राजीव शुक्ला के पास तो काम है। वे राज्यसभा सांसद हैं, उच्च सदन के पीठासीन अधिकारियों की सूची में उनका नाम है, वे भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड यानी बीसीसीआई की राजनीति से गहरे तक जुड़े हुए हैं और उनका एक न्यूज चैनल भी है। इसलिए कांग्रेस ने उनको प्रभारी के पद से हटा दिया तो उन पर कोई खास फर्क नहीं पड़ेगा। हालांकि उनको क्यों हटाया गया यह समझना मुश्किल है। उनको पहली बार हिमाचल प्रदेश का प्रभारी बनाया गया और वहां पार्टी ने सरकार बनाई। तभी वे छत्तीसगढ़ से उच्च सदन में भेजे गए। लेकिन अब उनको हटा दिया गया है। वे ब्राह्मण कम करने की राहुल की राजनीति का शिकार हुए जान पड़ते हैं।
लेकिन सवाल है कि राजीव शुक्ला के अलावा जिन नताओं की सेवा कांग्रेस ने समाप्त की है वे क्या करेंगे? एक समय राहुल गांधी के सबसे करीबी रहे दीपक बाबरिया को हटा दिया गया है। वे गुजरात के रहने वाले हैं और मध्य प्रदेश, हरियाणा व दिल्ली में प्रभारी रहे। उन्हीं की तरह गुजरात के रहने वाले भरत सिंह सोलंकी को भी हटा दिया गया है। समाजवादी पृष्ठभूमि वाले मोहन प्रकाश को भी बिहार के प्रभारी पद से हटा दिया गया है। बिहार में चुनाव है और वे तालमेल में काफी प्रभावी हो सकते थे। लेकिन उनको हटा कर कर्नाटक से प्रभारी लाया गया है। पूर्वोत्तर में काम कर रहे पूर्व आईपीएस अधिकारी अजय कुमार की विदाई हुई है और देवेंद्र यादव भी हटाए गए हैं। लेकिन देवेंद्र यादव तो दिल्ली के प्रदेश अध्यक्ष हैं इसलिए उनकी सेहत पर फर्क नहीं पड़ना है। इनमें से कई नेताओं को क्यों महत्वपूर्ण पदों पर रखा गया था वह भी समझ में नहीं आया और क्यों हटा दिया गया वह समझना तो और भी मुश्किल है।