वक्फ संशोधन बिल पर एनडीए के घटक दलों ने खुल कर सरकार का साथ दिया। उन्होंने बिल के समर्थन में भाषण दिया और उसके पक्ष में मतदान किया। इसका नतीजा यह हुआ है कि तमाम घटक दल अपने अपने राज्य में बगावत झेल रहे हैं। उनके मुस्लिम नेता नाराज हुए हैं और इस्तीफा दे रहे हैं। मुस्लिम समाज के प्रति सद्भाव रखने वाली पार्टियों की इससे चिंता बढ़ी है। बिहार में नीतीश कुमारर हमेशा मुस्लिम समाज के प्रति सद्भाव दिखाते रहे थे। उन्होंने भाजपा के साथ रहते हुए भी मुसलमानों को टिकट दिए और सरकार में शामिल किया। पसमांदा मुस्लिम महाज की राजनीति नीतीश कुमार ने की और उस समाज के अली अनवर को दो बार राज्यसभा में भेजा। लेकिन वक्फ बिल ने उनकी पार्टी को अलग थलग किया। एक दर्जन से ज्यादा मुस्लिम नेता और पार्टी के पदाधिकारी पार्टी छोड़ कर जा चुके हैं।
मुस्लिम वोट पूरी तरह से राजद और कांग्रेस गठबंधन के साथ एकजुट हुआ है और नीतीश कुमार की पार्टी पूरी तरह से भाजपा के ऊपर निर्भर हो गई है। अब जनता दल यू का भविष्य भाजपा के वोट से तय होगा। यही स्थिति सेकुलर राजनीति करने वाली तमाम पार्टियों की हो गई है। बिहार की ही दूसरी पार्टी चिराग पासवान की लोजपा है। चिराग के पिता स्वर्गीय रामविलास पासवान भी मुसलमानों के प्रति सद्भाव रखते थे। तभी उनकी पार्टी के सांसद अरुण भारती ने अपने भाषण में सावधानी बरती लेकिन बिहार में चिराग के प्रति भी मुस्लिम मतदाताओं में नाराजगी है। ऐसे ही कर्नाटक में पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा की पार्टी जेडीएस का मामला है। उनकी पार्टी वोक्कालिगा और मुस्लिम वोट की मदद पर ही टिकी थी। विधानसभा चुनाव में मुसलमान जरूर उनसे अलग हुए थे लेकिन वक्फ बिल पर जेडीएस के स्टैंड ने उन्हें स्थायी रूप से दूर कर दिया। आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू की पार्टी टीडीपी ने राज्यों के वक्फ बोर्ड की संरचना तय करने में राज्यों को अधिकार देने की मांग करके कुछ डैमेज कंट्रोल किया है लेकिन हकीकत यह है कि वहां भी नायडू की पार्टी ने मुस्लिम समर्थन गंवा दिया है।