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30-06-2025 Vol 19

अगली बारी बंगाल की, तृणमूल बेचैन है

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बिहार के बाद मतदाता सूची के गहन पुनरीक्षण की बारी पश्चिम बंगाल की होगी। तभी पश्चिम बंगाल में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस बहुत बेचैन है। ममता बनर्जी ने कोलकाता में इसे लेकर लगातार दो दिन बयान दिए हैं तो उनकी पार्टी के राज्यसभा सांसद डेरेक ओ ब्रायन और सागरिका घोष ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके बिहार में शुरू हुए मतदाता सूची के पुनरीक्षण अभियान पर सवाल उठाया। दोनों ने इसे अलोकतांत्रिक बताया और कहा कि इतने कम समय में चुनाव आयोग कैसे इस काम को पूरा करेगा। ध्यान रहे तेजस्वी यादव ने अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में बताया था कि 2003 में जब मतदाता सूची का पुनरीक्षण हुआ था तो उसमें दो साल लगे थे और तब साढ़े चार करोड़ से कुछ ज्यादा मतदाता थे। तृणमूल कांग्रेस ने इस पुनरीक्षण अभियान के जरिए राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर यानी एनआरसी लागू होने की आशंका भी जताई है।

उसकी आशंका काफी हद तक सही दिख रही है क्योंकि बिहार में पुनरीक्षण कर रहे चुनाव आयोग के अधिकारियों ने कहा है कि जो मतदाता जन्म प्रमाणपत्र नहीं दे पाएंगे, उनका नाम तो मतदाता सूची से कटेगा ही लेकिन साथ ही उसकी सूचना आगे सरकार को दी जाएगी, ताकि उनकी नागरिकता की जांच हो सके। यानी जिनके नाम कटेंगे उनकी नागरिकता पर भी संदेह पैदा होगा। ध्यान रहे अगले साल पश्चिम बंगाल और असम में विधानसभा चुनाव हैं और दोनों ही राज्यों में एनआरसी बड़ा मुद्दा है क्योंकि इन राज्यों में बागंलादेशी घुसपैठियों और शरणार्थियों की बड़ी संख्या है। तृणमूल कांग्रेस को यह चिंता सता रही है कि अगर चुनाव आयोग ने चुनिंदा विधानसभा क्षेत्रों में टारगेट करके मतदाताओं के नाम काटे तो उसका फाय़दा भाजपा को होगा। पश्चिम बंगाल में 30 फीसदी मुस्लिम आबादी है, जिसके बारे में भाजपा आरोप लगाती है कि इनमें बड़ी संख्या बांग्लादेशी और रोहिंग्या की है। इनका वोट एकमुश्त तृणमूल को जाता है। हर क्षेत्र में 10 से 20 हजार नाम अगर कट जाते हैं तो तृणमूल को उसका बड़ा नुकसान होगा। हालांकि बिहार से उलट पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस के नेता ज्यादा जागरूरक और सक्रिय हैं। वे आसानी से नाम नहीं कटने देंगे। पिछले कई महीनों से वे खुद घर घर जाकर सब चेक कर रहे हैं। कहा जा रहा है कि राज्य सरकार ममता बनर्जी की है। इसलिए जरूरी हुआ तो सरकार सबके लिए जन्म प्रमाणपत्र जारी कर सकती है।

NI Political Desk

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