा रहा है कि पिछले दिनों नीतीश कुमार ने दिल्ली में थे तो उनकी ओर से भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को यह बात बता दी गई है। नीतीश की पार्टी की ओर से सीट शेयरिंग कर रहे नेताओं को भी निर्देश है कि विधानसभा चुनाव में जदयू ही बड़े भाई की भूमिका में रहेगी।
दूसरी ओर भारतीय जनता पार्टी इस बार अभी नहीं तो कभी नहीं के अंदाज में चुनाव लड़ने की तैयारी में है। उसको लग रहा है कि अगर बराबर सीटों पर लड़े तो चुनाव के बाद भले जदयू को कुछ सीटें कम मिलेंगी फिर भी भाजपा का मुख्यमंत्री बनना मुश्किल होगा। इसलिए भाजपा ज्यादा सीटों पर लड़ना चाहती है। नीतीश की सेहत और उनका नेतृत्व कमजोर होने के नाम पर भाजपा कमान अपने हाथ में रखना चाहती है। पिछले दिनों यह फॉर्मूला लीक किया गया कि जनता दल यू 102 और भाजपा 101 सीट पर लड़ेगी। जदयू नेता इससे संतुष्ट हैं, लेकिन कहा जा रहा है कि यह आखिरी फॉर्मूला नहीं है। भाजपा 110 से 115 सीटों पर लड़ना चाहती है और जदयू को 90 सीटों पर रखना चाहती है। लेकिन इसमें खतरा यह है कि अगर भाजपा ज्यादा सीट लड़ी और यह मैसेज बना कि चुनाव के बाद नीतीश सीएम नहीं बनेंगे, भाजपा अपना सीएम बनाएगी तो पूरे एनडीए को नुकसान होगा। इस फॉर्मूले में एक समस्या चिराग पासवान के कारण भी है। वे 40 सीट मांग रहे हैं, जबकि उनके लिए 25 से 28 सीटों की ही संभावना बन रही है। ऐसा इसलिए है क्योंकि जीतन राम मांझी और उपेंद्र कुशवाहा को मिला कर भी 16 से 18 सीटों की जरुरत है। सो, एऩडीए के अंदर सीट बंटवारे का काम उलझा हुआ है। भाजपा सभी सहयोगी पार्टियों से बात कर रही है और अंत में अमित शाह को दखल देना होगा।