अगले साल राज्यसभा के दोवार्षिक चुनाव में बड़ी पार्टियों की तस्वीर कमोबेश एक जैसी रहने वाली है। एकाध सीटों से ज्यादा का फर्क नहीं आने वाला है। कांग्रेस की 27 में से आठ सीटें खाली हो रही हैं तो उसको आठ या नौ सीट मिल जाएगी। इसी तरह भाजपा की 30 सीटें खाली हो रही हैं तो उसे भी एकाध सीट ज्यादा मिल सकती है। लेकिन असली सवाल है कि कांग्रेस के दिग्गज नेताओं का क्या होगा? कांग्रेस के कई दिग्गज नेता अगले साल रिटायर हो रहे हैं। इनमें से सबसे बड़ा नाम दिग्विजय सिंह का है। मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद 2003 में उन्होंने 10 साल तक कोई पद नहीं लिया था। 10 साल का संन्यास खत्म हुआ तो वे 2014 में राज्यसभा गए और दो बार से उच्च सदन के सदस्य हैं। वे 21 जून को रिटायर हो रहे हैं। मध्य प्रदेश में कांग्रेस के 65 विधाय़क हैं और इस आधार पर उसे एक सीट मिल जाएगी। अगर सब कुछ ठीक रहा तो ज्यादा संभावना है कि वे तीसरी बार राज्यसभा जाएं। अगर राहुल गांधी अपना दलित, पिछड़ा कार्ड खेलना चाहें तो अलग बात है। कमलनाथ भी प्रयास कर सकते हैं। दशकों बाद ऐसी स्थिति है कि कमलनाथ के परिवार का कोई सदस्य किसी सदन में नहीं है।
इसी तरह कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे का कार्यकाल भी 25 जून के खत्म हो रहा है। अगर उनकी लॉटरी नहीं खुलती है और वे कर्नाटक के मुख्यमंत्री नहीं बनते हैं तो उनका भी राज्यसभा में आना तय है। कर्नाटक में खाली हो रही चार में से तीन सीटें कांग्रेस को मिलेंगी। तेलंगाना से कांग्रेस के बड़े नेता अभिषेक सिंघवी का कार्यकाल नौ अप्रैल को पूरा हो रहा है। उनका फिर से चुन कर आना तय है। कांग्रेस के जिन नेताओं पर तलवार लटकी है। उनमें गुजरात से शक्ति सिंह गोहिल, छत्तीसगढ़ से केटीएस तुलसी और महाराष्ट्र से रजनी पाटिल हैं। गुजरात और महाराष्ट्र में कांग्रेस को कोई सीट नहीं मिलेगी। छत्तीसगढ़ में कांग्रेस को एक सीट मिलेगी लेकिन इस बार तुलसी की जगह कांग्रेस किसी स्थानीय नेता को राज्यसभा भेजेगी, जो दलित, पिछड़ा या आदिवासी होगा।


