श्रीनगर। जम्मू कश्मीर का राज्य का दर्जा बहाल करने के मामले में मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला भी सुप्रीम कोर्ट में जाने पर विचार कर रहे हैं। उन्होंने इस बारे में कानूनी सलाह ली है। शनिवार को श्रीनगर में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में उमर अब्दुल्ला ने कहा कि वे जम्मू कश्मीर को राज्य का दर्जा देने के मामले में सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई में एक पक्ष बनने के बारे में गंभीरता से विचार कर रहे हैं। उन्होंने इस बारे में जम्मू कश्मीर और दिल्ली दोनों जगह बड़े वकीलों से विचार विमर्श किया है।
उमर ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, ‘मैंने जम्मू कश्मीर और दिल्ली में वरिष्ठ वकीलों से राज्य के मुख्यमंत्री के नाते इस केस में एक पक्ष बनने के बारे में विचार किया है। मुझे नहीं लगता कि केंद्र शासित प्रदेश होने की वजह से हमें क्या नुकसान झेलना पड़ रहा है, यह बात मुझसे बेहतर कोई और समझता होगा’। इससे पहले उन्होंने यह भी कहा कि सरकार को जल्दी से जल्दी जम्मी कश्मीर का राज्य का दर्जा बहाल करना चाहिए। उमर ने याद दिलाते हुए कहा कि मोदी सरकार ने कभी नहीं कहा कि राज्य का दर्जा सिर्फ भाजपा के सत्ता में आने पर ही मिलेगा।
उमर अब्दुल्ला ने अपनी सरकार के एक साल पूरे होने के मौके पर प्रेस कॉन्फ्रेंस की, जिसमें दो टूक अंदाज में कहा कि वे राज्य का दर्जा बहाल कराने के लिए भाजपा से कोई समझौता नहीं करेंगे। उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 370 हटाते वक्त संसद में तीन कदम बताए गए थे, पहले सीमांकन, फिर चुनाव और आखिर में राज्य का दर्जा। सीमांकन और चुनाव हो चुके हैं, लेकिन राज्य का दर्जा अब तक नहीं मिला। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार को अपना वादा पूरा करना चाहिए।
मुख्यमंत्री ने कहा कि पिछले एक साल में उनकी सरकार ने विकास के काम तेज किए हैं। लेकिन राज्य का दर्जा न होने से कई मुश्किलें आ रही हैं। उमर ने 24 अक्टूबर को होने वाले राज्यसभा चुनावों पर भी चर्चा की और कहा कि यह चुनाव दिखाएगा कि कौन भाजपा का साथ दे रहा है। उन्होंने सज्जाद लोन से सवालिया लहजे में कहा कि उन्होंने भाजपा की मदद क्यों की। उमर ने कहा कि राज्य के लोगों को भाजपा की हार की सजा नहीं मिलनी चाहिए। मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य का दर्जा मिलने के तुरंत बाद लोक सुरक्षा कानून यानी पीएसए को खत्म कर देंगे। यह कानून लोगों की आजादी पर रोक लगाता है।


