पश्चिम बंगाल में हर बार किसी न किसी तरह से अस्मिता का सवाल उठ जाता है। हर बार चुनाव से पहले संस्कृति और पहचान की बातें होने लगती हैं। याद करें कैसे पिछले चुनाव में यानी 2021 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरुदेव रविंद्र नाथ टैगोर की तरह की दाढ़ी रख ली थी। पश्चिम बंगाल के चुनाव में वे उसी तरह से प्रचार करते रहे। भाजपा ने किसी बहाने ईश्वरतचंद्र विद्यासागर के सम्मान का भी मुद्दा बनाया। हालांकि उसका कोई फायदा नहीं हुआ। ममता बनर्जी बाहरी बनाम बांग्ला का मुद्दा बना कर चुनाव जीत गईं। पिछली बार ‘जय श्रीराम’ बनाम ‘जय मां काली’ का भी मुद्दा बना। यह भी अस्मिता का ही सवाल था।
इस बार चुनाव से पहले कुछ समय तक जगन्नाथ धाम का विवाद चला। गौरतलब है कि ममता बनर्जी ने दीघा में जगन्नाथ मंदिर का उद्घाटन किया, जिसे धाम कहने पर विवाद हुआ। अब वंदे मातरम और जन गण मन का विवाद शुरू हो गया है। भाजपा और केंद्र सरकार वंदे मातरम की रचना के डेढ़ सौ साल पूरे होने पर पूरे देश में उत्सव मना रहे हैँ। इसे लेकर दिल्ली में एक बड़ा कार्यक्रम आयोजित हुआ था। उधर भाजपा के एक नेता ने कह दिया कि जन गण मन की रचना इंगलैंड के राजा के सम्मान में हुई थी। हालांकि बाद में उन्होंने अपनी बात वापस ली। इस बीच अबू आजमी और जिया उर रहमान बर्क जैसे मुस्लिम नेताओं ने वंदे मातरम गाने से इनकार करके विवाद और बढ़ा दिया है। अब ममता को इस जाल में फंसाने का प्रयास चल रहा है।


