यह सही है कि तमिलनाडु में एक साल बाद चुनाव हैं और भाजपा किसी तरह से वहां पैर रखने की जगह हासिल करने में लगी है और यह भी सही है कि राज्य के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने केंद्र सरकार के खिलाफ मोर्चा खोला है। लेकिन इसका क्या यह मतलब होगा कि प्रधानमंत्री राज्य के दौरे पर जाएंगे तो मुख्यमंत्री का मजाक बनाएंगे और उसको चिढ़ाने वाली बातें कहेंगे? यह निश्चित रूप से गलत है कि मुख्यमंत्री स्टालिन ने प्रोटोकॉल तोड़ा और प्रधानमंत्री को रिसीव करने नहीं गए या सरकारी कार्यक्रम में शामिल नहीं हुए। यही काम तेलंगाना के मुख्यमंत्री रहते के चंद्रशेखर राव ने भी किया था और आज वे कहां हैं यह सबको दिख रहा है। इसलिए स्टालिन की भी गलती थी लेकिन प्रधानमंत्री ने बिना राज्य के लोगों की संवेदनशीलता को समझे भाषा के सवाल पर स्टालिन को चिढ़ाया।
उन्होंने कहा कि तमिल का गौरव बना रहे इसके लिए कम से कम तमिल में दस्तखत तो करें। सोचें, क्या देश के प्रधानमंत्री को ऐसी बात शोभा देती है? वे खुद भाषाई आधार पर बने एक राज्य से आते हैं लेकिन क्या गुजरात का मुख्यमंत्री रहे गुजराती भाषा का गौरव बढ़ाने के लिए उन्होंने कभी गुजराती में दस्तखत किए? ध्यान रहे गुजरात में रहते वे हमेशा सिर्फ छह करोड़ गुजरातियों की बातें करते रहे थे, जैसे अभी स्टालिन तमिल लोगों की बात करते हैं। इसी तरह प्रधानमंत्री ने कहा कि मेडिकल की पढ़ाई तमिल में कराएं। यह बात भी स्टालिन के तमिल प्रेम पर उनको चिढ़ाने के लिए ही कही गई थी। सारे देश में हिंदी को प्रमुखता दिलाने में लगी मोदी सरकार पहले मेडिकल और इंजीनियरिंग का एक भी बैच हिंदी में पढ़ा कर निकाले फिर राज्यों को चिढ़ाए तो बात समझ में आएगी।