खबर है कि चीन सार्क का वैकल्पिक संगठन बनाने जा रहा है। संभवतः भारत को भी इसमें शामिल होने का न्योता दिया जाएगा। मगर मोदी सरकार ने जिन कारणों से सार्क को निष्क्रिय किया, उनके रहते वह नए संगठन से जुड़ेगी, इसमें संदेह है।
पाकिस्तान के एक अखबार में छपी ये खबर बहुचर्चित हो गई है कि चीन ने दक्षिण एशियाई देशों को साथ लेकर सार्क (दक्षिण एशिया सहयोग संगठन) का विकल्प बनाने की पहल की है। इसके ठीक पहले ये खबर चर्चित हुई थी कि चीन ने पाकिस्तान और बांग्लादेश के साथ त्रिपक्षीय बैठक की है। अब संकेत हैं कि श्रीलंका, नेपाल, मालदीव और अफगानिस्तान को भी जोड़ कर एक नया दक्षिण एशियाई संगठन बनाने की तरफ वो बढ़ रहा है। वैसे पाकिस्तानी अखबार की खबर में यह भी कहा गया है कि प्रस्तावित संगठन में शामिल होने का आमंत्रण भारत को भी भेजा जाएगा। मगर नरेंद्र मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद जिन कारणों से भारत ने सार्क को निष्क्रिय किया, उनके और भी प्रमुख रूप से वहां मौजूद रहते भारत नए संगठन से जुड़ेगा, इसमें संदेह है।
मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद सार्क का एकमात्र शिखर सम्मेलन काठमांडू में हुआ था। बताया जाता है कि वहां कई सदस्य देशों ने सार्क में चीन को पर्यवेक्षक का दर्जा देने की वकालत की। ये बात भारत सरकार को पसंद नहीं आई। इसी बीच उरी आतंकवादी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान से संवाद ना रखने की नीति अपना ली। भारतीय विदेश नीति की दिशा में कुछ दूसरे महत्त्वपूर्ण परिवर्तनों की शुरुआत भी उन्हीं दिनों हुई। इन सबका साझा परिणाम सार्क की उपेक्षा और बिम्सटेक ग्रुप को प्राथमिकता देने की भारतीय नीति के रूप में सामने आया।
ये दीगर बात है कि बिम्सटेक अब तक कोई ठोस व्यावहारिक प्रभाव नहीं छोड़ पाया है। इस बीच चीन ने द्विपक्षीय आधार पर दक्षिण एशियाई देशों से अपने संबंध लगातार मजबूत किए हैँ। इस इलाके में भारत और भूटान को छोड़ कर बाकी सभी देश चीन की महत्त्वाकांक्षी परियोजना- बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव से जुड़ चुके हैं। ऐसे में उन तमाम देशों को लेकर क्षेत्रीय संगठन बनाने की जमीन चीन पहले ही तैयार कर चुका है। अब अगर सचमुच वह इस दिशा में बढ़ता है, तो जाहिर है, भारत के मुख्यधारा विमर्श में उसे देश के लिए एक नई चुनौती के रूप में देखा जाएगा।