राज्य-शहर ई पेपर व्यूज़- विचार

नड्डा क्यों बार बार खड़गे से लड़ रहे हैं?

राज्यसभा में नेता सदन जेपी नड्डा और नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के बीच मानसून सत्र में लगातार टकराव हो रहा है। सत्र शुरू होने के साथ ही दोनों के बीच विवाद शुरू हुआ। ध्यान रहे 21 जुलाई को यानी सत्र के पहले दिन भी दोनों के बीच खूब गरमागरम बहस हुई थी। बहस यहां तक पहुंच गई थी कि जेपी नड्डा ने मल्लिकार्जुन खड़गे पर चिल्लाते हुए कहा कि उनकी कही कोई बात रिकॉर्ड में नहीं जाएगी। हालांकि यह तय करना आसन का काम होता है। लेकिन आसन पर बैठे सभापति जगदीप धनखड़ चुप थे और नड्डा ने कहा कि खड़गे की बात रिकॉर्ड में नहीं जाएगी। ध्यान रहे उसी दिन शाम में जगदीप धनखड़ का इस्तीफा हो गया था। लेकिन उससे पहले दिन में राज्यसभा में खूब ड्रामा हुआ। नड्डा और खड़गे का विवाद उस दिन की कार्यवाही की हाईलाइट है।

इसके बाद लगभग हर दिन दोनों में विवाद हुआ। इसी तरह संसद के मानसून सत्र का आखिरी हफ्ता सोमवार, 18 अगस्त को शुरू हुआ तो उस दिन भी उच्च सदन में नड्डा और खड़गे के बीच खूब कहासुनी हुई। मतदाता सूची में गड़बड़ी और चुनाव आयोग की प्रेस कॉन्फ्रेंस को लेकर विवाद के बीच दोनों में गरमागरम बहस हुई। आमतौर पर दोनों सदनों में नेता कम बोलते हैं या विपक्षी पार्टियों के साथ लड़ते नहीं हैं। ऊपर से जेपी नड्डा तिहरी जिम्मेदारी वाले नेता हैं। वे भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं और केंद्रीय मंत्री भी हैं। इस लिहाज से विपक्ष के नेता उनका लड़ना, झगड़ना हैरान करने वाला है। उनकी जगह भाजपा के दूसरे नेता सवाल जवाब करते या बहस करते तो बात समझ में आती। वैसे भी राष्ट्रीय अध्यक्ष के तौर पर उनका कार्यकाल ढाई साल पहले समाप्त हो चुका है। वे साढ़े पांच साल से ज्यादा समय से राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं इसलिए ऐसा भी नहीं है कि वे पार्टी नेतृत्व की नजर में आने के लिए यह कर रहे हैं।

इसका कारण यह लग रहा है कि राज्यसभा में भाजपा के पास अच्छे नेताओं की कमी हो गई है। राज्यसभा में उसके जितने भी बड़े नेता और मुखर वक्ता थे उनको पार्टी ने लोकसभा का चुनाव लड़ा दिया था। वे सभी जीत कर अब लोकसभा में हैं। राज्यसभा में इससे पहले  सदन के नेता पीयूष गोयल होते थे। वे मुंबई से लोकसभा का चुनाव जीत कर लोकसभा चले गए हैं। उन्हीं की जगह जेपी नड्डा को सदन का नेता बनाया गया है। इसी तरह भूपेंद्र यादव अच्छे वक्ता हैं और राज्यसभा में थे लेकिन पिछले साल वे भी राजस्थान से चुनाव जीत  कर लोकसभा में चले गए। राज्यसभा में पार्टी के तीसरे बड़े नेता धर्मेंद्र प्रधान थे। पिछले साल वे भी अपने गृह राज्य ओडिशा से चुनाव जीत कर लोकसभा में चले गए। अब स्थिति यह है कि राज्यसभा में या तो कुछ रिटायर अधिकारी हैं, जो मंत्री हैं या फिर अलग अलग जातीय समूहों का प्रतिनिधिनत्व करने वाले कुछ प्रतीकात्मक चेहरे हैं। अपवाद के लिए सुधांशु त्रिवेदी जैसे कुछ नेता अब भी राज्यसभा में हैं। लेकिन विपक्ष की ओर से ज्यादा बड़े चेहरे और ज्यादा बड़े नेता राज्यसभा में हैं। सोनिया गांधी भी राज्यसभा में हैं और मल्लिकार्जुन खड़गे भी। तभी ऐसा लग रहा है कि सरकार की ओर से खुद नड्डा को कमान संभालनी पड़ रही है।

By NI Political Desk

Get insights from the Nayaindia Political Desk, offering in-depth analysis, updates, and breaking news on Indian politics. From government policies to election coverage, we keep you informed on key political developments shaping the nation.

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *